कोलारस में सियासी कोलाहल, नजर इस पर- 2023 में सिंधिया समर्थक या फिर बीजेपी में से किसे मिलेगा टिकट?

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Atul Tiwari
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कोलारस में सियासी कोलाहल, नजर इस पर- 2023 में सिंधिया समर्थक या फिर बीजेपी में से किसे मिलेगा टिकट?

KOLARAS. मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले द सूत्र एक मुहिम चला रहा है। मूड ऑफ एमपी-सीजी (mood of mp cg) के तहत हमने जाना कि विधानसभा में मौजूदा हालात क्या हैं, जनता क्या सोचती है। अगले विधानसभा चुनाव में क्षेत्र का गणित क्या रहेगा। इसी कड़ी में हमारी टीम शिवपुरी की कोलारस विधानसभा सीट पर पहुंची....



समझें कोलारस की सियासत



शिवपुरी जिले की एक तहसील है। कोलारस ऐसी विधानसभा सीट है, जिसने तय कर दिया था कि 2018 में ग्वालियर चंबल की क्या तस्वीर रहने वाली है। दरअसल, 2018 की शुरूआत में कोलारस में उपचुनाव हुआ था और कांग्रेस के महेंद्र यादव ने ये चुनाव जीता था। इस चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पूरा जोर लगा दिया था, क्योंकि ये चुनाव उनके और कांग्रेस के भविष्य को तय करने वाला था। इन चुनावों को मप्र विधानसभा चुनाव 2018 का सेमीफाइनल कहा गया था। सत्ता के फाइनल यानी नवंबर-दिसंबर 2018 में ग्वालियर चंबल की विधानसभा सीटों का नतीजा कांग्रेस के पक्ष में रहा था। कोलारस सिंधिया के प्रभाव वाली सीट है। 



चार साल पहले हुए इस सियासी घटनाक्रम के बाद एमपी की सियासी गंगा में बहुत सा पानी बह चुका है। ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो चुके हैं और केंद्र की मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री है। उनके खास महेंद्र यादव भी कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आ चुके हैं।



कोलारस में कौन, कब काबिज हुआ?



1957 से अस्तित्व में आई कोलारस सीट पर हुए चुनाव में कांग्रेस  6 बार और बीजेपी 5 बार चुनाव जीती। 1957 में कांग्रेस के वैदेही चरण इस सीट से पहले विधायक थे और 1962 में मनोरमा देवी पहली महिला विधायक। इसके बाद 1967 और 1972 के चुनाव में स्वतंत्र पार्टी और भारतीय जनसंघ के कब्जे में सीट रही। 1977 में जनता पार्टी ने भी यहां से चुनाव जीता। ये वो वक्त था, जब विजयाराजे सिंधिया का बीजेपी में प्रभाव बढ़ गया था। 



1980 और 1985 में कांग्रेस के पूरन सिंह बेड़िया ने दो बार यहां से चुनाव जीता। 1990 और 1993 के चुनाव में ये सीट बीजेपी की झोली में चली गई और ओमप्रकाश खटीक विधायक चुने गए। 1998 में एक बार फिर पूरन सिंह (कांग्रेस) ने यहां से चुनाव जीता। इसके बाद 2003 और 2008 में बीजेपी के विधायक चुने गए। 2013 में कांग्रेस के रामसिंह यादव यहां से चुनाव जीते। 2018 में बीजेपी के वीरेंद्र रघुवंशी ने चुनाव जीता। रघुवंशी का सिंधिया का विरोधी माना जाता है, लेकिन ज्योतिरादित्य के बीजेपी में जाने के बाद हालात बदल गए। अब आने वाले वक्त में पूर्व विधायक और सिंधिया समर्थक में टिकट को लेकर द्वंद्व देखने को मिल सकता है।



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कोलारस का सियासी समीकरण



जब तक राजमाता शिवपुरी से सांसद रहीं, तब तक यहां से बीजेपी के विधायक चुने जाते रहे। जब ज्योतिरादित्य सिंधिया यहां से सांसद बने तो ये सीट कांग्रेस की झोली में चली गई। अब ज्योतिरादित्य सिंधिया भी बीजेपी में शामिल होने से कहानी बदल गई है। अब इस सीट पर बीजेपी के दो दावेदार हैं। मौजूदा विधायक वीरेंद्र रघुवंशी के सामने पूर्व विधायक महेंद्र यादव भी खम ठोक रहे हैं। सिंधिया के साथ महेंद्र यादव भी बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। 2023 में टिकट किसे मिलेगा, इसका फैसला दोनों ने जनता और पार्टी पर छोड़ दिया है।



कोलारस में जातिगत समीकरण




  • कोलारस में चुनाव हमेशा मुद्दे पर नहीं, बल्कि जातिगत आधारों पर लड़े और जीते जाते हैं। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बहुजन समाज पार्टी यहां से 20 फीसदी वोट हासिल करती है जो केवल जातिगत आधार पर ही चुनाव लड़ती है।


  • इस सीट पर ओबीसी और एसटी वर्ग के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। 

  • करीब ढाई लाख वोटर्स वाली सीट पर धाकड़ और यादव समाज के करीब 30-30 हजार वोट हैं। आदिवासी, जाटव और अन्य जाति के वोटरों को मिलाकर करीब 50 हजार वोट हैं

  • रघुवंशी समाज के करीब 7 से 8 हजार, लोधी समाज के 10 हजार तो ब्राह्मण और वैश्य समाज के भी करीब 8 से 10 हजार वोट हैं।

  • कोलारस का औसत मतदान प्रतिशत 60 फीसदी है।



  • जनता क्या कहती है?



    द सूत्र की चौपाल में जनता ने कई सारी समस्याएं गिनाईं। जब इन मुद्दों को लेकर बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं से हमने सवाल किए तो कांग्रेस की बजाय बीजेपी ही अंर्तकलह से जूझती नजर आई।



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