मध्यप्रदेश में सीमेंट ढुलाई का काम करने वाले मजदूर विषाक्त धूल भरी हवा में ले रहे सांस, जकड़ रहीं कई बीमारियां

author-image
Rahul Sharma
एडिट
New Update
मध्यप्रदेश में सीमेंट ढुलाई का काम करने वाले मजदूर विषाक्त धूल भरी हवा में ले रहे सांस, जकड़ रहीं कई बीमारियां

BHOPAL. महेश कुमार (28) जब बोलते हैं तो उनकी बात कान लगाकर सुननी पड़ती है। महेश के गले में खराश है और नाक लगभग बंद है। मध्यप्रदेश में कटंगी माल गोदाम का ये मजदूर दूसरे काम की तुलना में यहां 50 रुपए अतिरिक्त मजदूरी पाने के लिए अपनी सांसों और फेफड़ों को रोज दांव पर लगाता है। सीमेंट के विशाल कारोबार में अपनी सेहत की परवाह किए बगैर पेट पालने के लिए जानलेवा धूल से रोज दो-दो हाथ करने वाला महेश अकेला मजदूर नहीं है। महेश का कहना है कि 'घर-परिवार चलाने के लिए मैं अकेला हूं, यहां थोड़े ज्यादा पैसे मिलते हैं। इसलिए काम करना मेरी मजबूरी है।' अपने 8-10 साल के 2 छोटे-छोटे बच्चों को पालने के लिए मजबूरी का ये सौदा रिंकू ठाकुर ने भी किया है। कटंगी के 35 साल के रिंकू का कहना है कि थोड़ी आमद ज्यादा हो जाती है, सीमेंट की डस्ट से सर्दी-खांसी होती है, ज्यादा फर्क नहीं पड़ता।







publive-image



मध्यप्रदेश में सीमेंट सप्लाई चेन से जुड़े मजदूर धूल कणों से बिगड़ी हानिकारक हवा के बीच कर रहे काम







मजदूरों को सांस की तकलीफ





यहां रिंकू और महेश के अलावा लगभग सभी मजदूरों को सांस की तकलीफ है। रिंकू ठाकुर के मित्र पंचम और दस्सू झारिया ने बताया कि वो भी लोडिंग-अनलोडिंग का काम करते हैं। सीमेंट के कण उड़कर मुंह के अंदर जाने से सर्दी-खांसी होती है। अन्य जगहों पर इन मजदूरों को 250 से 300 रुपए मजदूरी के मिलते हैं। लेकिन सीमेंट गोदाम में काम करने पर ये प्रतिदिन 300 से 350 रुपए तक कमा लेते हैं। यही कारण है कि सबकुछ जानते हुए भी ये मजदूर परिवार के पालन पोषण के खातिर जोखिम उठाने से भी परहेज नहीं करते हैं।





जबलपुर है सीमेंट कारोबार का गढ़





publive-image





मध्यप्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर करीब 20 लाख की आबादी का शहर है। जबलपुर से करीब 100 किमी दूर कटनी जिले में सीमेंट की फैक्ट्रियां हैं। इन सीमेंट फैक्ट्रियों से निकलने वाला सीमेंट जाहिर तौर पर जबलपुर ही आता है। क्योंकि यहां सीमेंट के बड़े-बड़े कारोबारी हैं और उनके अपने सीमेंट गोदाम भी हैं। भारतीय रेल के अंतर्गत पश्चिम मध्य रेल का मुख्यालय जबलपुर में ही है। सीमेंट के ट्रांसपोर्ट का एक मुख्य साधन भी रेलवे है।





चौंकाते हैं इटारसी के हालात





सीमेंट के काम की मजदूरी करने वाले रिंकू ठाकुर और महेश जैसे अन्य मजदूरों को स्वास्थ्य संबंधी कई दिक्कतें हैं। इन्हें जानने के लिए हम जबलपुर से करीब 300 किमी दूर इटारसी पहुंचे। ये पश्चिम मध्य रेल का सबसे बड़ा जंक्शन है और इसे रेलवे का चौराहा भी कहा जाता है। यहां से दिल्ली, मुंबई और कोलकाता का रूट सीधा है। यहां पश्चिम मध्य रेल का ऑपन माल गोदाम है, जहां सीमेंट के रैक आते हैं। इन रैक पॉइंट पर 30 सालों से हम्माली का काम कर रहे राम मनोहर ने बताया कि यहां करीब 300 से ज्यादा मजदूर हैं, जो सीमेंट के लोडिंग-अनलोडिंग का काम करते हैं। अधिकांश को सर्दी-खांसी की दिक्कत रहती है। कुछ को सांस लेने में भी समस्या होती है। ठेकेदार की ओर से मजदूरों को काम करते वक्त मास्क और हैंड-ग्लब्स नहीं दिए जाते हैं। राममनोहर ने बताया कि बीमार पड़ने पर खुद ही इलाज करवा लेते हैं।







publive-image



जबलपुर, इटारसी सहित सभी जगहों पर सीमेंट ढुलाई कर रहे ज्यादातर मजदूर सर्दी-खांसी या सांस की बीमारियों से पीड़ित







इटारसी में वायु प्रदूषण का आंखों देखा हाल







publive-image



इटारसी में सीमेंट की रैक पहुंचते ही हवा में पार्टिकुलेट मैटर की वैल्यू बहुत ज्यादा बढ़ गई 







सीमेंट की सप्लाई चेन से कितना प्रदूषण होता है, ये जानने के लिए हम इटारसी रेल माल गोदाम के ठीक सामने की मुख्य सड़क पर पहुंचे। जब मॉनीटर से पार्टिकुलेट मैटर (पीएम2.5 और पीएम10) की जांच की। ये जांच ठीक उस वक्त की गई, जब सीमेंट की रैक वहां पहुंची थीं। आश्चर्यजनक रूप से सिर्फ रैक के आने पर ही पीएम 2.5 की वैल्यू 215 से 220 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर और पीएम10 की वैल्यू 550 से 558 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के आसपास रही, जो परमीसिबल लिमिट से बहुत ज्यादा थी। पार्टिकुलेट मैटर की वैल्यू बहुत अधिक आने से मॉनीटर बीप करने लगा, जो इस बात की ओर संकेत है कि सीमेंट के रैक आने पर माल गोदाम के आसपास के एरिया में वायु प्रदूषण की स्थिति विस्फोटक हो जाती है। जबकि इस माल गोदाम के आसपास ही 25 हजार लोग स्थाई रूप से रह रहे हैं।





पीएम 2.5 और पीएम 10 क्या है?





PM को पर्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter) या कण प्रदूषण (particle pollution) भी कहा जाता है, जो कि वातावरण में मौजूद ठोस कणों और तरल बूंदों का मिश्रण है। हवा में मौजूद और उसे प्रदूषित करने वाले ये कण इतने छोटे होते हैं कि आप नग्न आंखों से भी नहीं देख सकते हैं। पीएम 2.5 का स्तर धुएं से ज्यादा बढ़ता है यानी कि अगर हम कुछ चीजें वातावरण में जलाते हैं, तो वो पीएम 2.5 का स्तर बढ़ाता है। वहीं पीएम 10 का मतलब होता है कि हवा में मौजूद कण 10 माइक्रोमीटर से भी छोटे हैं। जब पीएम 10 और पीएम 2.5 का स्तर 100 से ऊपर पहुंचता है, तो ये खराब श्रेणी को दर्शाता है यानी हवा में धूल, मिट्टी, धुंध के कण ज्यादा मात्रा में मौजूद हैं, जो आसानी से सांस के जरिए आपके फेफड़ों तक पहुंच सकते हैं।





रेलवे रैक आते ही जहरीली होने लगती है हवा





publive-image





समस्या ये है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड या रेलवे द्वारा ऐसे रैक प्वाइंट या माल गोदामों में प्रदूषण को मापने का कोई रियल टाइम मॉनीटर नहीं लगाया गया है। जिससे यहां काम करने वाले मजदूर, यहां से गुजरने वाले या रहने वाले लोगों को प्रदूषण की स्थिति का पता ही नहीं चलता। इसलिए यहां के लोगों को खतरे के बारे में पता ही नहीं। इटारसी रेल माल गोदाम में सीमेंट की लोडिंग-अनलोडिंग से होने वाले वायु प्रदूषण को लेकर क्या वाकई जिम्मेदारों को कोई जानकारी नहीं है, ये जानने हम इटारसी से 72 किमी दूर औद्योगिक नगरी मंडीदीप पहुंचे। यहां प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी अजय सराफ ने कहा कि इस संबंध में रेलवे को कई बार नोटिस जारी किए हैं। लेकिन इससे वायु प्रदूषण तो रुका नहीं। इटारसी में लोडिंग-अनलोडिंग के वक्त अब भी सीमेंट के कारण पार्टिकुलेट मेटर अपने खतरनाक स्तर पर पहुंच रहा है। ऐसे में त्वरित उपाय क्या हो सकते हैं, इसके लिए पीसीबी के आरओ अजय सराफ कहते हैं कि संबंधित एजेंसी को लगातार पानी का छिड़काव करते रहना चाहिए, ताकि सीमेंट की धूल न उड़े। वहीं हम्मालों को मास्क दिया जाना चाहिए।





सीमेंट उद्योग और वायु प्रदूषण पर हुए शोध





ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार सीमेंट इंडस्ट्री 6.9 % ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। वहीं वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप के साथ मिलकर बनाई गई नेट जीरो चैलेंज- द सप्लाई चेन अपरच्यूनिटी 2021 की रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर निर्माण (सीमेंट, स्टील और प्लास्टिक आदि) की सप्लाई चेन 10 फीसदी प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है।





सीमेंट की धूल से होने वाली बीमारियां





सीमेंट की धूल का लोगों की सेहत पर क्या असर हो रहा है इस पर शोध की दरकार है। राम मनोहर चिकित्सक डॉ. दीपक विश्वास से अपना इलाज करवाने की बात कर रहे थे। डॉ. विश्वास से भी हमने संपर्क किया। उन्होंने बताया कि उनके क्लीनिक में बीते दो साल में सांस के रोगियों की संख्या 25 प्रतिशत बढ़ी है और इसका मुख्य कारण रेलवे के माल गोदाम में रैक आने पर सीमेंट की लोडिंग-अनलोडिंग है। इस पूरी प्रक्रिया में सीमेंट की लगातार धूल हवा में उड़ती है और ये इस क्षेत्र में गंभीर वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है।





बीमारियों का कारण वायु प्रदूषण





भोपाल के श्वास रोग विशेषज्ञ डॉ. लोकेंद्र दवे का कहना है कि बहुत लंबे समय से हमें ये जानकारी है और ये स्थापित तथ्य है कि सीमेंट कणों जैसे कारकों की वजह से प्रदूषित हवा न सिर्फ सांस की बीमारियों बल्कि अन्य का कारण भी बनती है। प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से वायु प्रदूषण न्यूरो साइकाइट्रिक, कार्डिएक न्यूरोलॉजिकल समस्याओं का भी कारण बनता है। दरअसल, हम लोग देखते हैं कि सांस की जो बीमारी होती है वो तुरंत रिपोर्ट होती है। क्रॉनिक ब्रॉन्कायटिस, अस्थमा और फेफड़े का कैंसर जैसी सांस की तमाम बीमारियां पिछले 3 या 4 दशकों से लगातार बढ़ी हैं। हम आज से 20-30 साल पहले की बात करें तो उसके मुकाबले सांस के मरीज कम से कम 3 गुना बढ़ गए हैं, ऐसा हम ओपीडी में भी देखते हैं। शहरी क्षेत्र इन बीमारियों का कारण वायु प्रदूषण ही है। निश्चित रूप से सांस के पेशेंट बढ़ रहे हैं और इसके प्रति सभी वर्गों को, सभी लोगों, शासन, जनसामान्य को सचेत होने की आवश्यकता है। जाहिर है, मध्य प्रदेश में मजदूरों की परेशानी दूर करने के लिए और सीमेंट की धूल के कारण होने वाले वायू प्रदूषण को कम करने की जरूरत है।





( This story was produced with support from Internews Earth Journalism Network )



Cement labour facing air pollution in mp cement dust affects labour health in MP Jabalpur air pollution air pllution affects labour health Madhya Pradehsh industrial pollution air pollution in Madhya Pradesh cement dust health impact the sootr air pollution story मध्यप्रदेश में सीमेंट ढुलाई करने वाले मजदूरों को सांस संबंधी बीमारियां सीमेंट के कणों से बिगड़ रही मजदूरों की सेहत