BHOPAL. इसमें अब दो मत नहीं बचे कि मध्यप्रदेश में 2023 के विधानसभा चुनाव में एकतरफा विजय पताका फहराने के लिये मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पूरी ताकत झोंक दी है। वे एक तरफ घोषणाओं की झड़ी लगा रहे हैं तो दूसरी तरफ प्रशासनिक सख्ती बरत रहे हैं। तीसरी तरफ से संगठन ने भी कमर कस ली है तो चौथी तरफ से केंद्रीय नेतृत्व भी यह मानता हुआ नजर आ रहा है कि चुनाव की बागडोर शिवराज के हाथ में रखना ही होगा। कुल मिलाकर यह कि इस चुनावी समर में बीजेपी ने अपनी ताकत को निचोड़ कर लगा देना सुनिश्चित कर लिया है, मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस अभी तक सही मायने में तलवार की धार ही नहीं लगा पाई है। अभी तो इसी ऊहापोह में लगी है कि म्यान किसकी कमर में लटकाई जाए? ऐसे में युद्ध के नतीजे का अनुमान भले ना लगाया जा सके, हौसले का अंदाज तो बखूबी लगाया जा सकता है।
बीजेपी को कांग्रेस की गलतियों का इंतजार
यूं देखा जाये तो मप्र में विधानसभा चुनाव का माहौल गरम होता लग रहा है, लेकिन इसमें प्रादेशिक की बजाय केंद्रीय तड़का लगा है। प्रदेश कांग्रेस को अखाड़े में उतरने के पहले जो तैयारियां कर लेना चाहिए, वह नहीं दिख रही। राहुल की सदस्यता मसले पर आंदोलनबाजी के दौर को कांग्रेस यदि अपने चुनाव अभियान की सूची में जोड़ लेगी तो शुरुआती रणनीतिक गलती कर बैठेगी। उधर, शिवराज और बीजेपी संगठन इस फिराक में ही बैठा है कि कांग्रेस की कमजोर कड़ियां पहचान कर उन पर ऐसा प्रहार कर दें कि उसे संभलने का मौका ही ना मिले।
शिवराज का लक्ष्य साफ- इस बार फिर उल्लेखनीय जीत, लाड़ली बहना का मोहिनी अस्त्र भी फेंका
बहुत सारी चर्चाओं अफवाहों के बीच शिवराज सिंह चौहान ने पिछले 6 महीने में प्रदेश की जनता, स्थानीय कार्यकर्ता और केंद्रीय नेतृत्व को यह अहसास तो करा दिया है कि उनका लक्ष्य एकदम साफ है। वे हर हाल में चुनाव में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त करना चाहते हैं, जिसके लिये तैयारियों से लगाकर हौसले,आक्रमकता,चपलता,सख्ती और तिकड़म के सारे अस्त्र-शस्त्र चलाने से परहेज नहीं करने वाले। वे इस सफलता से बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को 2024 के आम चुनाव के लिये आत्मविश्वास बढ़ाने की खुराक देने की मंशा तो रखते ही हैं, साथ ही वे 2018 में अपने ऊपर लगे हार के मैल को भी कुछ इस तरह धो डालना चाहते हैं, जो यह आभास कराए, जैसे वह दाग कभी लगा ही नहीं था। इसके लिये नारा उछाला गया है- इस बार 200 पार। भले ही यह नारा केंद्रीय नेतृत्व की ओर से आया हो, किंतु प्रादेशिक नेतृत्व भी ऐसी उद्घोषणा कर चुका है।
जनता के बीच मोहिनी अस्त्र तो जगत मामा पहले ही फेंक चुके हैं- लाड़ली बहना के रूप में। वार्ड स्तर पर जबर्दस्त मुहिम चलाकर बहनों को जोड़ा जा रहा है, बैंकों में कतार लगी है और प्रक्रिया पूरी कराने की होड़ मची है। अब कांग्रेस इससे जुड़ी कितनी ही घोषणायें बढ़ा-चढ़ाकर कर ले, वह असर नहीं कर पायेगी, बल्कि नकल ही कहलायेगी। नई शराब नीति बनाकर और प्रहलाद लोधी को फिर से भाजपा प्रवेश कराकर मामा ने उमा भारती के सगे भाई होने का संदेश भी दे दिया।
कमलनाथ को गढ़ में घेरने की तैयारी
छिंदवाड़ा में अमित शाह की सभा कराकर कमलनाथ को अपने किले में घेरने की रणनीति को अंजाम देकर उन्हें बैचेन कर दिया तो बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को भोपाल बुलाकर कार्यकर्ताओं को नसीहत और प्रोत्साहन दिलाकर जोश से भर दिया। जरूरी प्रशासनिक फेरबदल कर अपने हिसाब से चुनावी जमावट कर ली तो हाड़तोड़ मेहनत कर दिल्ली को संदेश भी दे दिया कि अभी तो प्रदेश बीजेपी में वे अपरिहार्य से हैं।
सीधे तौर पर कहें तो शिवराज सिंह चौहान ने जंग के लिये जरूरी तमाम अस्त्र-शस्त्र तरकश और कांधे पर सजा भी लिये हैं और जोरों से हुंकार भरकर अपने आत्म विश्वास का प्रदर्शन भी कर दिया है। यह मैदान में मौजूद चिर-परिचित विरोधी के साथ-साथ अपनी ही सेना के भीतर दबी-छुपी मंशा वाले क्षत्रपों को भी जता दिया है कि सेनापति तो वे ही हैं और रणनीति भी उनकी ही चलेगी। अब बचता है जनता का भरोसा। इसके लिये कहना होगा कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों में इस समय तक तो शिवराज सिंह चौहान जैसा लोकप्रिय,चर्चित और परिचित चेहरा अभी नहीं है। वे जिस अंदाज में लोगों के दिलों के भीतर उतर जाते हैं, उनके साथ आत्मीयता का अहसास कराते हैं और उन्हें उनके सुख-दुख का साथी होने का भरोसा दिलाते हैं, वह अनुपम है।
यूं देखें तो इतनी विचित्रतताओं और विशेषताओं वाला कुशल वक्ता,मोहिनी छवि वाला भाजपा नेता प्रादेशिक स्तर पर तो नहीं है। यह उनका कद बढ़ाता है तो खतरा भी बढ़ाता है। इसके बीच संतुलन बैठाना ही शिवराज के लिये बड़ी चुनौती है, वरना विधानसभा चुनाव के लिए पिटारे से कभी कुछ, कभी कुछ निकाल कर मजमे में उछाल देना तो उन्हें खूब आता है।