संजय गुप्ता, INDORE. श्री बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर की बावड़ी में 36 लोगों की मौत के बाद चल रही राजनीतिक लड़ाई के बीच कांग्रेसी नेता आपस में ही भिड़ गए हैं। मामला निगमायुक्त प्रतिभा पाल को लेकर है। कांग्रेस नेता शहर कोषाध्यक्ष शैलेष गर्ग, पिंटू जोशी और अन्य ने जूनी इंदौर पुलिस थाने में एक आवेदन दिया कि इस मामले में केवल मंदिर ट्रस्ट के पदाधिकारी दोषी नहीं है, उनके साथ स्थानीय पार्षद, विधायक, सांसद, महापौर और अन्य निगम अधिकारियों के साथ निगमायुक्त प्रतिभा पाल भी दोषी है, सभी के खिलाफ केस दर्ज होना चाहिए। इस आवेदन की खबर लगने के बाद नेता प्रतिपक्ष नगर निगम चिंटू चौकसे ने शैलेष गर्ग को फोन कर दिया और सख्त लहजे में कहा कि आवेदन में निगमायुक्त पाल का नाम क्यों लिख दिया, वह तो अपने सभी काम करती हैं और इस मामले में उनका लेना-देना नहीं है, उन्हें बेवजह मत घसीटो। बताया जा रहा है कि इस मामले में दोनों के बीच बहस भी हुई। उधर, गर्ग से जब द सूत्र ने बात की तो उन्होंने चौकसे की इस मामले में फोन आने की पुष्टि की।
चौकसे बोल रहे थे कि निगमायुक्त ने तो नोटिस दिया था
गर्ग ने बताया कि मैंने थाने में पार्षद, स्थानीय विधायक, सांसद के साथ ही निगमायुक्त पर भी कार्रवाई के लिए आवेदन दिया था। इस पर चौकसे का फोन आया था। उन्होंने मुझे कहा था कि निगमायुक्त का इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है, निगमायुक्त की क्या गलती है, उन्होंने तो नोटिस जारी कराए थे। तब मैंने उन्हें बताया था कि केवल नोटिस जारी करने से क्या होता है, वह निर्माण तोड़ा थोड़े था। मैंने तो वाट्सएप पर निगमायुक्त को इसे लेकर शिकायत भी भेजी थी। बाद में चौकसे जी बात समझ गए थे।
ये भी पढ़ें...
नेता प्रतिपक्ष ने अपने प्रेस नोट में यह लिखा था
घटना के बाद नेता प्रतिपक्ष चौकसे ने कार्रवाई को लेकर प्रेस नोट जारी किया था। इसमें कहा था कि बावड़ी मामले में पूर्व में दिए गए नोटिस तो अब घटना होने के बाद नगर निगम के अधिकारियों के द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से जानकारी देकर स्वयं को बचाने की कोशिश की जा रही है। इसमें सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि जब नोटिस जारी किया गया था तो फिर उसके बाद में कार्रवाई क्यों नहीं की गई? ऐसे में आज की घटना के लिए क्या इस लापरवाही को भी जिम्मेदार नहीं माना जा सकता है? घटनास्थल पर सांसद शंकर लालवानी के समर्थकों के द्वारा कब्जा करते हुए अवैध निर्माण कराया गया था। इसी स्थान पर क्षेत्र के पार्षद का कार्यालय भी है। वहां पर क्षेत्र के विधायक का भी अनवरत आना-जाना बना रहता है। उसके बावजूद अतिक्रमण को अनदेखा किया गया, जो कि इस हादसे का सबसे बड़ा कारण बना। इस मामले में बीजेपी नेता और निगम प्रशासन सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं। रेस्क्यू टीम का अभाव लोगों के लिए जानलेवा साबित हुआ।
पुलिस ने डीएसआर में बावड़ी मामले में दर्ज केस ही छिपा लिया
पुलिस विभाग द्वारा हर दिन मीडिया को सभी थानों में दर्ज हुई एफआईआर की शार्ट समरी यानि डीएसआर (डेली सिचुएशन रिपोर्ट) ईमेल पर जारी की जाती है। लेकिन इस मामले में पुलिस ने डीएसआर में बावड़ी हादसे की एफआईआर को ही छिपा लिया था। यह एफआईआर 31 मार्च की अल सुबह तीन बजकर 15 मिनट पर दर्ज की थी जिसमें मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष सेवाराम गलानी और सचिव मुरली सबनानी पर गैर इरादतन हत्य का केस दर्ज हुआ था। इसे एक दिन बाद यानि एक अप्रैल की डीएसआर में आना चाहिए था, लेकिन एक अप्रैल हो या दो अप्रैल या तीन किसी भी दिन डीएसआर में यह जानकारी ही नहीं दी गई। यह एफआईआर क्रमांक 117 था। इसके पहले 30 मार्च को जारी हुई डीएसआर में जूनी इंदौर थाना में एफआईर क्रमांक 116 दर्ज होने की जानकारी दी गई थी, इसके बाद दो अप्रैल को जारी डीएसआर में पुलिस विभाग ने एफआईआर क्रमांक 118 व 119 की जानकारी दी है यानी बावड़ी हादसे में दर्ज एफआईआर क्रमांक 117 को गायब कर दिया गया है।
यह दिखाने की कोशिश कि सीएम के सख्ती के निर्देश पर हुआ केस
31 मार्च को सुबह सीएम शिवराज सिंह चौहान ने इंदौर का दौरा किया और इस दौरान मीडिया से चर्चा में कहा कि दोषियों पर सख्त कार्रवाई होगी। सीएम के इंदौर से जाने के बाद यह जानकारी सोशल मीडिया पर आई कि मंदिर ट्रस्ट और सचिव के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का केस हुआ है, फिर थोड़ी देर में खबर आती है कि निगम ने भी भवन अधिकारी और इंस्पेक्टर को सस्पेंड कर दिया है। यानी यह पूरा संदेश देने की कोशिश की गई कि सीएम सख्त है और उनके आदेश के बाद यह सब एक्शन हुआ है। जबकि यह एफआईआर मृतक इंदर हवानी के बेटे अश्विन हवानी निवासी 345, साधु वासवानी नगर के कथनों के आधार पर सुबह 3.15 बजे ही लिखी जा चुकी थी। निरीक्षक नीरज कुमार मेडा थाना प्रभारी की सूचना पर ही यह एफआईआर हुई है और इसमें घटना का समय 30 मार्च को सुबह 11 बजकर 40 मिनट लिखा गया है।