SATNA: 17 साल पहले कॉपरेटिव की नौकरी छोड़ी, 14 साल से 0.72 हेक्टेयर जमीन से कमा रहा सालाना 2 से 3 लाख रुपए

author-image
Sachin Tripathi
एडिट
New Update
SATNA: 17 साल पहले कॉपरेटिव की नौकरी छोड़ी, 14 साल से 0.72 हेक्टेयर जमीन से कमा रहा सालाना 2 से 3 लाख रुपए

SATNA. जैविक खेती की दौर में नौकरी पेशा भी कूद पड़े हैं। नए तरह के इन किसानों ने न केवल खेती शुरू की बल्कि आमदनी भी अच्छी खासी कर रहे हैं। यह एक ऐसे नौकरी पेशा किसान की कहानी है जिसने हिस्से में आए जमीन के छोटे से टुकड़े को ही आजीविका का साधन बना लिया।



बात मध्यप्रदेश के सतना जिले के सात सौ की आबादी वाले गांव पोइंधा कला की है। यहां के किसान अभयराज सिंह ने परिवार की चिंता किए बिना 17 साल पहले सहकारी समिति की सरकारी नौकरी छोड़ दी। बंटवारे में आई एक हेक्टेयर से भी कम जमीन को इस लायक बनाया कि इसमें अनाज या फिर फलदार पौधे उग सके। वह बताते हैं कि सहकारी समिति में सेल्समैन की नौकरी करते समय पांच उचित मूल्य की दुकानों का जिम्मा था इसके बाद भी तनख्वाह वही 15 हजार,  इससे पत्नी और दो बच्चों का गुजारा ही चल रहा था। आगे कोई भविष्य नहीं दिख रहा था| यही कारण था कि साल 2005 में नौकरी छोड़ दी। पारिवारिक बंटवारे में मिली 0.72 हेक्टेयर की छोटी सी जमीन में पपीते लगाए साथ ही सब्जियां भी पर पपीता ने दूसरे साल ही साथ छोड़ दिया इसे चुर्रा-मुर्रा रोग गया। इस रोग के कारण पत्तियां सूख गई और फल नहीं आए। इसके बाद 14 साल पहले नींबू की खेती शुरू की।



50 रुपए में लाए थे 20 पौधे



अभयराज बताते हैं कि साल 2008 में नींबू के मात्र 20 पौधे लगाए थे। आज 300 वृक्ष है, तब महज 50 रुपए ही खर्च हुए थे। नींबू का वृक्ष तैयार होने में करीब 3 साल लग जाते हैं। इसलिए इंटर क्रॉपिंग के लिए गन्ना भी लगा दिया था। इससे यह फायदा हुआ कि परिवार के सामने भरण पोषण का संकट नहीं आया। जब नींबू के वृक्ष तैयार हो गए तो इंटर क्रॉपिंग बंद कर दी। उन 20 वृक्षों से तब करीब 25 से 30 हजार रुपए कमाए थे।



बिना प्रशिक्षण तैयार किया 300 वृक्षों का बगीचा



अभयराज कहते हैं कि नींबू एक ऐसा वृक्ष है जिसे बाहरी जानवरों और पक्षियों से कोई खतरा नहीं है। चिड़िया भी आकर बैठ जाती है पर कभी चोंच नही मारती है। गांव के आसपास आम के बगीचे हैं जिसमें बंदर भी आते हैं। इससे पपीता, गन्ना और अन्य सब्जियों को खतरा रहता है पर नींबू को छूते तक नहीं इसलिए खेती करना आसान हुआ। आज पूरा बाग तैयार है। यहां जितने वृक्ष है वह कलम विधि से तैयार किए हैं। यह काम भी स्वयं किया है. इसके लिए कोई प्रशिक्षण नहीं लिया है. वह बताते हैं कि कलम विधि से तैयार 300 से अधिक नींबू के वृक्ष हैं।



साल में 2 से 3 लाख की आमदनी



सालाना उत्पादन के बारे में अभय राज बताते हैं कि नींबू के एक वृक्ष में 3 से 4 हजार फल आते हैं। इस हिसाब से 300 वृक्षों में करीब 1 लाख नींबू आते हैं; उनकी एक रुपए भी कीमत लगाई जाए तो 1 लाख रुपए होती है। गांव से करीब 16 किलोमीटर दूरी पर सतना शहर है जहां उपज बेचता हूं। खुली मंडियों की जगह शहर के 6 होटलों और इतने ही ढाबों में सप्लाई है। यहां पैसा फंसने की गुंजाइश कम है इसलिए ज्यादातर होटलों और ढाबों को ही नींबू सप्लाई करता हूं। इसके अलावा दुकान वाले भी डिमांड करते हैं बाहर टोटका लटकाने के लिए। इससे लगभग साल भर सप्लाई जारी रहती है।



इंटर क्रॉपिंग भी अपनाई



नौकरी छोड़ कर किसानी से जीविका चलाने के लिए अभयराज के पास यही एक मात्र जमीन है इसके अलावा कुछ नहीं। वह बताते हैं कि आय के लिए इंटर क्रॉपिंग का सहारा ले रहे हैं। नींबू से बची क्यारियों में केला, अमरूद के पेड़ तैयार कर रहे हैं. केला और अमरूद भी तैयार हैं। इसके अलावा हल्दी, शहतूत, बरसीम आदि भी है जिससे रोजमर्रा के खर्चों के लिए कोई दिक्कत नहीं आती।


MP News Madhya Pradesh News एमपी न्यूज़ Satna News Mp latest news in hindi एमपी लेटेस्ट न्यूज़ इन हिंदी ORGANIC FARMING Satna farmer story Lemon story Mp progressive farmer Mp kisan सतना का किसान नींबू का किसान जैविक खेती एमपी का किसान उद्यानिकी