नासिर बेलिम रंगरेज, UJJAIN. मार्गशीर्ष कृष्ण नवमी यानी 17 नवंबर को कालभैरव मंदिर से परंपरा अनुसार भगवान कालभैरव की सवारी निकली गई। भैरवगढ़ क्षेत्र में सवारी मार्ग पर सेनापति के दर्शन के लिए आस्था उमड़ पड़ी। देश भर से आए भक्तों ने सवारी के दर्शन किए। उज्जैन में शाही ठाठ-बाट से सवारी निकली गई। भगवान महाकाल के सेनापति ने चांदी की पालकी में सवार होकर नगर भ्रमण किया। मार्गशीर्ष महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि यानी 16 नवंबर को काल भैरव जयंती मनाई जाती है।
काल भैरव जयंती की कथा
हिंदू शास्त्रों के अनुसार, बहुत समय पहले की बात है। भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश यानि त्रिदेवों के बीच इस बात को लेकर विवाद हो गया है कि उनमें से कौन सर्वश्रेष्ठ है। विवाद को सुलझाने के लिये समस्त देवी-देवताओं की सभा बुलाई गई। सभा ने काफी मंथन करने के पश्चात जो निष्कर्ष दिया उससे भगवान शिव और विष्णु तो सहमत हो गए लेकिन ब्रह्मा जी संतुष्ट नहीं हुए। यहां तक कि भगवान शिव को अपमानित करने का भी प्रयास किया, जिससे भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए।
जेल अधीक्षक ने पालकी का पूजन किया
केंद्रीय जेल भैरवगढ़ में जेल अधीक्षक द्वारा पालकी का पूजन किया। पश्चात सवारी नया बाजार, भैरवगढ़ नाका, महेंद्र मार्ग होते हुए मोक्षदायिनी शिप्रा के सिद्धवट घाट पहुंची। यहां पुजारियों ने शिप्रा जल से भगवान कालभैरव का अभिषेक पूजन किया। पूजन पश्चात सवारी कालभैरव मंदिर की ओर रवाना हुई।
दो दिन चला आयोजन
भैरव अष्टमी पर कालभैरव मंदिर में आयोजित दो दिवसीय आयोजन के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने पहुंचकर दर्शन लाभ लिया। मंदिर के पुजारी धर्मेन्द्र चतुर्वेदी ने बताया कि अष्टमी पर सुबह पूजन-अर्चन के साथ अष्टमी उत्सव शुरू हुआ था। दो दिवसीय आयोजन के दौरान भगवान कालभैरव को सिंधिया रियासत कालीन आभूषण, चवर, पगड़ी, जरीदार वस्त्र, मालाएं धारण कराई गई।