हे सरकार, करो उद्धार, नामजद, सूचीबद्ध न हो जाएं हम

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Rahul Garhwal
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हे सरकार, करो उद्धार, नामजद, सूचीबद्ध न हो जाएं हम

हरीश दिवेकर। बीजेपी की बड़ी बैठक भले ही दिल्ली में हुई हो लेकिन अफसरों के दिल बैठे जा रहे हैं भोपाल में। कही-सुनी ये बातें दिल्ली पहुंची हैं कि मामाजी की सरकार अफसर जी चला रहे हैं। केवल कहा-सुना नहीं बल्कि नामजद कह दिया गया है कि फलां महाशय आधी सरकार बने हुए हैं, बाकी आधी भी फलां-फलां के हिस्से में है। जब सब ये ही रहे हैं तो फिर असली सरकार क्या कर रही है। यही पूछा है ऊपर। सुना जा रहा है कि कुछ ऐसे अफसरों की सूची बन रही है जिनका पराक्रम दिल्ली तक पहुंच गया है। सच-झूठ आप जानो लेकिन अफसरों ने अपने भाजपाइयों, अफसरों, मीडिया बंधुओं को फोन घुमाना शुरू कर दिए हैं। हे सरकार, करो उद्धार। नामजद, सूचीबद्ध न हो जाएं हम।





गोविंदा इधर नहीं, ऊधर से आला रे..





जिनका ये विचार है कि गोविंद सिंह के नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद दिग्विजय सिंह का खाता-पन्ना समृद्ध हो गया है तो कृपया करके वे अपने विचार पर पुनर्विचार करें। जो दिख रहा है, वो नहीं हुआ है



बल्कि जो हो गया वो दिख ही नहीं रहा। चलिए हम दिखाए देते हैं। ये जो गोविंद दादा हैं ना, ये थे तो राजा के ही साथी। जी..ठीक पढ़ा आपने.. थे। अभी ये नाथ के नए कमल हैं। निमाड़ी नेता अरुण यादव ने पिछले दिनों जो ऑपरेशन गोविंदा चलाया ना उसका कमाल ये हुआ कि गोविंदा राजा को छोड़ नाथ की शरण में आ गए। बस इधर शरण में आए उधर कुर्सी हाजिर। नाथ को ग्वालियर महाराज से पुराना हिसाब-किताब भी करना है सो चल दिया दांव। हां इससे नाथ की पुरानी सेना में जरूर बेसुध है। खासकर बाला बच्चन मान बैठे थे कि साहब के खड़ऊ अपने ही चरण की शोभा बढ़ाएंगे पर इधर तो गोविंदा आला रे..। पिछले कुछ दिनों में अरुण यादव ने कमलनाथ के लिए दो-तीन सफल शल्य क्रियाएं कर दी हैं। उनका ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। सुन रहे हैं ना सज्जन वर्मा। 





पावर पॉलिटिक्स





प्रदेश में पावर.. बोले तो बिजली भले ही सेंटर से गायब हो रही हो लेकिन पॉलिटिक्स के पावर लगातार बढ़ते जा रहे हैं। मामाजी तो हैं ही पावर में। पर पावर की इधर-उधर की शाखाओं में कई बहुत सारे सेंटर खुल गए हैं। ग्वालियर अब केवल मुन्ना भैया के भरोसे नहीं हैं, महाराज पहले कमल के हुए फिर दिल्ली में शपथ भी ले लिए। यानी दो-दो पावर सेंटर अकेले ग्वालियर-चंबल बेल्ट में। उमा भारती उर्फ दीदी का पावर तो आप जानते हैं ही दस साल की दिग्गी सरकार को दस दिन में... पार्टी में भी कभी-कभी ऐसा कर देती हैं कि विरोधी नींद से चमक-चमककर उठ जाते हैं। अब भगवा शक्ति भी दो भागों में बंट गई है। दीदी के अलावा भोपाल की भगवा सांसद भी पावर में हैं। ये अलग बात है कि बीच में वे ऐसा-वैसा कुछ बोलकर अपना ही पावर कट कर लेती हैं लेकिन हैं तो पावर में। कोई दो भाभियों की भी बात हो रही हैं जो सत्ता और संगठन में पावर सेंटर बनी हुई हैं। नाम बताएं ? अब छोड़ो भी राजनीति खराब हो जाएगी किसी की...।





गृह को चाहिए घर





हां जी...हां जी...सही लिखे हैं। गृह को ही घर चाहिए। चलिए खुलकर बता देते हैं। हमारे डीजीपी साहब को एक अदद बंगले की दरकार है। जो गृह विभाग खुद ही खुद को बंगला आबंटित कर सकता



है वो ही अपने लिए घर तलाश रहा है। है न कमाल की बात । कमाल तो होना ही था क्योंकि एक बंगला साहब के दिल में प्रवेश कर गया था, उसमें गृह प्रवेश होता उससे पहले ही 'बहुत ऊपर' से आदेश आ गया कि किसी खास मिशन के लिए उस बंगले  का इस्तेमाल होना है। आप कोई और बंगला तलाश लीजिए। अब ऊपर वाले से कौन पूछे क्या मिशन है। इस बंगलाबाजी में हुआ ये कि कई अफसरों ने दिल का दर्द निकालना शुरू कर दिया। बंगलों की जो ए बी सी डी टाइप होती है न उसमें आईएएस और आईपीएस अफसरों ने कब्जे का घालमेल कर रखा है। आईपीएस संप्रदाय के मुताबिक हम घाटे में हैं। उन्हें सी और डी टाईप ही दिए जाते हैं.. बी टाईप पर तो आईएएस अफसरों का कब्जा रहता है।  ये सब संदेशों में चल भी रहा है। पर वाट्सएप के संदेशों से केवल दिल को सुकून मिलता है जी, घर थोड़ी न नहीं मिलता। ढूंढते रहिए।





वो कौन थी





इंदौर के ऑटो शो में एक शो और हो गया रे बाबा। बहुत नाजुक मामला था। संभल गया। इशारों में बताए देते हैं, विस्तृत जानकारी के लिए आप अपने 'हरिरामों' की सेवा ले सकते हैं। हुआ यूं कि शो



में मंत्री के सामने एक सुंदरी आ गईं। खुले आम शिकवा-शिकायतें करने लगीं। शिकायतें थोड़ी निजी सी थीं पर हो सार्वजनिक रूप से रही थीं। मंत्रीजी पहले तो सकपका गए। उन्हें इस अप्रत्याशित आक्रमण का अहसास नहीं था। सरेआम हुई बात को आखिर उन्होंने संभाल तो लिया लेकिन बस यूं समझ लीजिए मुट्ठी थोड़ी-थोड़ी खुल गई है। बाकी आप खोल लीजिए। लगाइए जोर..।





टोल नाका-ठोक डाला





एक मंत्री जो अबहु-अबहु मीडिया में प्रवेश किए हैं। कहें कि खुद की किस्मत, सीरत चमकाए काजे। पर वा में तो पैसा-कौड़ी लागे ना..। अबऊ जेब से देवे से तो रहे, सो टोपी पहना दी टोल वालों को। मंत्री जी सीधे-सीधे सामने न आए, अपने दाएं-बांए से कह दिए हैं तुमई संभालो और निगरानी रखो सबहु हमाए हिसाब से होनो चाहिए। दाएं ने भी हाथ बचते-बचाते..अपनी बीवी और साले साहब को आगे कर दिए। इस आगे-पीछे के खेल में मारे जा रहे हैं टोल वाले अफसर जो सिस्टम को भी पैसा दे रहे हैं और मंत्री जी के लुके-छुपे चैनल के बंदों का पेट भी भरना पड़ रहा है। बंदे भी दो-चार नहीं ना हैं। पूरे सवा सौ हैं। बेचारे टोल वाले..। मामला मंत्रीजी का है ना.. सबसे टोल लेते हैं पर मंत्री जी के मामले में टालमटोल नहीं कर सकते। अभी तो चैनल का पेट भर रहे हैं।



 



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