मप्र विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-चम्बल की रणनीति बना रहे कमलनाथ, फूलसिंह को सौंपी मुरैना, भिंड और श्योपुर की बागडोर

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Neha Thakur
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मप्र विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-चम्बल की रणनीति बना रहे कमलनाथ, फूलसिंह को सौंपी मुरैना, भिंड और श्योपुर की बागडोर

देव श्रीमाली, GWALIOR. कमलनाथ और कांग्रेस दोनों को यह बात भली-भांति पता है कि अगर प्रदेश में 2018 की तरह फिर से अपनी सरकार बनाना है तो ग्वालियर-चम्बल अंचल में भी अपना पुराना प्रदर्शन दोहराना होगा। इस बार कांग्रेस के साथ ज्योतिरादित्य नहीं है, इसलिए कमलनाथ इस बार जीत का रास्ता 2018 में हुए दलित स्वर्ण संघर्ष से निकालने की रणनीति पर काम कर रहे है। वे एक तरफ दलितों को बीजेपी में न लौटने देने की रणनीति पर काम कर रहे है। वहीं, 80 के दशक के बाद उपेक्षित पड़े स्व. अर्जुन सिंह के समर्थकों की विरासत को टटोलकर फिर कांग्रेस में सक्रिय करने की योजना भी बना रहे हैं। जिलों में पार्टी की जिम्मेदारी देते समय इसी फार्मूले को अपनाया गया है।



राहुल भैया और बरैया का कॉम्बिनेशन



हाल ही में प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ ने अपनी पार्टी के सभी प्रमुख वरिष्ठ नेताओं को आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर जिलों का एलॉटमेन्ट किया है। इसमें सभी नेताओं को सक्रिय करने के पीछे खास रणनीति के तहत ही जिलों का एलॉट किया गया है। ग्वालियर-चम्बल को खासकर सिंधिया के प्रभाव वाले जिलों को दो भागों में बांटा गया है। इनमें से आधे जिले दलित नेता फूल सिंह बरैया को तो आधे वरिष्ठ नेता अजय सिंह राहुल भैया को सौंपा गया है। कांग्रेस के सूत्र इसके पीछे खास रणनीति बता रहे है। 



दलित स्वर्ण संघर्ष ने बिगाड़ी सामाजिक समरसता



ग्वालियर चम्बल अंचल में 2 अप्रैल 18 को इतिहास का सबसे खतरनाक जातीय संघर्ष हुआ था, जिसमें आधा दर्जन लोग मारे गए थे। वहीं, दर्जनों घायल हुए थे। ग्वालियर सहित संभाग के अनेक थाना क्षेत्रों में बेकाबू हालातों के चलते कर्फ्यू भी लगाना पड़ा था और निषेधाज्ञा भी जारी करनी पड़ी थी। इसके बाद व्यापक पैमाने पर हुई पुलिस कार्रवाई होने से भी आग में घी का काम हुआ था। इसके चलते एक तरफ जहां दलित बीजेपी से छिटककर दूर चले गए और उन्होंने बीएसपी को भी वोट न देकर एकजुट होकर कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया था। वहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा दलितों के जख्मों पर मरहम लगाने के लिए दिया गया, कोई माई का लाल आरक्षण खत्म नहीं कर सकता, भाषण पार्टी के गले पड़ गया था। नतीजा यह निकला था कि अंचल में बीजेपी साफ हो गई थी। संभाग की 34 में 28 सीट कांग्रेस जीत गई थी। बिगड़े सामाजिक समरसता का साया अभी भी अंचल की सियासी आबोहवा में हैं। 



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दलितों के लिए बरैया की तैनाती



कमलनाथ ने जिलों में प्रभारियों के नाम की जो सूची जारी की उसे देख पहले तो लोग चौंक पड़े। क्योंकि इसमें मुरैना, भिण्ड और श्योपुर जिलों का प्रभार फूल सिंह बरैया को सौंपा है। बरैया की यह नियुक्ति चौकाने वाली है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक इसे बहुत दूर की कौड़ी मानकर चल रहे हैं। इसकी जड़ 2018 में अंचल में हुए जातीय संघर्ष में हैं। इसके बाद दलितों का थोकबंद वोट बीजेपी से छिटककर कांग्रेस की झोली में आ गया। उसने अपनी बीएसपी से प्रतिबद्धता का भी ख्याल नहीं किया। इसके चलते बीजेपी आरक्षित सात में से छह सीटें तो हारी ही बाकी सामान्य सीटें भी जाती रही। अब यह वोटर वापस बीजेपी में न मुड़ जाए इसके लिए बरैया को लगाया गया है। बरैया एमपी में बीजेपी के संस्थापक सदस्य रहे है और कमलनाथ उनके इसी नेटवर्किंग का फायदा उठाना चाहते हैं। अगर इसमें कामयाबी मिल गई तो कांग्रेस को बड़ा फायदा हो सकता है।



अर्जुन सिंह समर्थकों की विरासत पर निगाह



उधर ग्वालियर, शिवपूरी और दतिया का प्रभार चौकाते हुए अजय सिंह राहुल भैया को सौंप दी। इसके पीछे ज्योतिरादित्य सिंधिया विरोधी और अर्जुन सिंह समर्थकों को एक बार फिर एकजुट करना है। माधवराव सिंधिया के सामने सीएम रहते अर्जुन सिंह ने अपना बड़ा नेटवर्क तैयार किया था। लेकिन उनके साथ ही वे लोग विस्मृत हो गए अब एक बार फिर राहुल भैया उन्हें खोजकर पार्टी की मुख्यधारा में लाने के प्रयास में जुटेंगे।


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