इतिहास और राजनीति को समेटे है पिछोर, 30 साल से कांग्रेस का अभेद्य किला, जीतने के लिए बीजेपी झोंक रही ताकत

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Atul Tiwari
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इतिहास और राजनीति को समेटे है पिछोर, 30 साल से कांग्रेस का अभेद्य किला, जीतने के लिए बीजेपी झोंक रही ताकत

Pichhor. मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले द सूत्र एक मुहिम चला रहा है। मूड ऑफ एमपी-सीजी (mood of mp cg) के तहत हमने जाना कि विधानसभा में मौजूदा हालात क्या हैं, जनता क्या सोचती है। अगले विधानसभा चुनाव में क्षेत्र का गणित क्या रहेगा। इसी कड़ी में हमारी टीम शिवपुरी की पिछोर विधानसभा सीट पर पहुंची....



पिछोर को जानिए



तोमर राजपूतों की चंपा नगरी को आज पिछोर के नाम से जाना जाता है। यहां का किला अपनी ऐतिहासिक विरासत के लिए जाना जाता है। इस किले पर मुगल, मराठा और अंग्रेजों का शासन रहा। 1860 में किला सिंधिया राजवंश को मिला। जितना समृद्ध यहां का इतिहास है, उतना ही दिलचस्प यहां का राजनीतिक मुकाबला होता है। ये विधानसभा सीट है, जहां बीजेपी अपनी पूरी ताकत लगाती है, लेकिन फिर भी कांग्रेस के केपी सिंह अपना किला बचा ले जाते हैं।



पिछोर का सियासी समीकरण



पिछोर विधासभा सीट केपी सिंह की राजनीतिक विरासत है। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि केपी सिंह यहां से लगातार पिछले 30 सालों से विधायक का चुनाव जीतते आ रहे हैं। 1957 में इस सीट से पहली बार कांग्रेस के राजा राम सिंह ने चुनाव जीता। 1962 में इस सीट पर हिंदू महासभा के लक्ष्मी नारायण ने जीते। इसके बाद सीट स्वतंत्र पार्टी, जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच बदल-बदल कर उम्मीदवार जीतते रहे। यहां साल 1993 में इंट्री हुई केपी सिंह की। केपी सिंह 30 साल से लगातार इस सीट से जीतते आ रहे हैं। इस दौरान उनकी जीत का आंकड़ा कम ज्यादा होता रहा। 2008 में 26 हजार से ज्यादा वोटों से जीतने वाले केपी सिंह 2018 में महज 2600 वोटों से जीते, लेकिन कांग्रेस में उनका कद हमेशा बढ़ता चला गया। 



पिछोर में जातिगत समीकरण  



इस सीट के जातिगत समीकरण के बात करें तो यहां कुल वोटर 2 लाख 15 हजार 517 है। यहां की बहुसंख्यक आबादी है। इसमें धाकड़ समाज के 50 हजार मतदाता हैं। वहीं, ब्राह्मण वोटरों की संख्या 35 हजार है। आदिवासी समाज के 30 हजार मतदाता हैं तो वहीं जाटव और कुशवाहा वर्ग से भी20-20 हजार मतदाता हैं। यादव और रावत समाज के भी करीब-करीब 12-12 हजार मतदाता हैं। यहां दोनों ही दलों के लिए जातिगत समीकरण महत्वपूर्ण रहते हैं, हालांकि लगातार केपी सिंह की जीत का आंकड़ा कम होता जा रहा है तो वहीं बीजेपी भी पुरजोर कोशिश कर इस विधानसभा सीट पर अपना परचम लहराने की रणनीति बना रही है।



पिछोर के मुद्दे



पिछोर विधानसभा में मुद्दों से ज्यादा जातिगत समीकरण प्रभावी है। इस इलाके में भी प्रदेश के अन्य इलाकों की तरह मूलभूत सुविधाओं का अभाव साफ तौर पर दिखाई देता है। यहां भी सड़क, बिजली पानी, रोजगार को लेकर जनता अपनी नाराजगी जाहिर करती है। उद्योगों का अभाव और जातिगत समीकरणों के प्रभाव के बीच में जनता है।



द सूत्र ने इलाके के प्रबुद्धजनों, वरिष्ठ पत्रकारों और जनता से चर्चा की तो कुछ सवाल निकल कर आए। पहला सवाल- किसानों की जमीन सराकरी योजनाओं में अधिग्रहित हो रही है जिसे किसान देना नहीं चाहते, इसे रोकने की आपने क्या कोशिश की? दूसरा सवाल- 15 महीने की सरकार के दौरान आपके इलाके के कितने किसानों का कर्जा माफ हुआ? तीसरा सवाल- मास्टर प्लान में रोड तो बहुत प्रस्तावित हुईं, अब तक बनी क्यों नहीं? चौथा सवाल- जलसंकट  से निपटने के लिए तालाब निर्माण और अन्य कार्यों पर कितना राशि खर्च की? पांचवां सवाल-  15 महीने की सरकार में आपके इलाके के कितने युवाओं को बेरोजगारी भत्ता मिला?



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