BADNAWAR. धार जिले का बदनावर का नाम पहले बुद्ध नगर था जिसे गौतम बुद्ध के नाम पर रखा गया था। यहां स्थित एकवीरा माता मंदिर जिसे पांडवों की कुल देवी माना जाता है। बदनावर रतलाम, उज्जैन, इंदौर, झाबुआ जिलों के करीब है जितना शांत और संयमित ये इलाका है उतनी ही उथलपुथ भरा यहां का राजनीतिक मिजाज है। साल 2020 में सिंधिया के दलबदल के साथ ही बदनावर की राजनीति में भी बड़ा फेरबदल हुआ था। वर्तमान में प्रदेश के उद्योग मंत्री यहीं से आते हैं।
सियासी मिजाज
बदनावर एक अनारक्षित विधानसभा सीट है। इस इलाके में राजपूत और पाटीदार वोटर्स अधिक हैं। बीजेपी सरकार के उद्योग मंत्री और सिंधिया के खास सिपहसालार में से एक राजवर्धन सिंह दत्तीगांव विधायक हैं। साल 1957 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस के मनोहर सिंह मेहता ने यहां से जीत दर्ज की थी। अब तक हुए 13 चुनावों में कांग्रेस को 6 बार जनता पार्टी को एक बार जनसंघ को एक बार भारतीय जनसंघ को एक बार बीजेपी को 4 बार सफलता मिली। 2020 में प्रदेश में हुई राजनीतिक उठापटक में बदनावर भी शामिल था। यहां से विधायक दत्तीगांव ने इस्तीफा देकर बीजेपी की सदस्यता ली और उपचुनाव में जीतकर प्रदेश में उद्योग मंत्री का पद संभाला।
सियासी समीकरण
वर्तमान में राजवर्धन सिंह दत्तीगांव बीजेपी सरकार में उद्योग मंत्री हैं। दल बदल वाली इस सीट पर सिंधिया बीजेपी और पुरानी बीजेपी के बीच रस्साकशी जारी है। बीजेपी के मनोज सोमानी और राजेश अग्रवाल जहां दत्तीगांव को ज्यादा पसंद नहीं करते वहीं पूर्व विधायक खेमराज पाटीदार और भंवर सिंह शेखावत भी कई बार अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। धार बीजेपी जिलाध्यक्ष राजीव यादव की भी मंत्री के साथ खटपट की खबरें आती रहती हैं तो वहीं कांग्रेस में भी कुछ इसी तरह के हालात देखने को मिलते हैं।
टिंकू बना कर रहे दावेदारी
साल 2020 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने पहले अभिषेक उर्फ टिंकू बना को टिकट दिया था लेकिन इसे बदलकर कमल पटेल का नाम फाइनल किया गया 2023 में फिर एक बार इस सीट से टिंकू बना दावेदारी जता रहे हैं तो वहीं दो बार धार से चुनाव हार चुके कांग्रेस जिलाध्यक्ष बालमुकुंद सिंह गौतम सीट बदलकर फिर विधायकी के सपने सजा रहे हैं। हालांकि बालमुकुंद और राजवर्धन के बीच कांग्रेस के समय से ही काफी विवाद रहे हैं। ऐसे में दोनों ही दलों के लिए 2023 का चुनाव चुनौतियों भरा रहने वाला है।
जातिगत समीकरण
बदनावर विधानसभा क्षेत्र में जातिगत समीकरण हमेशा से ही प्रभावी फैक्टर रहा है। यहां की पूरी राजनीति राजपूत और पाटीदार मतदाता के इर्द गिर्द ही घूमती है। इस इलाके में किसानी करने वाले मतदाता भी अधिक हैं। बदनावर विधानसभा में वोटरों की संख्या लगभग 2 लाख 5 हजार है। इसमें राजपूत समाज के 35 हजार वोटर पाटीदार समाज के वोटर 25 हजार आदिवासी समाज के वोटरों की संख्या करीब 40 हजार तो वहीं 18 हजार वोट मुस्लिम और जाट, सिरवी, यादव, माली, राठौर समाज के वोटर्स भी हैं।
मुद्दे
बदनावर विधानसभा में खराब कानून व्यवस्था शुरु से ही बड़ा मुद्दा रहा है। इसके अलावा पीने के पानी की व्यवस्था न होना, बदनावर की बलवंती नदी में भारी प्रदूषण और प्राचीनतम मंदिरों में देखरेख का अभाव भी यहां के प्रमुख मुद्दों में शामिल है। बदनावर में बेरोजगारी और उद्योगों की कमी के चलते युवाओं में भारी नाराजगी है तो वहीं उद्योग मंत्री रहते इलाके में रोजगार के अवसर न होना बड़ा सवाल खड़ा करते हैं।
द सूत्र ने इलाके के प्रबुद्धजनों वरिष्ठ पत्रकारों और आमजनता से भी बात की उसमें कुछ सवाल निकल कर आए।
- 15 महीने विधायक रहे, उसके बाद बीजेपी सरकार में मंत्री बने, इलाके में करवाए कामों के बारे में बताएं ?
उद्योग मंत्री रहते इलाके में कितने उद्योग लगवाए
जनता के इन सवालों के जवाब उद्योग मंत्री राजवर्धन सिंह दत्तीगांव के पास नहीं थे वे जनता के सवालों से भागते नजर आए। वहीं बदनावर के ही राजेश अग्रवाल राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त हैं।
बदनावर की ऐतिहासिक विशेषता
बदनावर का नाम बुद्ध नगर यानी गौतम बुद्ध के नाम पर रखा गया था। बदनावर का पूर्व नाम वर्धमानपुर है। बदनावर प्राचीन मंदिरों के लिए जाना जाता है...जैसे पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित बैजनात महादेव मंदिर, कोटेश्वर महादेव मंदिर साथ ही यहां एकवीरा माता जी का मंदिर भी हे जिसे पांडव कालीन के समय का माना गया है, जो पांडव की कुल देवी भी हैं।
सियासी इतिहास
अगर राजनैतिक पार्टियों के प्रभाव की बात करें तो बदनावर विधानसभा सीट की सत्ता का रूप ऐसा रहा है कि यह सत्ता जनसंघ, भाजपा और कांग्रेस के बीच ही बदलती रही। बदनावर से 1985 में बीजेपी के रमेशचंद्र सिंह राठौर विधायक चुने गए थे तो 1990 में कांग्रेस के प्रेमसिंह दत्तीगांव ने बाज़ी मारी। साल 1993 में बीजेपी के रमेशचंद्र सिंह राठौर एक बार फिर विधायक बने। साल 1998 में बीजेपी के ही खेमराज पाटीदार बदनावर से विधायक चुने गए। वर्ष 2003 में कांग्रेस की तरफ से राजवर्धन सिंह दत्तीगांव विधायक चुने गए और 2008 में भी कांग्रेस के दत्तीगांव ने कार्यकाल रिपीट किया। साल 2013 में बीजेपी के भंवरसिंह शेखावत विधायक बने तो वहीं 2018 में कांग्रेस की तरफ से राजवर्धन सिंह दत्तीगांव फिर विधायकी जीती इसके बाद 2018 में जब ज्योतरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हुए तो उनके साथ करीबी राज्यवर्धन सिंह भी थे और अब बदनावर में बीजेपी सरकार हैं।
सत्ता के विपरीत रही परंपरा
बदनावर विधानसभा सीट का इतिहास देखा जाए तो कुछ अपवाद छोड़कर यहां हमेशा सत्ता के विपरित निर्णय लेने की परम्परा रही है। सन 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी सहानुभूति लहर जैसे माहौल में जब कांग्रेस ने पूरे प्रदेश में जबरदस्त बहुमत प्राप्त हासिल किया था लेकिन बदनावर में कांग्रेस उम्मीदवार चुनाव हार गए थे। यहां से भाजपा के रमेश चंद्रसिंह राठौर ने जीत दर्ज की थी। इसी प्रकार 1989 मे पूरे देश में राम लहर चली थी और प्रदेश में भाजपा ने बंपर सीटें लेकर सरकार बनाई थी, तब भी यहां के मतदाताओं ने भाजपा की बजाए कांग्रेस के उम्मीदवार प्रेमसिंह दत्तीगांव को जितवाकर भेजा था। इसी तरह 1993 में जब प्रदेश मे कांग्रेस का जादू सिर चढ़कर बोल रहा था और कांग्रेस का हर छोटा बड़ा नेता जीत गया था लेकिन बदनावर के मतदाताओं ने कांग्रेस के बजाए भाजपा पर विश्वास जताया था।
आज के सियासी हाल
समझने पर पता चलता है कि स्थानीय भाजपा नेताओं में मंत्री राजवर्धन सिंह दत्तीगांव को लेकर काफी नाराजगी भी है क्योंकि दत्तीगांव के बीजेपी में आने से कहीं न कहीं पहले से बीजेपी के लिए काम कर रहे नेता अपने आपको साइडलाइन फील करते हैं। साथ ही और सियासी गलियारों में एक बड़ा मुद्दा है दोनो ही मुख्य पार्टियों के बागी नेता दरअसल, 2018 में हुए चुनाव में भाजपा के बागी राजेश अग्रवाल 30,000 से अधिक वोट लेकर आए थे जिससे भाजपा के उम्मीदवार भंवर सिंह शेखावत को कांग्रेस के उम्मीदवार राजवर्धन सिंह दत्तीगांव के सामने हार का सामना करना पड़ा था। ये बात और है कि बाद में यही राज्यवर्धन कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए।
मुद्दे
बदनावर के किसानों से बात करने से पता चला कि किसानों को खाद और बीज की बेहद समस्या है। किसानों को बीज और खाद देरी से मिल रहें हैं जिससे फसल ख़राब हो रही है अगर बीज मिलता भी है तो तो महंगे दामों पर भी मिल रहा है। सबसे अधिक जरूरत खाद की होती है, वह भी किसानों को समय पर नहीं मिल पा रही है। खाद के लिए किसान अधिकारियों के चक्कर लगा रहे हैं। किसानों का कहना है कि समय पर खाद नहीं मिलने पर फसलों का उत्पादन प्रभावित होने की आशंका बनी रहती है। इस मुद्दे पर बीजेपी मानने को तैयार नहीं की खाद की कोई कमी है..तो वहीं कांग्रेस भी इसमें सरकार पर किसानों को दरकिनार करने का आरोप लगाती है।
बलवंती नदी में प्रदूषण
नगर के मध्य से बहने वाली, लगभग 15 से 20 किमी लंबी बलवन्ती नदी अब कूड़ादान बन चुकी है। नदी के आसपास फैले अतिक्रमण ने नदी का स्वरुप ही बदल दिया है। अब यह मात्र नाला बनकर रह गई है। ऐसे में इसके अस्तित्व पर भी खतरा मंडराने लगा है। नदी में शहर का गंदा पानी आकर मिलता है। यहां तक कि कूड़ा कचरा भी इसी में डाला जाता है। गंदे पानी की पर्याप्त निकासी के अभाव में दुर्गंध फैल गई है। नदी के किनारे आनंदेश्वर महादेव मंदिर, धर्मराज मंदिर, नागेश्वर धाम आदि मंदिर भी है, लेकिन नदी से फैलती बदबू से श्रद्धालु परेशान हैं।
सांस लेना भी दूभर
नदी के आसपास रहने वालों का तो सांस लेना भी दूभर हो गया है। इसके उद्धार का इंतजार लंबे अरसे से नगरवासियों को है, लेकिन यह नहीं हो पा रहा है। दरअसल, बलवन्ती नदी का उद्गम स्थल ग्राम पिटगारा के पास पिंगरोला से हुआ है। जो बदनावर, ग्राम खेड़ा एवं नागेश्वर होते हुए ग्राम पंचायत सांगवी के ग्राम दौलतपुरा के पास बागेड़ी नदी में जाकर मिलती है। इसमें करीब 20 गांवों का पानी मिलकर जाता है। यह दो नगर सहित दो ग्राम पंचायतों पिटगारा एवं खेड़ा से होकर बहती है। ग्रामीण क्षेत्र होने से जनपद अंतर्गत आते हैं। जबकि नगर में बस स्टैंड से होकर गुजरने पर यह हिस्सा नगर परिषद के अंतर्गत आता है, लेकिन नदी के गहरीकरण व अतिक्रमण मुक्त करने की ओर न तो जनपद ध्यान दे रही है और न ही परिषद। चुनाव के दौरान बलवंती नदी के सौंदर्यीकरण का मुद्दा जरुर उठाया जाता है, लेकिन चुनाव बाद इसकी सुध नहीं ली जाती। नदी में कूड़ा-कचरा डालने व इसके किनारों पर अतिक्रमण करने से यह उथला गई है। गर्मी के दिनों तो हालत और खराब हो जाती है।
17 सालों से आश्वासनों की घुट्टी पिलाई जा रही
बलवंती नदी का कायाकल्प हर छोटे-बड़े चुनाव में यहां के बांशिंदों के लिए प्रमुख मुद्दा रहा है। गत 17 सालों में आश्वासनों को ढेर बढ़ता गया । 17 सालों में नदी के कायाकल्प को लेकर अनेक बार योजनाएं बनी प्रोजेक्ट बनाकर भेजे गए लेकिन सार्थक परिणाम नहीं मिल पाए। हालांकि सन 2005 में तत्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती ने बदनावर प्रवास के दौरान बलवंती की हालत पर चिंता जताते शीघ्र कायाकल्प के प्रस्ताव भेजने को कहा था। बाद में बाबूलाल गौड़ मुख्यमंत्री के रूप में बदनावर आए थे । उन्होंने भी नदी के प्रति चिंता जताते कायाकल्प की बात कही थी। बाद में मुख्यमंत्री बने शिवराजसिंह चौहान को भी जनप्रतिनिधियों ने बलवंती के कायाकल्प की गुहार की थी।
निजाम बदले, समस्या जस की तस
नदी का कोई उद्धार नहीं हो पाया। सन 2013 में विधायक बने भंवरसिंह शेखावत ने भी बलवंती नदी कायाकल्प की डीपीआर बनवाई उनके विधायक कार्यकाल में उनकी ही पार्टी की सरकार होने के बावजूद कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आ सके। सन 2018 के चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनी, बदनावर से कांग्रेस से ही राजवर्धनसिंह दत्तीगांव विधायक बने, अपनी सरकार आते ही उन्होंने 12 करोड़ की लागत से बलवंती के कायाकल्प की डीपीआर बनवाई लेकिन कांग्रेस सरकार के जाते ही मामला फाइलो में दब गया। अब फिर प्रदेश में भाजपा की सरकार है। लेकिन अभी तक कार्य नहीं हो पाया है। सरकार के इस रवैये से बदनावर के निवासियों में बहुत रोष हैं।
प्राचीनतम मंदिरों में देखरेख का अभाव
नगर की पहचान और अतिप्राचीन श्री बैजनाथ महादेव मंदिर आज देखरेख के अभाव में जर्जर है। बैजनाथ महादेव मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है। गुडी पडवा पर इसके नाम से यहां परपंरागत मेला भी लगता है। हर राजनीतिक या धार्मिक आयोजन की शुरुआत यहीं से होती है । यह इमारत पुरातत्व विभाग के अधीन संरक्षित है। इसे राज्य सरकार द्वारा 1980 में मंदिर को संरक्षति इमारत घोषित कि या गया था। विभाग द्वारा इसे परमारकालीन बताया जाता है। जबकि कुछ इतिहासविद इसका निर्माण सातवीं सदी में होना बताते है। इसे उडनिया मंदिर भी कहा जाता है।
पर ये देखने को मिला कि मंदिर भले ही पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है फिर भी बैजनाथ महादेव पर लंबे समय से न तो पुरातत्व विभाग ध्यान दे रहा है और न ही शासन प्रशासन। मंदिर की दीवारों में दरारें आ गईं हैं और ऊपरी हिस्से में जगह-जगह घास उग आईं हैं, जो मंदिर की दीवारों को धीरे-धीरे कमजोर बना रही है। मंदिर का सभा मंडप और कुछ हिस्सा लंबे समय पहले गिर चुका है। तब भी पुरातत्व विभाग द्वारा इसके रखरखाव की ओर ध्यान नहीं दिया गया। 2007 में विभाग द्वारा इसका जीर्णोद्धार किया गया था। तब पत्थरों के क्षरण को रोकने के लिए रासायनिक प्रक्रिया से उपचार किया गया था। लेकिन इसके बाद इसकी कोई सुध नहीं लिए जाने के कारण इमारत पुनः क्षरण की स्थिति में आ गई है।
नशे का कारोबार बड़ा मुद्दा
क्षेत्र में जुआ-सट्टा नशे के कारोबार बड़ा मुद्दा है। यहां बड़े स्तर पर जुए अड्डे क्षेत्र के अनेक गांवों में चल रहे हैं। बदनावर में इंदौर, रतलाम, बड़नगर भाट पचलाना, धार, पेटलावद, सरदारपुर, राजगढ़, लाबरिया, राजोद, बिलपांक, गौतमपुरा, देपालपुर सहित कई बड़े शहरों के जुआरी नियमित रूप से जुए के अड्डों पर पहुंचते हैं। बेरोजगारी से जूझ रहे बदनावर में सटोरिए, जुआरियों ने अस्थाई अड्डे बना रखे हैं। प्रशासन इस पर लगाम लगाने में असफल है। कांग्रेस एवं बीजेपी दोनों के ही नेता इस मुद्दे पर एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते नज़र आते हैं।
बेरोजगारी और उद्योगों की कमी, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की भी समस्या
वही अगर हम बात करें बदनावर में विकास की तो इसके लिए योजनाएं तो बहुत बनी लेकिन धरातल पर विधानसभा क्षेत्र में विकास उस तरह दिखाई नहीं देता है जैसा कि एक मंत्री के निर्वाचन क्षेत्र में होना चाहिए। बदनावर विधानसभा बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य सुबिधाओं जैसी बुनियादी जरूरतों की कमी से जूझ रहा है। बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है क्योंकि रोजगार के साधन हैं नहीं। नतीजा लोग पलायन को मजबूर हैं।
स्वच्छता के मामले में फिसड्डी
हालांकि क्षेत्र में सोया प्लांट है और वंडर सीमेंट के प्लांट हैं लेकिन आरोप लगते हैं कि इनमें लोकल लोगों को रोजगार न देकर बहार से लोगो को नौकरी दे दी जाती है। .स्कूली शिक्षा और उच्च शिक्षा भी बदहाल है कहीं स्कूल में शिक्षक हैं तो बिल्डिंग नहीं अगर बिल्डिंग हैं तो शिक्षक नही। उच्च शिक्षण संस्थानों की कमी के चलते छात्र बड़े शहर जाने को मजबूर हैं। शिक्षा की तरह ही स्वास्थ्य सुविधाओं का भी बुरा हाल है। स्वच्छता के मामले में तो विधानसभा सीट बिलकुल ही फिसड्डी है।
पानी की कमी
भंवरसिंह शेखावत के विधायकी के कार्यकाल में सिंचाई परियोजना के लिए बदनावर तहसील में नर्मदा का पानी लाने के प्रयास को हरी झंडी मिली थी। बदनावर माइक्रो लिफ्ट इरिगेशन योजना की डीपीआर तैयार होने की बात भी कही गई थी। पर ये बात अभी तक धरातल पर पूरी नहीं हुई और किसानो को पानी की समस्या बनी हुई है।
दो-दो मंत्रियों के बाद विकास को तरस रहा
जनप्रतिनिधियों से और आम जनता से बात करके बदनावर की जो कुल तस्वीर समझ में आती है वो ये है कि सीट से दो मंत्री उद्योग मंत्री राजयवर्धन सिंह दत्तीगांव और राजयमंत्री राजेश अग्रवाल होने के बावजूद क्षेत्र अभी भी विकास को तरस रहा है। पब्लिक का साफ़ कहना है कि चुनावों के वक़्त पार्टियां आती हैं और बड़े-बड़े वादे करती है पर कोई वादा पूरा नहीं हुआ है और अगली सरकार वो उसीकी देखना चाहेंगे जो उनको सुविधाए दे सके और अपने वादे पूरे कर सके। साफ़ है कि बीजेपी के दत्तीगांव के लिए मिशन 2023 आसान नहीं रहने वाला है तो वही कांग्रेस को अब भी यहां से एक मजबूत चेहरा ढूंढने की जरुरत आ पड़ी है।
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