मध्य प्रदेश सरकार की फिजूलखर्ची कर्ज में ले डूबी, 3 साल में भी पूरा नहीं हुआ 1 साल का काम

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Rahul Garhwal
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मध्य प्रदेश सरकार की फिजूलखर्ची कर्ज में ले डूबी, 3 साल में भी पूरा नहीं हुआ 1 साल का काम

अंकुश मौर्य, BHOPAL. करीब साढ़े तीन लाख करोड़ रुपए के कर्ज में डूबी मध्यप्रदेश सरकार की फिजूलखर्ची कम होने के नाम नहीं ले रही है। सरकारी ढर्रे की वजह से हर साल करोड़ों रुपए निजी संस्था को भुगतान किए जा रहे हैं। दूसरी तरफ 15 करोड़ की लागत से चल रहे निर्माण कार्य 1 साल की बजाय 3 साल में भी पूरे नहीं हो रहे। 2019 में कमलनाथ सरकार ने मध्यप्रदेश में फूड एंड ड्रग सैंपल की जांच के लिए प्रदेश में तीन रीजनल लैब बनाने की काम शुरू किया था। 1 साल के अंदर लैब बनकर तैयार हो जानी चाहिए थी। लेकिन 2022 खत्म होने को है और निर्माण कार्य ही पूरा नहीं हुआ है। फूड एंड ड्रग सैंपल की जांच के लिए वर्तमान ने प्रदेशभर के सैंपल भोपाल की ईदगाह हिल्स स्थित लैब में आते हैं।



2019 में कमलनाथ सरकार ने शुरू किया था शुद्ध के लिए युद्ध



2019 में तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने शुद्ध के लिए युद्ध अभियान शुरु किया था। एक ही लैब होने की वजह से टेस्टिंग की पेंडेंसी बढ़ रही थी। लिहाजा सरकार ने इंदौर की प्राइवेट लैब क्यूटीटीएल लैब के साथ अनुबंध किया था। अनुबंध के मुताबिक एक सैंपल की क्वालिटी की जांच कराने के लिए सरकार को 3 हजार 823 रुपए का भुगतान करना था। तत्कालीन सरकार ने प्रायवेट लैब के साथ अनुबंध टेस्टिंग की पेंडेंसी खत्म करने के लिए किया था। दूसरी तरफ 3 रीजनल लैब बनाने की तैयारी शुरू कर दी थी। ताकि एक साल में सरकारी लैब तैयार हो जाएं तो प्राइवेट लैब पर निर्भरता खत्म हो।



15 महीने में हुआ सत्ता परिवर्तन



मध्यप्रदेश में 15 महीने में ही सत्ता परिवर्तन हो गया और शिवराज सरकार बन गई। सत्ता में आते ही बीजेपी ने शुद्ध के लिए युद्ध अभियान का नाम बदलकर मिलावट से मुक्ति अभियान कर दिया। अभियान का नाम तो बदल गया लेकिन काम का ढर्रा नहीं बदला। 2019 से बन रही रीजनल लैब का काम 2022 खत्म होने तक भी पूरा नहीं हुआ। वर्तमान में भी फूड एंड ड्रग के सैंपल प्राइवेट लैब में टेस्ट कराए जा रहे हैं।



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हर साल करीब 9 करोड़ रुपए का भुगतान



हर महीने प्रदेशभर में करीब 4 हजार लीगल सैंपल लिए जाते हैं। इनमें से 2 हजार सैंपल राज्य खाद्य परीक्षण प्रयोगशाला और करीब 2 हजार सैंपल क्यूटीटीएल लैब इंदौर भेजे जाते हैं। यानी 3 हजार 823 रुपए प्रति सैंपल के हिसाब से हर महीने क्यूटीटीएल लैब इंदौर को 76 लाख रुपए का भुगतान किया जा रहा है। यानी हर साल करीब 9 करोड़ रुपए सरकारी खजाने से लुटाए जा रहे हैं।



तीनों जगह 80 फीसदी काम ही पूरा



इंदौर हाउसिंग बोर्ड डिप्टी कमिश्नर यशवंत दोहरे का कहना है कि इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर में करीब 5-5 करोड़ की लागत से लैब बनाई जा रही हैं। अक्टूबर 2019 में लैब का भूमिपूजन किया गया था। तीनों जगह निर्माण का 80 फीसदी काम ही पूरा हुआ है। अभी फर्नीचर और बिजली संबंधित तमाम काम बाकी बचे हैं। दूसरी तरफ उपकरण भी लगाए जाने हैं।



लैब तैयार होने में लग सकता है 1 साल



यानी पूरी तरह लैब तैयार होने में अभी 1 साल का समय लग सकता है। हालांकि स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी का दावा है कि फरवरी 2023 तक काम पूरा कर लिया जाएगा।



भोपाल में राज्य स्तरीय प्रयोगशाला में पेंडिंग में 2 हजार सैंपल



भोपाल की राज्य स्तरीय प्रयोग शाला के प्रभारी संदीप विक्टर ने बताया कि हर महीने करीब 1 हजार से 1200 सैंपल की जांच भोपाल की लैब में होती है। 2 हजार सैंपल पेंडिंग चल रहे हैं।


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