BHOPAL. कर्नाटक विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को बहुमत के साथ जो सफलता हासिल हुई है, उसका मध्यप्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों पर क्या असर होगा उसके अंदाज और असलियत में उतना ही फासला है जितना गर्मी और ठंड में होता है। ये जरूर है कि यह सफलता कांग्रेस सहित विपक्षी दलों के केंद्रीय नेतृत्व से लेकर प्रदेश के नेताओं में संजीवनी का काम करेगी और बीजेपी थोड़ा मायूसी और असमंजस की स्थिति में रहेगी। लेकिन मध्यप्रदेश में आगामी विधानसभा चुनावों में किसी भी दल की सफलता इस पर निर्भर करेगी कि पार्टी के अंदर समन्वय बनाने के साथ साथ वह हर वर्ग के मतदाता को किस तरह अपने साथ जोड़ती है।
सीएम ने महिलाओं से वोट लेने के लिए शुरू की योजना
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने इस बार महिलाओं की आधी आबादी के वोट एकमुश्त लेने के लिए 'लाड़ली बहना' योजना की घोषणा की है, जिसमें पात्र महिलाओं को हजार रुपए महीने के हिसाब से साल के बारह हजार रुपए मिलेंगे। इस योजना के फार्म भरे जा रहे हैं। चुनाव की अधिसूचना लगने से पहले 'लाड़ली बहना ' योजना का लाभ महिलाओं को कितना और कब तक मिल पायेगा कह पाना कठिन है। योजना के लिए जरूरी वित्त का इंतजाम कहां से कैसे होगा यह स्पष्ट नहीं है। शायद इसी बात को ध्यान में रखते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने 'नारी-सम्मान' योजना की घोषणा कर दी, जिसमें पात्र महिलाओं को 1500 रुपये महीने देने की घोषणा की गई है। दमोह जिले में पथरिया की विधायक रामबाई ने तो मुखर अंदाज में कहा है- 'कमलनाथ दादा' की बात पर भरोसा किया जा सकता है, मुख्यमंत्री शिवराज पर नहीं।
BJP को करना पड़ सकता है पार्टी के अंदर कड़ी चुनौती का सामना
बीजेपी मध्यप्रदेश में पिछले कुछ समय से बचाव की मुद्रा में है। पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता रहे कैलाश जोशी के बेटे दीपक जोशी कांग्रेस में आ गए। उनका कहना है कि बीजेपी ने ना उनके पिता की स्मृति की रक्षा के लिए कुछ किया ना देवास जिले में बागली के आवास घोटाले की जांच के लिए कोई कदम उठाए। मालवा अंचल में ही बीजेपी के नेता भंवर सिंह शेखावत पार्टी के निष्ठावान नेता और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा से बेहद क्षुब्ध है। सत्यनारायण सत्तन, अजय विश्नोई, नारायण त्रिपाठी, जयंत मलैया, अनूप मिश्रा आदि बीजेपी नेताओं की नाराजगी और क्षोभ से पार्टी नेतृत्व बखूबी परिचित है और इस दिशा में कारगर कुछ अगर नहीं किया गया तो क्रमशः मालवा, महाकोशल, विंध्य, बुन्देलखंड और ग्वालियर अंचल में बीजेपी को पार्टी के अंदर ही कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा।
क्या कांग्रेस में सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा था?
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस में सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा था। लंबे समय से यह देखा जा रहा था कि अरुण यादव, अजय सिंह राहुल आदि की कमलनाथ से पटरी बैठ नहीं रही थी। लेकिन दिग्विजय सिंह ने हाल ही में ग्वालियर चंबल से विंध्य तक लगातार यात्राएं करके कांग्रेस के अंदर आंतरिक समन्वय बनाने की कोशिश की है। कांग्रेस ने अन्य कांग्रेस शासित राज्यों की तर्ज पर ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने के नाम पर लगभग साढ़े चार लाख कर्मचारियों को लुभाने की कोशिश की है। हालांकि राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने एक अखबार में लेख के माध्यम से ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने के दावे और उससे प्रदेशों की वित्तीय स्थिति पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव के विषय में चेताया है।
कांग्रेस ने किया है 500 रुपए में सिलेंडर दिलाने का वादा
कांग्रेस ने सरकार बनने पर जातिगत जनगणना कराने का भी वादा किया है। इस वादे के सहारे वह पिछड़े समुदाय के एकमुश्त वोट हासिल करने की उम्मीद करती है। कांग्रेस ने पांच सौ रूपये में घरेलू गैस सिलेंडर दिलाने का भी वादा किया है। आदिवासी समुदाय की जहां तक बात है ऐसा लग जरूर रहा है कि डॉ. हीरालाल अलावा का जय आदिवासी युवा संगठन ( जयस) पेसा एक्ट सहित कुछ अन्य मुद्दों पर बीजेपी को हराने की मुहिम में शामिल होंगे, लेकिन बीजेपी इस सम्भावित नुकसान को टालने के लिए अंदर ही अंदर अपने सारे प्रयास कर रही है। राज्यसभा सांसद सुमेर सिंह सोलंकी से लेकर राजभवन तक आदिवासियों को बीजेपी के पक्ष में रखने का पुरजोर प्रयास में हैं।
विंध्य में BJP के खिलाफ असंतोष को दूर करने की कोशिश
विंध्य में बीजेपी के खिलाफ जो असंतोष रहा उसे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री की सभाओं के माध्यम से दूर करने का प्रयास किया गया है, लेकिन इन सभाओं का असर ज्यादा समय तक नहीं रहता। खासकर तब जब कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह कमलेश्वर पटेल और अजय सिंह राहुल को लेकर विंध्य में बीजेपी के खिलाफ जनता में व्याप्त असंतोष को हवा दे रहे हों। कांग्रेस ने जिलेवार वचनपत्र की घोषणा की है उसका भी उसे लाभ मिल सकता है। स्थानीय स्तर की समस्याओं पर ध्यान देना और उसके अनुसार योजना बनाना समय की मांग है। लेकिन यह समझना भी जरूरी है कि जिलेवार वचन पत्र कौन बना रहे हैं और स्थानीय मुद्दों से उनका कितना जुड़ाव है।
ग्वालियर चंबल संभाग में ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए अस्तित्व बचाने का संकट है। कांग्रेस तो उनके साथ हिसाब बराबर करने के लिए ग्वालियर चंबल पर अपनी विशेष रणनीति बना ही रही है, बीजेपी के नाराज कार्यकर्ता भी अब सिंधिया समर्थकों के साथ खड़े दिखाई नहीं दे रहे। मुरैना और भिंड से पांच बार सांसद रहे अशोक अर्गल की केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से नाराजगी भी कुछ हद तक अपना असर दिखाएगी। इसके साथ साथ ग्वालियर चंबल की राजनीति में सिंधिया के बरक्स नरेंद्र सिंह तोमर, जयभान सिंह पवैया, नरोत्तम मिश्रा, वीडी शर्मा आदि की कितनी चलती है, इस पर भी चुनावों की दिशा निर्भर रहेगी।