Mandla. बांधवगढ़ नेशनल पार्क में बारहसिंघों को बसाने के लिए किए गए ट्रायल के तहत 19 बारहसिंघों को वहां की आबोहवा रास आई है। जिसके बाद अब 50 बारहसिंघों को बांधवगढ़ भेजने की तैयारी कान्हा नेशनल पार्क में चल रही है। इसके लिए बारहसिंघों को पकड़ने बोमा पद्धति के बाड़े का निर्माण किया जा चुका है। बारहसिंघों की प्रजाति को बचाने के लिए यह निर्णय लिया गया है।
एसएफआरआई रख रहा बारहसिंघों पर नजर
1 माह पहले कान्हा से 11 नर और 8 मादा बारहसिंघा को बांधवगढ़ भेजा गया था। जिनकी निगरानी एसएफआरआई और वन विभाग कर रहा है। प्राकृतिक माहौल और तापमान में बारहसिंघे पूरी तरह ढल चुके हैं। उन्हें किसी प्रकार की कोई बीमारी नहीं हुई है। यह रिपोर्ट संस्थान ने वन विभाग को सौंपी है।
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कान्हा की शान हैं बारहसिंघे
70 के दशक तक बारहसिंघे विलुप्ति की कगार पर पहुंच गए थे। तालाबों में होने वाले जलीय पौधे खाना पसंद करने वाले बारहसिंघों को संरक्षित करने कान्हा में विशेष बाड़ा तैयार कराया गया था। यहां करीब 1 हजार बारहसिंघे मौजूद है। अचानक किसी बीमारी के चपेट में आकर वन्यजीवों की प्रजाति लुप्त न हो इसके लिए उन्हें अलग-अलग नेशनल पार्कों में शिफ्ट कराया जाता है। इसी के चलते अब बांधवगढ़ में भी बारहसिंघों को बसाने की योजना है। वनविभाग के अनुसार बारहसिंघों को प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में भेजकर इनकी संख्या बढ़ाने की योजना है।
ऐसा होता है बोमा पद्धति का बाड़ा
हिरन प्रजाति के वन्यप्राणी जल्दी ही सदमे में आ जाते हैं, इसलिए इन्हें ट्रेंक्यूलाइज करके नहीं पकड़ा जाता। बोमा पद्धति में बांस से एक बाड़ा तैयार किया जाता है। वन्य प्राणियों का हांका लगाकर उन्हें बाड़े के प्रवेश द्वार की तरफ लाकर बाड़े के अंदर किया जाता है और फिर बाड़े को बंद कर देते हैं। बाद में वन्यप्राणियों की आंखों पर नकाब लगाकर उन्हे शिफ्ट किया जाता है। ताकि उन्हें किसी तरह का सदमा न लगे।