1200Cr खर्च फिर भी 30 हजार आंगनबाड़ी में टॉयलेट तक नहीं, सवाल-बजट का यूज कहां?

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Aashish Vishwakarma
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1200Cr खर्च फिर भी 30 हजार आंगनबाड़ी में टॉयलेट तक नहीं, सवाल-बजट का यूज कहां?

भोपाल (रूचि वर्मा). मप्र में आंगनबाड़ियों को गोद लेने की योजना शुरू की गई है। मकसद ये है कि जनता की मदद से आंगनबाड़ियों की हालत को दुरूस्त किया जाए। आपको जानकर हैरानी होगी कि आंगनबाड़ियों के लिए सालाना 1200 करोड़ रु. का बजट आता है। इसके बावजूद भी आंगनबाड़ियों की हालत सुधरी नहीं है। मप्र में 30 हजार आंगनबाड़ियों में शौचालय जैसी मूलभूत सुविधा ही नहीं है। 10 हजार आंगनबाड़ी पीने के पानी जैसी मूलभूत समस्या से जूझ रही है। प्रदेश के बच्चों को पोषित करने की जिम्मेदारी निभाने वाले आंगनबाड़ी खुद कुपोषण यानी बदहाली का शिकार है। सरकार मार्च में इस वित्तीय वर्ष का बजट पेश करने वाली है। बजट से पहले द सूत्र ने आंगनबाड़ियों की पड़ताल की है। इसमें आंगनबाड़ियों की चौंकाने वाली हकीकत सामने आई है। ऐसे में सवाल उठता है कि आंगनबाड़ियों के लिए जो बजट अलॉट होता है, उसका इस्तेमाल कहां किया जा रहा है। 





भोपाल में आंगनबाड़ी केंद्र क्रमांक 741 में नहीं है लाइट, टीकाकरण के वक्त बच्चे हो जाते हैं बेहोश: राजधानी भोपाल के वार्ड 32 में आने वाली आंगनबाड़ी नंबर 741 दो कमरों में चलती है। यहां बिजली की सुविधा नहीं है। कुछ समय पहले तक तो पानी की भी सुविधा नहीं थी। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने नगर निगम से सहायता लेकर खुद ही कनेक्शन लगवाया। बच्चों को पढ़ाने के लिए ब्लैकबोर्ड भी नहीं है। वार्ड नंबर 32 की इस आंगनबाड़ी में टीकाकरण की सुविधा है। आंगनबाड़ी में 16 हजार आबादी के लिए टीकाकरण केंद्र होता है। लेकिन यहां जो टीकाकरण की इंचार्ज है वो इस बात से परेशान है कि बच्चों को टीका लगाने जो महिलाएं आती है उन्हें बैठने की सुविधा नहीं है। लाइट ना होने से टीकाकरण के बाद बच्चे बेहोश तक हो जाते हैं। वहीं गर्मी की वजह से टीके खराब होने का डर है सो अलग। ज्ञात हो कि भोपाल जिले में कुल 1872 आंगनबाड़ियां है और ज्यादातर आंगनबाड़ियों की हालत कमोवेश ऐसी ही है। अब 1872 में से करीब 1342 आंगनबाड़ी केंद्रों को गोद लेने की सहमति बन चुकी है।





इंदौर की आंगनबाड़ी में शराब की बोतलें: द सूत्र की टीम ने इंदौर की निपानिया स्थित आंगनबाड़ी केंद्र का जायजा लिया तो यहां भी हालत खराब ही नजर आई। ना तो बिजली की सुविधा ना बाकी कोई सुविधा। आंगनबाड़ी भवन बच्चों की संख्या के हिसाब से काफी छोटा है। वहीं, पिपल्याकुमार की आदर्श आंगनबाड़ी केंद्र में तो खिड़की दरवाजे ही गायब मिले। जबकि ये आदर्श आंगनबाड़ी है। आंगनबाड़ी परिसर में शराब की बोतलें और कई सारी आपत्तिजनक चीजें मिलती थी। लिहाजा आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने खुद अपने स्तर पर पर्दे और जालियां लगवाई। ज्ञात हो कि इंदौर संभाग में कुल 17206 आंगनबाड़ी केंद्र हैं और करीब 11 हजार 946 आंगनबाड़ियों को गोद देने की सहमति बनी है।





जबलपुर के इस आंगनबाड़ी केंद्र में बिजली तक नहीं: इंदौर की तरह जबलपुर में भी जब द सूत्र की टीम रेलवे सराय के आंगनबाड़ी केंद्र पहुंची तो यहां भी सुविधाएं नदारद ही थी। आंगनबाड़ी में बिजली ही नहीं थी। इस आंगनबाड़ी को जबलपुर के तत्कालीन कलेक्टर कर्मवीर शर्मा ने गोद लिया था। कर्मवीर शर्मा का तो अब तबादला हो चुका है। जबलपुर संभाग में कुल 17 हजार 350 आंगनबाड़ियां है और इसमें से 13894 आंगनबाड़ियों को गोद लेने पर सहमति बनी है। और ज्यादातर आंगनबाड़ियों में बिजली नहीं है। अधिकारियों की दलील है कि जल्द ही बिजली ना होने की कमी को दूर किया जाएगा।





भिंड की आंगनबाड़ी में मिल रहा घटिया खाना: जब द सूत्र की टीम भिंड पहुंची तो केंद्र के पीछे शराब की टूटी बोतलें और गंदगी का अंबार नजर आया। यहां मौजूद कार्यकर्ताओं से बात की तो उन्होंने अव्यवस्थाओं का पिटारा खोल दिया। जिले के आंगनबाड़ी केंद्र क्रमांक 30/1 के हालात यह है कि केंद्र के पिछवाड़े में ही शराब की टूटी हुई बोतलें और जानवरों की गंदगी पड़ी हुई है। जिससे यहां की असुरक्षा का अंदाज आसानी से लगाया जा सकता है। यही नहीं यहां पर स्टाफ के नाम को भी सफेदी से पोत दिया गया है। वहीं, आंगनबाड़ी संख्या 36/1 तथा आंगनबाड़ी संख्या 5/2 के बारे में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता मिथलेश चौहान ने बताया कि समूह द्वारा प्रतिदिन खाना भी नहीं दिया जाता और जो खाना दिया जाता है वह बेहद घटिया दर्जे का होता है। इस संबंध में आंगनबाड़ी केंद्र के पालक उमेश सिंह भदोरिया से बात की गई तो उन्होंने कहा कि हम स्वयं सहायता समूह की शिकायत कर रहे हैं। वहीं, जिला कार्यक्रम अधिकारी महिला बाल विकास भिंड अब्दुल गफ्फार ने बताया कि जिले में आंगनबाड़ियों को उद्योगों से मिलने वाले CSR फंड के तहत सुधार किया जाएगा। ज्ञात हो की भिंड जिले में कुल आंगनबाड़ियों की संख्या 2451 है। जिनमें से करीब 1296 आंगनबाड़ियों को गोद लेने के लिए सहमति मिल चुकी है। 





आंगनबाड़ियों के हाल बेहाल: मप्र में 97 हजार 135 आंगनबाड़ियां हैं। महिला बाल विकास विभाग की तरफ से 6 अगस्त 2021 को जारी किए आंकड़े के मुताबिक 86 हजार 435 आंगनबाड़ियों में ही पीने का पानी है। यानी करीब 10 हजार आंगनबाड़ियों में पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है। 68 हजार 235 आंगनबाड़ियों में ही केवल शौचालय की व्यवस्था है। यानी 30 हजार से ज्यादा आंगनबाड़ियों में शौचालय नहीं है। वहीं, 97 हजार 135 आंगनबाड़ियों में से 25 हजार 280 आंगनबाड़ियां किराए के भवन में चलती है और 10 हजार 883 आंगनबाड़ियां कच्चे भवन में संचालित होती हैं। इन आंकड़ों से साफ समझा जा सकता है कि किस कदर आंगनबाड़ियों की हालत खस्ता है।





1200 करोड़ का बजट फिर भी नहीं सुधरे आंगनबाड़ियों के हाल: आखिरकार क्यों है ऐसी स्थिति? क्या बजट नहीं मिलता या फिर पैसे नहीं है? तो आपको बता दें कि ऐसा बिलकुल नहीं है। आंगनबाड़ियों के रख रखाव और सुविधाओं के लिए हर साल करीब 1200 करोड़ रु. का बजट आता है। बावजूद इसके हालात बद से बद्दतर है। आंगनबाड़ी सेवा स्कीम के तहत मप्र को पिछले तीन साल में जो बजट मिला है वह इस प्रकार है। 





आंगनबाड़ियों का बजट







  • साल 2018-19 में करीब 1165 करोड़ रु. दिया गया था।



  • साल 2019-20 में करीब 1214 करोड़ रु. का बजट मिला था।


  • साल 2020-21 में करीब 1220 करोड़ रु. का बजट मिला था।


  • साल 2021-22 में 26 नवंबर तक बजट मिला करीब 694 करोड़ रुपए। 






  • बजट है लेकिन इस्तेमाल नहीं: औसत तौर पर देखे तो आंगनबाड़ी सेवा स्कीम के तहत 1200 करोड़ रु. राज्य सरकार को मिलते हैं। मप्र में 97 हजार 195 आंगनबाड़ी केंद्र है तो इस हिसाब से देखे तो एक आंगनबाड़ी को करीब डेढ़ लाख रु. हर साल मिलते हैं। लेकिन आंगनबाड़ियों की जो हालत है उससे सवाल उठ रहा है कि क्या इस पैसे का सही इस्तेमाल हो रहा है या नहीं। वहीं आंगनबाड़ियों के रखरखाव और मेंटेनेंस के लिए केंद्र सरकार हर पांच साल में एक बार अच्छी खासी रकम भी देती है। इसमें आंगनबाड़ी बिल्डिंग सुधार के लिए 2 लाख रु, मेंटेनेंस के लिए 3 हजार रु. प्रति आंगनबाड़ी, फर्नीचर और बाकी सुविधाओं के लिए 10 हजार रु. प्रति आंगनबाड़ी, और मिनी आंगनबाड़ी केंद्रों को 7 हजार रु. पांच साल में एक बार मिलता है। इसके अलावा टॉयलेट बनाने और पीने के पानी की व्यवस्था करने के लिए अलग से पैसा दिया जाता है। इतनी भारी भरकम रकम मिलने के बाद भी आंगनबाड़ियों के हालात बद्दतर है। लेकिन इसका खामियाजा भुगतते है बच्चे और गर्भवती महिलाएं। क्योंकि इन्हीं के स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए इतना भारी भरकम बजट खर्च किया जाता है। 2016 से 2018 के बीच एमपी में करीब 57 हजार बच्चों की कुपोषण से मौत हुई थी। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के 2019 से 2021 के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में करीब 35 फीसदी बच्चे अविकसित है और हर पांच बच्चे में से एक यानी 19 फीसदी निर्बल है। आंकड़ों के मुताबिक मप्र में एनीमिक बच्चों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है और ये आंकड़ा 72.7 फीसदी हो गया है। इससे साफ जाहिर होता है कि इतना पैसा मिलने के बाद भी ना तो आंगनबाड़ियों की हालत ठीक हो रही है और ना ही इनका मकसद पूरा हो रहा है। 





    आंगनबाड़ियों को गोद लेने की स्कीम की शुरुआत, बजट का सही इस्तेमाल हो तो गोद देने की जरूरत नहीं: सवाल यही है कि ये पैसा आखिरकार जाता कहां है? क्योंकि ना तो आंगनबाड़ियों की हालत सुधर रही है ना ही कुपोषण दूर हो रहा है। अब सरकार ने अडाप्ट एन आंगनबाड़ी स्कीम शुरू की है। यानी समाज के लोग आंगनबाड़ियों को गोद लेंगे। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक करीब 75 हजार आंगनबाड़ियों को गोद लेने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। और मजेदार बात ये है कि आंगनबाड़ियों को गोद लेने का जो क्राइटेरिया रखा गया है उसमें आंगनबाड़ी का खर्च और सुविधाएं जुटाने तक शामिल है। 





    गोद देने के बाद भी बजट में नहीं होगी कटौती: क्या सरकार आंगनबाड़ियों को मिलने वाले बजट में कटौती करेगी, क्योंकि खर्चा तो सामाजिक संस्थाएं उठाने वाली है। लेकिन द सूत्र ने जब पी के सिंह, फाइनेंनशिएल एडवाइजर, महिला एवं बाल विकास, से बात की तो उन्होंने साफ कहा की आंगनबाड़ी के बजट में किसी प्रकार की कोई भी कटौती नहीं की जाएगी। यानी जनता के टैक्स के पैसे से भारी भरकम बजट तो रहेगा ही। जनता से उम्मीद रहेगी कि वो आंगनबाड़ियों को गोद लेकर उनकी व्यवस्था सुधारने में सहयोग करें। द सूत्र आंगनबाड़ियों को गोद देने वाली स्कीम पर कोई सवाल नहीं उठा रहा है। स्कीम अच्छी हो सकती है। सवाल केवल इतना है कि इतना भारी भरकम बजट का सरकार सही इस्तेमाल जनता के सामने रखे तब जनता से उम्मीद करें कि वो इसमें सहयोग करें। क्योंकि इतना बजट है कि यदि इसका सही तरीके से इस्तेमाल हो तो जनता की सहभागिता की जरूरत ही नहीं पड़े। 





    अडाप्ट एन आंगनबाड़ी स्कीम इस प्रकार है:





    1. इन्फ्रास्ट्रक्चर में सहयोग: आंगनबाड़ी भवन और परिसर के लिए जमीन, नए आंगनबाड़ी भवन का निर्माण, अतिरिक्त कक्षों का निर्माण, भवनों में मरम्मत कार्य और रंगाई पुताई, पहले से बनी बिल्डिंग में बाउंड्रीवाल का निर्माण, स्थायी प्रकृति के फर्नीचर और बाकी सुविधाओं में सहयोग दे सकते हैं।





    2. बच्चों की पर्सनल जरूरतों को पूरा करने में सहयोग: इसमें यूनिफार्म, गर्म कपड़े स्वेटर कैप, जूते-चप्पल, बैग, अन्य आवश्यक सामग्री शामिल है।





    3. स्वास्थ्य एवं पोषण सेवाओं में सहयोग: कुपोषित बच्चों को सुपोषित करना, पोषण सेवाओं में सहयोग और अन्य सेवाएं, इसमें वस्तुओं के साथ साथ आर्थिक तौर पर मदद की जा सकती है।



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