शराब सस्ती करने की तैयारी: ठेकों में सिंडीकेट खत्म कर MRP के बजाय फिर से MSP पर फोकस

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शराब सस्ती करने की तैयारी: ठेकों में सिंडीकेट खत्म कर MRP के बजाय फिर से MSP पर फोकस

दीपेंद्र सिंह राजपूत। शराब (Liquor) को बड़ी सामाजिक बुराई मानकर प्रदेश में शराबबंदी के लिए सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेता सिद्धांत (Theory) में जनजागरण से लेकर लठ चलाने की बातें करते हैं। लेकिन व्यवहार (Practical) में बीजेपी सरकार प्रदेश में शराब सस्ती कर पीनेवालों को खुश करने की तैयारी कर रही है। अपना खजाना (Treasury) भरने के लिए ऐसा करना सरकार (MP Government) की मजबूरी बन गई है। पहले शराब दुकानों के ठेके (Liquor Contract) छोटे-छोटे समूह में दिए जाते थे। लेकिन कमलनाथ सरकार (Kamalnath Govt) ने पॉलिसी (Liquor Policy) बदलकर प्रदेश में शराब का कारोबार बड़े ग्रुप्स को सौंप दिया जिससे बाजार में एकाधिकार (Monopoly) बढ़ा और शराब बहुत महंगी हो गई। अपनी तिजोरी भरने के लिए सरकार अब शराब पर लगने वाली ड्यूटी, टैक्स (Vat) घटाने और अगले साल से शराब के ठेकों में सिंडिकेट (Syndicate) खत्म कर इसे छोटे-छोटे समूह में देने की पॉलिसी बनाने पर विचार कर रही है।

कमलनाथ सरकार की नीति बदलेगी

आबकारी विभाग (State Excise Department) के सूत्रों के मुताबिक सरकार एक्साइज पॉलिसी (Excise Policy) में बदलाव कर प्रदेश में शराब की कीमत घटाकर इसकी खपत बढ़ाना चाहती है। इससे उसका खजाना और ज्यादा भरेगा। इसी विषय पर विचार करने के लिए विभाग की प्रमुख सचिव दीपाली रस्तोगी (Deepali Rastogi IAS) ने 12 अक्टूबर को मंत्रालय में सभी प्रमुख अफसरों की बैठक बुलाई थी। लेकिन बैठक से पहले ही इसका पत्र सोशल मीडिया में वायरल हो गया है और कांग्रेस ने सरकार पर नशाखोरी बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए हमला बोल दिया। प्रदेश में उप चुनावों के चलते सरकार बचाव की मुद्रा में आ गई और मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान (CM Shivraj) के निर्देश पर बैठक निरस्त कर दी गई। सूत्रों का कहना है कि अभी बैठक भले ही टाल दी गई हो लेकिन सरकार के पास आबकारी नीति में बदलाव कर अपनी आय बढ़ाने के लिए शराब दुकानों का सिंडिकेट खत्म कर इनके ठेके पूर्व व्यवस्था के अनुसार छोटे-छोटे समूह ( 3-4 दुकानों का एक ठेका) देने और बढ़ाई गई ड्यूटी और वैट कम करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

सिंडिकेट व्यवस्था में MSP के बजाय MRP पर बिकने लगी शराब

शराब कारोबार के जानकारों के मुताबिक कांग्रेस की कमलनाथ सरकार से पहले प्रदेश में देशी-विदेशी शराब दुकानों के ठेके बड़े समूह बनाकर नहीं बल्कि दो-तीन दुकानों के समूह में छोटे ठेकेदारों को दिए जाते थे। लेकिन बाद में कांग्रेस सरकार ने शराब के ठेके बड़े समूह ( पूरे जिले में एक ठेकेदार) में देने की नीति लागू की इससे छोटे और परंपरागत ठेकेदार कारोबार से बाहर हो गए। इससे ठेके महंगे होने के साथ जिलों में शराब का सिंडिकेट बन गया जिससे मोनोपोली को बढ़ावा मिला। सरकार की नाक के नीचे भोपाल जैसे जिले में भी शराब एमआरपी और इससे भी ज्यादा दाम पर बेची जाने लगी। इससे प्रदेश में शराब के दाम उत्तर प्रदेश,राजस्थान जैसे राज्यों के मुकाबले करीब दोगुना हो गए। जबकि पहले शराब दुकानों की नीलामी छोटे समूहों में होने कारण एक ही जिले में अलग-अलग ठेकेदार शराब मिनिमम सेल प्राइज (MSP) पर बेचते थे। जिले में छोटे ठेकेदारों के बीच प्रतिस्पर्धा के चलते शराब एमएसपी से भी नीचे दाम पर बेचते थे ताकि उनका उनका स्टॉक जल्दी और ज्यादा बिके। लेकिन सिंडिकेट व्यवस्था के कारण सिस्टम उल्टा हो गया और प्रदेश में शराब एमएसपी के बजाय एमआरपी (MRP) से ज्यादा कीमत पर बेची जाने लगी।

MP में सबसे महंगी शराब

पिछले पांच साल के आंकड़े देखें तो प्रदेश में शराब से सरकार की आय लगातार बढ़ रही है। 2020-21 में शराब की बिक्री से सरकार के खजाने में 15 हजार करोड़ रुपये आए। पड़ोसी राज्यों की तुलना में एमपी में शराब की कीमत लगभग दो गुनी है। यही वजह है कि दूसरे राज्यों से अवैध शराब लाकर यहां कम कीमत पर बेची जा रही है। राजस्थान, हरियाणा और उत्तरप्रदेश से सबसे ज्यादा शराब लाकर यहां बेची जा रही है। उदाहरण के लिए एमपी में रॉयल स्टेग व्हिस्की की 180 एमएल की बोतल की कीमत 270 रुपये है, वहीं राजस्थान में 150 रुपये है। दोगुना दाम होने से अवैध शराब की तस्करी बढ़ रही है। इसी तस्करी के बीच नकली और जहरीली शराब भी बिक रही है। जून से जुलाई के बीच मध्यप्रदेश में एमआरपी से ज्यादा पर शराब बेचने के 27 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए। 

नकली और जहरीली शराब का बढ़ता नेटवर्क

प्रदेश में पिछले महीनों में जहरीली शराब पीने से कई लोगों की मौत हुई है। सरकार ने भी जहरीली शराब बेचने वालों के खिलाफ सख्त रवैया अपनाते हुए कानून में बदलाव कर 10 साल की सजा को बढ़ाकर आजीवन कारावास या फांसी देने वाले प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। लेकिन इस सबके बाद भी सरकार अवैध शराब की ब्रिक्री पर रोक लगाने में नाकाम रही है। 1 जून से 26 जुलाई तक की अवधि में दर्ज मामलों पर नजर डाले तो प्रदेश में 6992 मामले दर्ज किए गए। 44227 बल्क लीटर नकली शराब जब्त की गई, जिसकी कीमत करीब साढ़े 6 करोड़ रुपये थी। नकली शराब की तस्करी में इस्तेमाल हुई 72 गाड़ियां जब्त की गईं।  

अगले साल से इस तरह बिकेगी देशी-विदेशी शराब

वर्तमान आबकारी नीति में मिनिमम सेलिंग प्राइज के तहत देशी शराब पर 25 प्रतिशत, विदेशी शराब में 20 प्रतिशत और बीयर पर 35 प्रतिशत तक का प्रॉफिट मार्जिन है। जिसे अब सरकार 20 प्रतिशत करने की तैयारी में है। इसी तरह प्रचलित आबकारी नीति में MSP से MRP का अंतर 20 प्रतिशत अधिक तय कर रखा गया है। लेकिन अब सरकार वैट जोड़ने के बाद भी ये अंतर 10 प्रतिशत करने जा रही है। फिलहाल शराब ठेकेदारों को 45 से 50 फीसदी प्रॉफिट हो रहा है। लेकिन अब शराब की हर एक पेटी पर प्रॉफिट तय किया जाएगा। ये प्रॉफिट 20 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होगा। इसके साथ ही ड्यूटी की दरों को कम करने, प्रॉफिट मार्जन को कम करने, एमएसपी, एमआरपी के अंतर को कम किया जाएगा। शराब के उठाव से लेकर खपत को इस तरह से 30 फीसदी बढ़ाया जाएगा। जिससे शराब ठेकेदार भी मुनाफे में रहेगा। कुल मिलाकर अगले साल से शराब की कीमतों में 25 से 30 फीसदी की कटौती होने के संकेत हैं। कीमत कम होने से शराब की डिमांड भी बढ़ जाएगी।

शराब से कमाई बढ़ी, नशा मुक्ति पर बजट घटा

पिछले 5 सालों के आंकड़ों को देखा जाए तो प्रदेश में शराब से होने वाला राजस्व साल दर साल बड़ा है। लेकिन नशा मुक्ति को लेकर बजट में लगातार कमी आई है। साल 2016-17 में राज्य सरकार को शराब से 7519 करोड़ रुपये की आय हुई थी, जबकि नशा मुक्ति के लिए सालाना बजट 4 करोड़ रुपए था। साल 2017-18 में राज्य सरकार को शराब से आय में और बढ़ोतरी हुई। इस साल राज्य सरकार की झोली में शराब से 8233 करोड़ रुपये आए। नशा मुक्ति के लिए बजट में बढ़ोतरी हुई। नशा मुक्ति के लिए 10 करोड़ रुपये बजट का प्रावधान रखा गया। 2018-19 में राज्य सरकार को शराब से 9506 करोड़ रुपये की आय हुई। इस साल नशा मुक्ति के लिए 11 करोड़ रुपये का प्रावधान था। साल 2019-20 में राज्य सरकार को शराब से 10,773 करोड़ रुपये की आय हुई। जबकि इस साल नशा मुक्ति अभियान के लिए निर्धारित बजट में कटौती करते हुए इसे 2.72 करोड़ रुपये कर दिया गया। साल 2020-21 में प्रदेश सरकार को शराब से करीब 15 हजार करोड़ रुपये की आय हुई, जबकि इस साल नशा मुक्ति के लिए बजट सिर्फ 73 लाख रुपये रखा गया।

सिंडिकेट की वजह से मंहगी हुई शराब

पुश्तैनी शराब कारोबारी कैलाश राठौर कहते हैं कि सिंडिकेट को बढ़ावा देने वाली एक्साइज पॉलिसी की वजह से प्रदेश में शराब करीब दोगुनी महंगी हुई है। यही वजह है कि बड़ी मात्रा में अवैध शराब पंजाब, राजस्थान, दिल्ली और हरियाणा जैसे बाहरी राज्यों से मप्र में आ रही है। प्रदेश में सरकार ने चार बड़े जिले भोपाल (Bhopal), इंदौर (Indore) , ग्वालियर( Gwalior) और जबलपुर (Jabalpur) जिले में शराब का कारोबार एक बड़े समूह को सौंप दिया है। वैसे मैं भी इस ग्रुप में शामिल हूं लेकिन मेरा मानना है कि शराब व्यवसाय में परंपरागत छोटे कारोबारियों को भी रोजगार-व्यापार का मौका मिलना चाहिए। शराब के ठेकों की नीलामी छोटे- छोटे समूह में की जानी चाहिए। इससे प्रदेश में रोजगार का स्तर भी बढ़ेगा और कारोबार में प्रतिस्पर्धा बढ़ने से मनमानी कीमत पर शराब बिकना भी बंद हो जाएगी।  

MSP की व्यवस्था सबसे बेहतर

आबकारी विभाग के पुराने और अनुभवी अफसरों का मानना है कि शराब व्यवसाय में एमएसपी की व्यवस्था सबसे बेहतर है क्योंकि बाजार ही शराब के दाम तय करता है। आबकारी विभाग के रिटायर्ड डिप्टी कमिश्नर प्रकाश पांडे बताते हैं कि दाम एक सीमा से ज्यादा होने पर अवैध शराब की खपत बढ़ जाती है। इसलिए एमएसपी और एमआरपी पॉलिसी के मुताबिक ही शराब बिकनी चाहिए।इन दोनों के बीच इतना प्रॉफिट मार्जिन होता है कि मार्केट में प्रतिस्पर्धा बनी रहती है, शराब के दाम मनमाने तरीके से नहीं बढ़ते और शराब भी कारोबारी मुनाफे में रहते हैं। 

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