मध्यप्रदेश में टिकट कटने के डर से मंत्री-विधायक अपना रहे नया फॉर्मूला, समाज के नाम पर शक्ति प्रदर्शन से क्या होगा फायदा?

author-image
Harish Divekar
एडिट
New Update
मध्यप्रदेश में टिकट कटने के डर से मंत्री-विधायक अपना रहे नया फॉर्मूला, समाज के नाम पर शक्ति प्रदर्शन से क्या होगा फायदा?

BHOPAL. मध्यप्रदेश में पहले ही हाल-बेहाल, उस पर कर्नाटक की हार। फिलहाल बीजेपी के लिए बुरी खबरों की फेहरिस्त लगी हुई है। किसी सर्वे से राहत भरी रिपोर्ट नहीं मिली है। उस पर पुराने नेताओं ने बगावत शुरू कर दी है। प्रदेश की सियासत में मची इस उथल-पुथल के बीच सीएम शिवराज सिंह चौहान और उनके मंत्रियों ने वोट बैंक को साधने की एक नई जुगत निकाल ली है। ये जुगत कुछ कुछ यूपी और बिहार की राजनीति की तर्ज पर है, लेकिन इंतजाम कुछ ऐसा है कि न हींग लगे न फिटकरी और रंग चोखा आने की उम्मीद पूरी है।





वोटर्स को साधने की कवायद





मध्यप्रदेश में वोट बैंक को साधने के लिए बीजेपी जो न कर सके वो कम है। मतदाताओं के बीच नाराजगी किस कदर है इसका अंदाजा तो विकास यात्रा के दौरान हो ही चुका है, लेकिन बीते कुछ दिनों में कुछ ऐसे घटनाक्रम भी हुए हैं जिसने बीजेपी को वोट बैंक साधने की एक और राह दिखा दी है। ये रास्ता बनना शुरू हुआ है लोधी आंदोलन के जरिए। ये उस वक्त की बात है जब एक समाज विशेष पर की गई टिप्पणी के चलते प्रीतम लोधी को बीजेपी ने निकाल दिया था, लेकिन समाज के गुस्से के डर से उन्हें निकालने वाले वीडी शर्मा ने ही बड़े सम्मान के साथ उनकी वापसी करवाई।





चुनाव को प्रभावित करता है समाजों का दबदबा





समाजों का यही दबदबा हर चुनाव को प्रभावित करता है। वैसे तो यूपी और बिहार के चुनाव में जातिगत राजनीतिक समीकरण बनाकर रखना बड़ी मजबूरी हुआ करता है, लेकिन 2018 के चुनाव के बाद से मध्यप्रदेश में भी ये समीकरण प्रभावी दिखाई देने लगा है। इसका उदाहरण है माई का लाल वाला सीएम शिवराज सिंह का बयान। जिसके बाद ग्वालियर चंबल का ब्राह्मण समाज बीजेपी से नाराज बताया गया था। इस नाराजगी का खामियाजा बीजेपी ने 2018 की चुनावी हार के रूप में भुगता। जिसके बाद मध्यप्रदेश में भी हर समाज की ताकत को अनदेखा करना बड़ी गलती साबित हो सकता है।





हर जगह समाज के शक्ति प्रदर्शन





अब बीजेपी समाजों की इसी ताकत और एकजुटता को कैश कराने के मूड में नजर आ रही है। वैसे आइडिया तो पुराना है, लेकिन नए कलेवर के साथ मध्यप्रदेश की सत्ता में उठापटक कर रहा है। आपको याद ही होगा 2018 से पहले सीएम हाउस में अलग-अलग समाज और तबकों की पंचायत हुआ करती थी। उस पंचायत में हर समाज या तबके के लिए खास घोषणाएं हुआ करती थीं। इस बार भी ऐसा ही हो रहा है, लेकिन इस बार ये सरकारी आयोजन की जगह हर समाज के शक्ति प्रदर्शन के रूप में हो रहे हैं। जिनके मंच पर मंत्रियों की आमद दर्ज होती है। क्या इसका एक पहलू ये नहीं है कि अब आयोजन भी समाज का होता है और घोषणा भी उनके लिए होती है। सरकार पर कोई बोझ नहीं। खैर ये बात अलग है। फिलहाल तो ये समझिए कि कौनसा समाज अपनी ताकत दिखाने के लिए कतार में है और इस तरह के शक्ति प्रदर्शन से मंत्रियों को क्या लाभ होता है।





समाज के शक्ति प्रदर्शन से बदल जाता है राजधानी का नजारा





किसी समाज का शक्ति प्रदर्शन होता है तो राजधानी भोपाल का नजारा ही बदला हुआ होता है। किसी चुने हुए मैदान में समाज के लोगों का जमावड़ा होता है। समाज के बैनर-पोस्टर से पूरा शहर पट जाता है। महाकुंभ या महासभा जिस भी नाम से आयोजन होता है उसके पोस्टर गाड़ियों पर भी चस्पा होते हैं। जो शहर-शहर गुजरते हुए ही प्रचार करती चली जाती हैं। साल 2023 की शुरूआत से अब तक कई सामाजिक और जातीय संगठन राजधानी भोपाल में शक्ति प्रदर्शन कर चुके हैं।





भोपाल में समाज के शक्ति प्रदर्शन







  • सबसे पहले 7 जनवरी को भोपाल के जंबूरी मैदान में करणी सेना का 3 दिवसीय आंदोलन हुआ। 



  • 10 फरवरी को आदिवासी सुरक्षा मंच ने भोपाल में 80 हजार आदिवासियों के साथ डी-लिस्टिंग रैली निकाली।


  • भोपाल के गोविंदपुरा दशहरा मैदान में 11 फरवरी को भीम आर्मी और पिछड़ा वर्ग की अधिकार रैली हुई।


  • 31 मार्च को आरएसएस के बैनर तले सिंधु महासभा का महा सम्मेलन हुआ।


  • 2 अप्रैल को भोपाल में सिंधु और साहू तैलिक समाज भी शक्ति प्रदर्शन कर चुके हैं।


  • 14 मई को जाट महासभा का शक्ति प्रदर्शन हो चुका है।


  • 4 जून को 11 सूत्रीय मांगों को लेकर ब्राह्मण महासभा का शक्ति प्रदर्शन होना है। 


  • 4 जून को ही भारतीय क्षत्रिय किरार महासभा का युवक युवती परिचय सम्मेलन होना है।






  • इस तरह के आयोजन से सभी जातियों प्रदेश में अपनी आबादी के अनुपात में राजनीतिक हिस्सेदारी की मांग कर रही हैं।





    4 जातियों को साधने के लिए बनाए 4 बोर्ड





    इसके अलावा 4 जातियों को साधने के लिए उनके बोर्ड बना भी दिए गए हैं। स्वर्ण कला बोर्ड, रजक कल्याण बोर्ड, तेलघानी बोर्ड और विश्वकर्मा कल्याण बोर्ड बनाने के आदेश जारी किए जा चुके हैं। इनमें से बहुत से शक्ति प्रदर्शन ऐसे भी हुए हैं जिसमें समाज से जुड़े मंत्री या विधायक भी पहुंचे हैं। उनका इशारा भी साफ है। शक्ति प्रदर्शन में शामिल होकर वो अपने साथ जुड़े वोट बैंक और उसकी ताकत जाहिर कर रहे हैं। इसका ताल्लुक भी इंटरनल सर्वे की रिपोर्ट से जुड़ा हो तो कोई ताज्जुब नहीं होगा। ये अधिकांश मंत्री और विधायकों को इल्म है कि रिपोर्ट खराब हुई तो उनका टिकट कट सकता है। तो क्या इस बार अपने समाज की ताकत या समाज का समर्थन दिखा कर नेता कोई खास मैसेज देने की कोशिश में हैं। इस तरह के शक्ति प्रदर्शन का मकसद समाजों की नाराजगी दूर करने के साथ ही अपने लिए टिकट पक्का करना भी समझा जा सकता है।





    द सूत्र का स्पेशल प्रोग्राम न्यूज स्ट्राइक देखने के लिए क्लिक करें.. NEWS STRIKE





    बीजेपी के कितने काम आएगा शक्ति प्रदर्शन?





    बीजेपी पर इस बार प्रेशर की कोई कमी नहीं है। बागी नेताओं का प्रेशर तो है ही। जिनके टिकट कटने का डर है वो अभी से जोर-आजमाइश पर जुट गए हैं। अब अलग-अलग समाज भी अपनी-अपनी हिस्सेदारी मांगने पर अमादा है। जिन्हें कुछ राजनेताओं का ही बैक सपोर्ट भी हासिल है। समाजों का ये शक्ति प्रदर्शन बीजेपी के लिए कितने काम आता है। ये भी देखने वाली बात होगी। क्योंकि पुरानी पंचायतों में हुई बहुत-सी घोषणाएं ही अब तक पूरी नहीं हो सकी हैं। अब नए वादे करने से क्या हासिल होगा। ये देखना भी दिलचस्प होगा।



    Madhya Pradesh Assembly elections मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव new formula of minister-legislators show of strength in the name of society BJP benefits from show of strength मंत्री-विधायकों का नया फॉर्मूला समाज के नाम पर शक्ति प्रदर्शन शक्ति प्रदर्शन से बीजेपी को फायदा