BHOPAL. मिर्ची बाबा रेप केस मामले में नया मोड आ गया। मिर्ची बाबा उर्फ वैराग्यानंद गिरि की डीएनए रिपोर्ट निगेटिव आई है। पीड़ित महिला से मिर्ची बाबा के सैंपल नहीं मिले। अब जमानत के लिए उनके वकील सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। बता दें कि 8 अगस्त 2022 से मिर्ची बाबा बलात्कार के मामले में जेल में बंद हैं। उन पर एक महिला ने नशे की गोली खिलाकर रेप का केस दर्ज कराया है। बाबा को केन्द्रीय जेल भोपाल के बैरक-17 में रखा गया है।
बाबा ने कहा था- मेरी राजनीतिक छवि, बर्बाद करने लगाए आरोप
मिर्ची बाबा ने अपने वकील के माध्यम से मर्दानगी टेस्ट के लिए याचिका भी लगाई थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह नागा साधु है। शारीरिक संबंध बनाने में असमर्थ हैं। ऐसे में राजनीतिक छवि, भविष्य को बर्बाद करने के मकसद से उन पर घिनौने आरोप लगाए गए हैं। इसलिए डॉक्टरों की पांच सदस्यीय टीम द्वारा बाबा का पोटेंसी टेस्ट कराया जाए। अभियोजन पक्ष ने मौखिक रूप से इसका विरोध किया था। इस पर कोर्ट ने यह करते हुए अर्जी खारिज कर दी थी कि मामले की जांच पूरी हो चुकी है और चालान पेश किया जा चुका है। आगे कोई कार्रवाई बाकी नहीं है।
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महिला पर बाबा ने ये लगाए थे आरोप, भोपाल में हुआ था केस दर्ज
बता दें कि वैराग्यानंद गिरि उर्फ मिर्ची बाबा पर रायसेन की रहने वाली 28 साल की महिला ने भोपाल के महिला थाने में रेप का केस दर्ज कराया है। बाबा को ग्वालियर के होटल से 8 अगस्त 2022 को गिरफ्तार किया गया था। महिला का आरोप था कि उसकी शादी को चार साल हो चुके हैं। बच्चे नहीं हैं, इसलिए मिर्ची बाबा के संपर्क में आई थी। बाबा ने इलाज के नाम पर महिला को नशे की गोलियां खिलाकर रेप किया था।
कौन है मिर्ची बाबा?
मिर्ची बाबा मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खास माने जाते हैं। कमलनाथ सरकार में बाबा को राज्यमंत्री का दर्जा भी मिला था। 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सपोर्ट में कम्प्यूटर बाबा के बाद मिर्ची बाबा भी राजनीति में सक्रिय हुए थे। उन्हें कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं का करीबी माना जाता है। साल 2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान वो तब और ज्यादा चर्चा में आ गए थे, जब उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार दिग्विजय सिंह की जीत के लिए पांच क्विंटल लाल मिर्ची का हवन किया था। मिर्ची बाबा ने तब ऐलान किया था कि अगर दिग्विजय सिंह चुनाव नहीं जीते तो वो जल समाधि ले लेंगे। हालांकि उनकी हार के बाद ऐसा नहीं किया। जल समाधि लेने के लिए उसने भोपाल कलेक्टर से अनुमति मांगी थी, जो नहीं मिली थी।