मध्य प्रदेश में चुनाव से पहले एंटी इंकम्बेंसी की चुनौती शिवराज करेंगे डिफ्यूज या कमलनाथ कर पाएंगे यूज?

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Sunil Shukla
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मध्य प्रदेश में चुनाव से पहले एंटी इंकम्बेंसी की चुनौती शिवराज करेंगे डिफ्यूज या कमलनाथ कर पाएंगे यूज?

BHOPAL. मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक बार फिर प्रशासनिक कसावट के लिए जिलों में औचक दौरे और निरीक्षण की कवायद तेज कर दी है। वे प्रशानिक अमले को जानकारी दिए बिना जिलों में अचानक पहुंचकर सरकार की योजनाओं के बारे में जनता से फीडबैक ले रहे हैं और इसमें लापरवाही के लिए जिम्मेदार मैदानी अफसरों और कर्मचारियों के खिलाफ आनस्पॉट एक्शन ले रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों  का मानना है कि ये सब सीएम की विधानसभा चुनाव से पहले एंटीइंकम्बेंसी की चुनौती से निपटने की सुनियोजित रणनीति का हिस्सा है। ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि मुख्यमंत्री प्रदेश में अपने औचक दौरों और लापरवाह अधिकारी-कर्मचारियों पर मौके पर कार्रवाई से एंटीइंकम्बेंसी यानी शासन-प्रशासन के खिलाफ जनता की नाराजगी को कितना डिफ्यूज कर पाएंगे। दूसरी ओर विपक्ष के तौर पर कांग्रेस चुनाव में इसका कितना यूज कर पाएगी।





मंच से शिवराज का संवाद का अंदाज बदला





प्रदेश में विधानसभा चुनाव में अभी करीब एक साल का समय बचा है। लेकिन राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और राज्य सरकार के मुखिया शिवराज सिंह के औचक दौरों और कड़े तेवरों ने राजनीतिक माहौल में गर्माहट पैदा कर दी है। कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा तो प्रदेश से विदा हो गई है लेकिन मुख्यमंत्री के मैदानी दौरों, इनमें सरकार की जनहित से जुड़ी योजनाओं और कार्यक्रमों को लेकर जनता के फीडबैक और लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ मौके पर कार्रवाई में तेजी आ गई है। जिलों में अपने दौरों और कार्यक्रमों के दौरान सीएम का मंच से संवाद का अंदाज भी बदला नजर आ रहा है। इन दिनों वे आयोजन के मंच के डायस पर एक जगह खड़े होकर नहीं बल्कि किसी मैनेजमेंट गुरू की तरह घूम-घूम कर संवाद करने लगे हैं। इन दौरान मंच के सामने बैठी जनता से वे अपने चित-परिचित सहज-सरल अंदाज में ही बातचीत करते हैं लेकिन वहां मौजूद मैदानी अधिकारी-कर्मचारियों से सवाल-जवाब में उनका लहजा और मिजाज कड़ा हो जाता है।





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मुख्यमंत्री की घोषणाओं और उनके अमल में गैप- वरिष्ठ पत्रकार अजय बोकिल





राजनीति के जानकारों के मुताबिक मुख्यमंत्री के बदले अंदाज और मिजाज की वजह प्रदेश में चुनाव से पहले एंटीइंकम्बेंसी की चुनौती है। वरिष्ठ पत्रकार अजय बोकिल कहते हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को इस हकीकत का अहसास है कि जनता की नजरों में सरकार और प्रशासन का कामकाज उतनी कसावट से नहीं चल रहा है, जैसा चलना चाहिए। वे जनहित के नाम पर जितनी तेजी से घोषणाएं और वादे करते हैं, सरकारी मशीनरी उन पर उतनी तेजी और मजबूती से अमल नहीं कर पाती। इसी गैप को कम करने के लिए उन्होंने एक बार फिर पूर्व निर्धारित प्रोग्राम के बजाय जिलों में ग्रामीण इलाकों का औचक दौरा और निरीक्षण करने पर फोकस कर रहे हैं। इस दौरान उन्हें जहां भी लापरवाही या कमी नजर आती है वे इसके  जिम्मेदार अधिकारी या कर्मचारी के खिलाफ मौके पर ही एक्शन लेने का ऐलान करने लगे हैं।



दरअसल प्रदेश में 2008 के विधानसभा चुनाव के बाद 2013 और 2018 में हुए चुनाव के मुकाबले अगले साल होने वाले चुनाव में बीजेपी की सत्ता बरकरार रखने की चुनौती और जिम्मेदारी सबसे ज्यादा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के ही कंधों पर है। इसकी प्रमुख वजह उन्हें सरकार चलाने के लिए बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व की ओर से फ्री हैंड दिया जाना है। इसी के चलते प्रदेश और सरकार से जुड़े राजनीतिक और प्रशासनिक मामलों में उनकी राय को तवज्जो दी जाती रही है। इसलिए अब 2023 में चुनाव जिताने की जिम्मेदारी भी उन्हीं पर सबसे ज्यादा है।  





दरअसल चुनौती ये है कि 2018 के चुनाव में सत्ता से बेदखल होने और कांग्रेस की 15 महीने की कमलनाथ सरकार के तख्तापलट के 20 मार्च 2020 को चौथी बार मुख्यमंत्री की शपथ लेने के दूसरे ही दिन देश में कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन लग गया। इसके बाद दो साल का समय महामारी से जुड़ी चुनौतियों से जूझने में बीत गया। इसी के चलते शिवराज सरकार अपने इस कार्यकाल में लाड़ली लक्ष्मी जैसी कोई बड़ी लोकप्रिय योजना नहीं ला पाई जो मतदाताओं के बड़े वर्ग को सीधे लुभाने में सक्षम हो। इस सबसे बीच मैदानी स्तर पर सरकारी मशीनरी की ढीलपोल के चलते जनता के बड़े वर्ग में ये नजरिया बनने लगा कि सरकार में घोषणाएं और योजनाओं को लेकर  दावे-वादे ज्यादा किए जा रहे हैं, लेकिन उनके अमल पर अपेक्षित जोर नहीं दिया जा रहा है।





सीएम के औचक दौरों से प्रशासनिक मशीनरी में कसावट आती है- वरिष्ठ पत्रकार मृगेंद्र सिंह





जनता के बीच सरकार की इसी छवि को तोड़ने के लिए मुख्यमंत्री ने प्रदेश में औचक दौरों और सरकार की जनहित से जुड़ी योजनाओं और कार्यक्रमों के बारे में जनता के मैदानी फीडबैक पर फोकस करना शुरू किया है। चूंकि अभी अगले विधानसभा चुनाव में अभी करीब 11 महीने का समय बचा है। राजनीतिक विश्लेषकों की राय में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के औचक दौरे और ऑनस्पॉट एक्शन कोई नई बात नहीं है। ये उनकी स्टाइल है और पिछले चुनावों से पहले भी ऐसा करते रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार मृगेंद्र सिंह की राय में सरकार के मुखिया के औचक दौरों और निरीक्षण से प्रशासनिक मशीनरी में कसावट आती है। इससे सरकार के मैदानी कामकाज में तेजी आती है। सरकार की प्राथमिकता के जो काम या प्रोजेक्ट अधूरे हैं या धीमे चल रहे हैं वे रप्तार पकड़ते हैं। इससे जनता की नजरों में सरकार की छवि सुधरती है और चुनाव में लाभ भी सत्ताधारी पार्टी को मिलता है।











  सरकार के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी को यूज कर पाएगी कांग्रेस?





चुनाव से पहले जनता की नजरों में अपनी और सरकार की छवि चमकाने की मुख्यमंत्री की कवायद के बीच बड़ा सवाल ये है कि क्या प्रदेश में कांग्रेस और उसके सिपहसालार कमलनाथ पिछले 18 साल से सत्ता पर काबिज बीजेपी सरकार के खिलाफ जनता में एंटी इंकम्बेंसी को यूज कर पाएंगे। प्रदेश की राजनीति की नब्ज पहचानने वाले जानकारों की माने तो कांग्रेस के सामने एंटीइंकम्बेंसी को भुनाने की भरपूर संभावनाएं हैं। लेकिन वो इसका कितना फायदा उठा सकती है या उठाएगी ये इस बात पर निर्भर है कि विपक्षी पार्टी के रूप में वो खुद कितनी एकजुट है। उसकी मुश्किल ये है कि वो ऊपर से नीचे तक अंतरद्वंद्व  के दौर से गुजर रही है। प्रदेश में कांग्रेस के मुखिया कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विय सिंह के बीच खींचतान जगजाहिर है। प्रदेश में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने कांग्रेस के इन दोनों क्षत्रपों के बीच दरार पाटने की कोशिश जरूर की है, लेकिन ये देखने वाली बात होगी कि उनकी ये पहल विधानसभा चुनाव तक टिक पाती है या नहीं। इतिहास गवाह है कि कांग्रेस में हर चुनाव से पहले टिकट वितरण की नौबत आने पर उसके नेताओं में खींचतान बढ़ जाती है। यदि कांग्रेस प्रदेश की सत्ता पर लंबे समय से काबिज बीजेपी सरकार के खिलाफ जनता की नाराजगी को अपने पक्ष में मोड़ना चाहती है तो इसके लिए उसे एकजुटता से साथ मजबूत मैदानी संगठन और प्रॉपर रोड मैप की जरूरत है। यही उसकी प्रमुख चुनौती है। 





जनदर्शन यात्रा के नाम पर औचक दौरे करते थे दिग्विजय सिंह





1998 में दिग्विजय सिंह जब मुख्यमंत्री थे, तब वे जनदर्शन यात्रा के नाम पर औचक दौरे करते थे। दिग्विजय सिंह का हेलिकॉप्टर सुबह भोपाल से रवाना होता था। हेलिकॉप्टर के पायलट को भी पता नहीं होता था कि किस जगह पर हेलिकॉप्टर को उतारना है। दिग्विजय सिंह के हाथ में मध्यप्रदेश का नक्शा होता था और नक्शे के आधार पर दिग्विजय सिंह पायलट को उस जगह पर हेलिकॉप्टर उतारने के निर्देश देते थे। जिस जगह पर भी हेलिकॉप्टर उतरता था उसके आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों से दिग्विजय सिंह मिलते थे। सरकार की योजनाओं और कामकाज का फीडबैक लेते थे।



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