चुनावी साल में मोदी का विंध्य दौरा, यहां 8 जिले आते हैं, जानें यहां पीएम के दौरे का गणित और बीजेपी के सामने चुनौतियां  

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The Sootr
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चुनावी साल में मोदी का विंध्य दौरा, यहां 8 जिले आते हैं, जानें यहां पीएम के दौरे का गणित और बीजेपी के सामने चुनौतियां  

BHOPAL. एक महीने के भीतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो बार मध्य प्रदेश का दौरा कर चुके हैं। इससे पहले गृह मंत्री अमित शाह भी आ चुके हैं। राज्य में साल के अंत में चुनाव है। ऐसे में भाजपा के सबसे बड़े दो नेताओं के विंध्य क्षेत्र के दौरे के बाद इसके कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी तीन बार रीवा का दौरा कर चुके हैं। मई 2014 और नवंबर 2018 में वह रीवा आए थे। मोदी के इन दौरों से बीजेपी विंध्य में अपनी पकड़ को मजबूत बनाए रखने की कोशिश कर रही है।



ये हैं भाजपा के सामने चुनौतियां



बता दें कि विंध्य में 8 जिले आते हैं। भाजपा के सामने यहां कई चुनौतियां हैं। जैसे कि मैहर से भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी द्वारा नई पार्टी बनाने की घोषणा कर दी है। आम आदमी पार्टी ने भी प्रदेश में चुनावी ताल ठोंक दी है। पिछले साल जुलाई में हुए नगरीय निकाय चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन ठीक नहीं रहा था। 



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विंध्य क्षेत्र में हैं 30 विधानसभा सीटें  



विंध्य क्षेत्र में रीवा, मऊगंज, सतना, सीधी, सिंगरौली, शहडोल, अनूपपुर और उमरिया जिले आते हैं। इन जिलों में कुल 30 विधानसभा सीटें पड़ती हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में इन 30 में से 24 सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी। 



मोदी से पहले शाह ने टटोल थी विंध्य की नब्ज



फरवरी 2023 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विंध्य क्षेत्र में भाजपा की स्थिति का जायजा लिया था। शाह सतना के दौरे पर आए थे। शाह ने बीजेपी कार्यकर्ताओं के साथ मुलाकात के अलावा पार्टी के बड़े नेताओं और जिलों की कोर कमेटी के साथ बैठक की। बैठक में विंध्य क्षेत्र के नेताओं के अलावा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और संगठन महासचिव हितानंद शर्मा उपस्थित रहे थे। शाह ने पार्टी नेताओं के साथ बैठक में जातिगत गणित, सरकार की योजनाओं और सरकार के कामकाज की जानकारी ली थी।



विंध्य एक, चुनौतियां अनेक...




  • उत्तरप्रदेश से सटे विंध्य की स्थानीय राजनीति में जाति भी एक बड़ा मुद्दा है।


  • ब्राह्मण ठाकुरों के अलावा एससीएसटी वर्ग भी निर्णायक भूमिका निभाता है।

  • पिछले चुनाव में बीएसपी का वोटबैंक बीजेपी में शिफ्ट हुआ था।

  • इस बार एससीएसटी मतदाता कांग्रेस की तरफ झुका नजर आ रहा है।

  • राजेंद्र शुक्ल जैसे कद्दावर नेता की अनदेखी से ब्राह्मणों में नाराजगी है।

  • ठाकुर मतदाता भी पार्टी से खास खुश नहीं है।

  • सिंगरौली नगर निगम में जीत के बाद विंध्य में आप की एंट्री भी हो चुकी है।



  • बीजेपी की कमजोरी का फायदा लेने कांग्रेस अब तक एक्टिव नहीं हुई है



    दो उपचुनाव में भी अनूपपुर में बीजेपी ने कांग्रेस की सीट छीनी तो रैगांव में कांग्रेस ने। यानी कि हिसाब बराबर हो गया। बीजेपी की कमजोरी का फायदा उठाने के लिए कांग्रेस अब तक तेजी से एक्टिव नहीं हुई है। न ही विंध्य के कद्दावर कांग्रेसी अजय सिंह को खास जिम्मेदारी सौंपी है। जिसे देखकर ये माना जा सकता है कि बीजेपी पूरा जोर लगा दिया तो तीस की तीस न सही कम से कम पुरानी 24 सीटों पर वापसी कर ही सकती है।



    दूध से जली बीजेपी इस बार छाछ पीने से पहले भी फूंक मार रही है



    बीजेपी की तैयारियां जोरों पर है। बात सिर्फ विंध्य की नहीं बीजेपी को पूरा मध्यप्रदेश बचाना है। हर अंचल और हर तबका फिलहाल बीजेपी के लिए अहम है। पिछली बार चुनावी परिणाम के दूध से जली बीजेपी इस बार छाछ पीने से पहले भी फूंक मार रही है। कांग्रेस को खामोश या निष्क्रिय मान कर बीजेपी ने अपनी रणनीति को कमजोर करने की कोशिश करती बिलकुल नहीं दिखाई दे रही। पर, सवाल ये है कि जो दर्द विंध्य बीते तीन साल से दबा कर रखता रहा। क्या उसे महज सात महीनों की कोशिशों में दूर किया जा सकेगा।


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