/sootr/media/post_banners/13b9f0a600bfbd6ed6b058f962eef36675811f7d850b8c3bf28ac97336c8a161.jpeg)
Bhopal. प्रदेश की पहली रामसर साइट के संरक्षण को लेकर सरकार और जिम्मेदार एजेंसियां कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भोपाल के बड़े तालाब के चारों ओर परिक्रमा करने पर भी आपको एक भी बोर्ड लगा ऐसा नहीं मिलेगा जिसमें लिखा है यह रामसर साइट है गंदगी और अतिक्रमण न करें, जबकि बड़े तालाब को रामसर साइट घोषित हुए ही 20 साल हो चुके हैं। ग्राउंड जीरो पर जाकर जब द सूत्र ने मामले की पड़ताल की तो पता चला वैटलैंड के बीच से ही सड़क गुजार दी है। सूरजनगर से बिसनखेड़ी के बीच कई जगह ऐसी साइट देखने को मिली जहां कचरा डंप कर पानी को पीछे की ओर धकेला जा रहा है, ताकि धीरे से वैटलैंड की जमीन पर कब्जा कर निर्माण किया जा सके। जबकि यह तो पूरा एरिया वैटलैंड है निर्माण की बात तो छोड़िए रामसर साइट घोषित होने के बाद इसके संरक्षण के नियमों का और सख्ती से पालन किया जाना चाहिए था। पर्यावरणविद् कमल राठी का तो यहां तक कहना है कि तालाब में कचरा डंप नगर निगम ही कर रहा है, अब इसके पीछे डीजल की बचत भी हो सकती है और वैटलैंड की जमीन हथियाना भी।
तालाब के बाद सड़क और फिर मुनारें!
सूरजनगर के पास कई जगह ऐसी भी हैं जहां पहले तालाब का पानी भरा हुआ है, फिर सड़क बनी है और उसके बाद बड़े तालाब की हद बताने वाली मुनारे लगी है। अब या तो मुनारों ने सड़क पर अतिक्रमण कर लिया है या सड़क ही बड़े तालाब पर अतिक्रमण कर बना ली है। दरअसल बड़े तालाब के एफटीएल यानी जब बड़ा तालाब पूरी तरह से भरा जाता है तब उसका पानी जहां तक जाता है, वहां पर ये मुनारे लगी है। नियम कहता है कि एफटीएल से 250 मीटर तक ग्रीन बेल्ट रहेगा, हालांकि इसे लेकर भी विवाद है, जिसका खुलासा हम आगे की कड़ी में करेंगे। पर यहां तो हालात यह है कि 250 मीटर तो छोड़िए मुनारों के अंदर घुसकर ही निर्माण हो रहे हैं।
अमिताभ बच्चन से लेकर रसूखदारों तक की जमीन होने का दावा
वैटलैंड की जमीन किस हद तक प्रभावशील लोगों के चंगुल में जा फसी है इसे समझाने के लिए सिर्फ एक ही नाम काफी है अमिताभ बच्चन। द सूत्र की टीम जब ग्राउंड जीरो पर जाकर पूरे मामले की पड़ताल कर रही थी तब टीम को वह शख्स भी मिला जिसने शदी के महानायक अमिताभ बच्चन की जमीन में ट्रेक्टर से गढ़ा मचाया। उसने दावा किया कि अमिताभ बच्चन की जमीन पर एक गार्ड तैनात रहता है और इस जमीन का रखरखाव सूरजनगर का कोई व्यक्ति कर रहा है। एक अन्य चौकीदार ने बताया कि यहां विधायक से लेकर बड़े—बड़े अधिकारियों तक की जमीन है। यह जमीन वही है जिसे बड़े तालाब के लिए संरक्षित किया जाना चाहिए था।
आपको खरीदना है तो खुलेआम बिक रही जमीन
पर्यावरणविदों का साफ कहना है कि सरकार ने तालाब के संरक्षण की जगह अंदर निर्माण करवा रखे है। तालाब को खत्म करने का खेल नीचे से उपर तक चल रहा है, यही कारण है कि यहां खुलेआम जमीन के सौदे भी हो रहे हैं। ऐसी ही एक जमीन खरीदी की चर्चा द सूत्र ने भी की। आश्चर्यजनक रूप से वहां अन्य जमीन पर तैनात चौकीदार को जमीन से संबंधित पूरी जानकारी थी, कहां ग्रीन बेल्ट है, कहां लो डेंसिटी एरिया है। चौकीदार ने हमें एक 12 हजार वर्गफीट की जमीन भी दिखाई। उसके अनुसार हमारे लिए यह जमीन सही है, क्योंकि बड़े तालाब का नजारा नजदीक से देखने को मिलेगा। पूछने पर उसने बताया किसी कमीश्नर की यह जमीन है जो भोपाल से बाहर पदस्थ हैं। चौकीदार को यह तक मालूम था कि किस लैंडयूज में क्या हो सकता है। उसने साफ कहा सेंटिंग है तो कोई दिक्कत नहीं होगी।
प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारी के बंगले तक पहुंचने बनवाई जा रही सड़क
आम और खास में यही अंतर होता है। भोपाल में रहने वाले लाखों लोग खराब सड़कों से सालों से परेशान है पर जिम्मेदारों की कान में जूं तक नहीं रेंग रही, लेकिन प्रदेश के एक वरिष्ठ अधिकारी के बंगले तक जाने के लिए उच्च क्वालिटी की सड़क बनवाई जा रही है। आपको यह जानकार हैरानी होगी कि बिशनखेड़ी के बनयान ट्री स्कूल के सामने से होकर नाथ बरखेड़ा की ओर जाने वाली इस करीब डेढ़ किमी लंबी सड़क पर सिर्फ 3 ही मकान है। जाहिर सी बात है ट्राफिक न के बराबर। इसके बावदूज यहां लगातार काम चल रहा है...बारिश का कोई बहाना नहीं। यह बहाना सिर्फ आम नागरिकों के लिए अधिकारी इस्तेमाल करते हैं। यहां काम करने वाले एक कर्मचारी ने बताया कि सड़क का निर्माण शुरू हुए 2 महीने हुए हैं, 60 दिन के अंदर सड़क भी बनकर तैयार हो जाएगी। जिस वरिष्ठ अधिकारी का बंगला यहां है, उस तक उन्हें या उनके बंगले पर आने वाले अधिकारियों को दिक्कत न हो, इसलिए सड़क गांव के अंदर से न लेकर घुड़सवार एकेडमी के पास से बायपास होकर गुजारी गई है।
अब बात नियम की...
बड़े तालाब का ग्रीन बेल्ट एफटीएल से 250 मीटर तक है। पर्यावरणविद् कमल राठी ने बताया कि सूरजनगर से बिशनखेड़ी की ओर जाने वाली सड़क के राइट साइड का एरिया बॉटनीकल गार्डन के लिए आरक्षित है। यहां निजी भूमि होने पर भी बिल्डिंग परमीशन या टाउन प्लानिंग परमीशन नहीं मिल सकती। यहां एक कच्चा अस्थायी निवास सिर्फ चौकीदार के लिए ही बनाया जा सकता है। सूरजनगर से बिशनखेड़ी की ओर जाने वाली सड़क के लेफ्ट साइड का एरिया का लैंड यूज एग्रीकल्चर है। यहां 1 एकड़ पर 4 हजार और लो डेंसीटी एरिया होने पर 600 वर्गफीट निर्माण की अनुमति मिल सकती है।
प्राइवेट निर्माण को जस्टिफाई करने इस तरह खेला जा रहा खेल
प्राइवेट निर्माण को लेकर आने वाले समय में कोई उंगली न उठा सके, इसके लिए पूरे सुनियोजित ढंग से खेल खेला जा रहा है। सबसे पहले लैंड का मद परिवर्तित कर उसे पीएसपी यानी पब्लिक सेमी पब्लिक कर दिया जाता है, क्योंकि पीएसपी में ज्यादा निर्माण की छूट रहती है। इसके बाद यहां सरकारी बिल्डिंगें तान दी जाती है। पर्यावरणविद् सुभाष पांडे का कहना है कि बड़े तालाब के कैचमेंट पर वैटलैंड अथॉरिटी, नगर निगम और प्रशासन के बड़े अधिकारी ही अतिक्रमण करवा रहे हैं। प्राइवेट पॉर्टी के लिए यहां रास्ता कैसे खुले... उसके लिए पहले ये लोग सरकारी बिल्डिंग का निर्माण शुरू कर देते हैं, सरकारी बिल्डिंग बनेगी, फिर उसके जाने के लिए रास्ता बनेगा तो फिर उसी रास्ते के आसपास प्राइवेट निर्माण हो जाएंगे। इसके बाद इन निर्माणों पर कोई सवाल खड़े नहीं कर सकेगा। सूरज नगर, बिशनखेड़ी से होते हुए नाथ बरखेड़ा के बीच में बने स्पोर्ट अथॉरिटी आफ इंडिया यानी साई, घुड़सवारी एकेडमी, प्रस्तावित खेल मैदान, व्हाइट टोपिंग सड़क इसी तरह के उदाहरण है।