BHOPAL. मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी जीवनदायनी नर्मदा नदी को हम मां कहते हैं। अब तक आपने नर्मदा को लेकर बड़ी—बड़ी बातें सुनी होगी, लेकिन अब जो हम आपको नर्मदा की हकीकत बताने जा रहे हैं, उसे देखकर आप भी चौक जाएंगे। नर्मदा का सीना छलनी करने के गुनहगारों का पर्दाफाश करने के लिए द सूत्र ने ऑपरेशन रेत के डकैत किया। नर्मदा के 120 किमी के सफर में क्या देखने को मिला, वह हम आपको आगे बताएंगे, लेकिन पहले यह जानना जरूरी है कि इस ऑपरेशन के लिए हमने नसरुल्लागंज के पास के इलाके छीपानेर से प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पैतृक गांव जैत के पास के नर्मदा घाट बघवाड़ा के बीच का सफर ही क्यों चुना। दरअसल, द सूत्र के पास एक वीडियो आया, जिसमें शाहगंज का एक किसान राजेश चौहान नर्मदा में हो रहे अवैध उत्खनन को लेकर कई आरोप लगा रहा है। राजेश चौहान अपने वीडियो में कहते सुनाई दे रहे हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पैतृक गांव जैत के पास ही नर्मदा में जेसीबी और पोकलेन से रेत निकाली जा रही है। ये इलाके सीएम की विधानसभा बुधनी के हैं। राजेश चौहान ने अपने वीडियो में यह भी आरोप लगाए कि उन्होंने इसकी शिकायत सीएम, खनिज मंत्री, कलेक्टर, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को की, पर कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही और न ही कोई विभाग कार्रवाई कर रहा है। इस वीडियो में लगे आरोपों की पड़ताल के लिए ही द सूत्र ने अपना रूट चुना।
सच्चाई का पता लगाने 120 किमी सड़क और 25 किमी नाव से सफर
सच्चाई का पता लगाने द सूत्र की टीम भोपाल से रवाना हुई नसरुल्लागंज की ओर, मंजिल थी भोपाल से 110 किमी दूर छीपानेर। दरअसल, छीपानेर सीहोर जिले के अंतर्गत आता है और बुधनी विधानसभा का अंतिम गांव है। द सूत्र की टीम ने यहां से लेकर करीब 120 किमी दूर बुधनी विधानसभा के ही बघवाड़ा तक सफर किया, इस बीच में करीब 25 किमी नाव से भी जायजा लिया, ताकि नर्मदा में हो रहे अवैध खनन की सच्चाई का पता लगाया जा सके, जो तस्वीरें सामने आई, उन्हें देखकर आप भी हैरान हो जाएंगे।
पहला पड़ाव छीपानेर : खदान नहीं, लेकिन जगह-जगह रेत के ढेर
द सूत्र की टीम सबसे पहले पहुंची नसरुल्लागंज से करीब 17 किमी दूर नर्मदा किनारे बसे छीपानेर गांव में। यह बुधनी विधानसभा का अंतिम गांव है। यहां रेत की कोई स्वीकृत खदान नहीं है, इसके बावजूद सड़क किनारे जगह-जगह पड़े रेत के ढेर और रेत से ओवरलोड होकर गुजर रहे डंपर-ट्रैक्टर-ट्रॉलियां इस गांव की अपने आप पूरी कहानी बयां कर देती हैं। जब टीम यहां के प्रसिद्ध धूनीवाले बाबा के मंदिर के पास पहुंची तो जो देखा उसे देखकर चौंक गई। मंदिर के सामने खुलेआम नाव से लाई गई रेत को ट्रॉलियों में लोड किया जा रहा था। मंदिर के आसपास कुछ दुकानें थीं, लोग भी थे, ऑन कैमरा कहीं कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं, पर जिस तरीके से बिना किसी डर के यह सब वहां चल रहा था, मानो यह उन सभी के लिए रोजमर्रा की जिंदगी का एक आम हिस्सा हो।
दूसरा पड़ाव रानीपुरा : एक दर्जन नाव ट्रॉलियों में भर रही थीं रेत
छीपानेर के बाद टीम का दूसरा पड़ाव था नर्मदा के अगले घाट रानीपुरा का। रानीपुरा के हालात भी छीपानेर से जुदा नहीं थे, अंतर था तो बस इतना कि छीपानेर से कहीं ज्यादा यहां पर खुलेआम नाव से रेत को ट्रॉलियों में भरा जा रहा था। मौके पर करीब एक दर्जन से ज्यादा नाव मिलीं, जो ट्रॉलियों में रेत को लोड कर रही थीं। अमूमन कुछ ऐसी ही तस्वीर चौरसाखेड़ी घाट की भी थी। इतना तो तय था कि नाव में रेत नर्मदा नदी के बीच में से लाई जा रही है, पर ये रेत निकाली कैसे जा रही है, यह पता करने टीम वापस नसरुल्लागंज पहुंची और वहां से करीब 9 किमी दूर नीलकंठ घाट के लिए रवाना हुई।
तीसरा पड़ाव नीलकंठ : 2500 परिवार के लिए यही रोजी-रोटी का सहारा
टीम जब नीलकंठ पहुंची तो वहां मुलाकात हुई नाव से रेत का परिवहन करने वाले राजू से। राजू पहले तो कुछ नहीं बोला, लेकिन जब भरोसा दिलाया कि उसके हक की ही बात कर रहे हैं, तब उसने इतना जरूर कहा कि वह अवैध खनन जैसा कुछ नहीं जानता, उसे उसके भूखे पेट से मतलब है। रोजगार के यहां कोई दूसरे साधन नहीं है। लोगों ने बताया कि नर्मदा किनारे बसे गांवों में करीब 2500 परिवार के लिए यही रोजी-रोटी का सहारा है। एक अन्य ग्रामीण ने बताया कि अकेले इस घाट पर ही 100 से ज्यादा नाव हैं, हालांकि त्योहार के कारण मजदूर बाहर गए हैं। नीलकंठ घाट पर इक्का-दुक्का नाव ही रेत निकालने का काम कर रही थीं। ग्रामीण ने बताया कि रॉयल्टी वाला ठेकेदार यहां ज्यादा कमाई कर रहा है। नीलकंठ घाट नहीं है, मतलब स्वीकृत खदान नहीं है, लेकिन रॉयल्टी मिल जाती है। ट्रैक्टर-ट्रॉली वाले रॉयल्टी नहीं लेते, ये बिना रॉयल्टी के रेत सप्लाई करते हैं।
चौथा पड़ाव छिदगांव : यूपी और बिहार तक से मजदूर इस धंधे में लगे
द सूत्र की टीम ने नीलकंठ घाट से अपना सफर नर्मदा नदी में नाव से शुरू किया। नीलकंठ घाट से कुछ दूरी पर ही मिला छिदगांव घाट। यहां नदी के अंदर से रेत निकालते हुए मजदूर मिल गए। नर्मदा में डुबकी लगाकर मजदूर बाल्टी से रेत निकाल रहे थे और उस रेत को नाव में डाल रहे थे। नाव के जरिए यह रेत नदी के किनारों पर खड़ी ट्रॉलियों में लोड हो रही थी, जहां से ये आगे की ओर जा रही थी। नदी से रेत निकालने वाले मजदूरों से बात करने पर पता चला कि इस घाट पर यूपी और बिहार तक से मजदूर आकर काम कर रहे हैं। यहां एक मजदूर अयोध्या का रहना वाला था, जो तीन महीने से नदी से रेत ही निकालने का काम कर रहा है।
पांचवां पड़ाव बड़गांव : नर्मदा के सीने पर जेसीबी, पोकलेन और दर्जनों नाव
छिदगांव से द सूत्र की टीम नाव से बड़गांव की ओर आगे बढ़ी। यहां का दृश्य हैरान करने वाला था। नर्मदा किनारे खड़ी जेसीबी, पोकलेन मशीन, दर्जनों नाव और ट्रैक्टर ट्रॉलियां खुद अपने आप में पूरी कहानी बयां कर रही थी। टीम के साथ नाव में ही मौजूद एक ग्रामीण सुनील गोल्या ने बताया कि सिर्फ बड़गांव ही नहीं छीपानेर से लेकर बाबरी तक पूरी बुधनी विधानसभा में सैकड़ों मशीने बीच नर्मदा से रेत निकालने में लगी हुई है। त्योहार के कारण अभी नाव कुछ कम दिखाई दे रही है। वरना 70% नदी पर सिर्फ नाव ही नाव दिखती है। शासन को जानकारी है, पर मिलीभगत और कमीशन के खेल के कारण कोई कार्रवाई नहीं होती।
छठवां पड़ाव नर्मदापुरम : जोशीपुर-बघवाड़ा में आंखों के सामने नर्मदा का सीना छलनी
बड़गांव में रास्ता बंद होने से द सूत्र की टीम वापस सड़क मार्ग से होते हुए 85 किमी दूर पहुंची मां नर्मदा की नगरी नर्मदापुरम। नर्मदापुरम संभागीय मुख्यालय है और यहां के प्रभारी मंत्री प्रदेश के खनिज मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह ही है। बुधनी विधानसभा के अंतर्गत अब तक हमने जो आपको अवैध खनन दिखाया वह मुख्य सड़क से 10 से 15 किमी दूर छोटे से गांव के आसपास का था, पर अब जो हम बताने जा रहे हैं वह मामला संभागीय मुख्यालय के ठीक सामने का ही है। नर्मदापुरम शहर नर्मदा किनारे ही बसा है और यहां रेस्ट हाउस घाट के ठीक सामने कुछ मीटर दूर ही बुधनी विधानसभा का जोशीपुर-बघवाड़ा घाट लगता है। यह बात सही है कि नर्मदापुरम के अधिकारियों का ज्यूरिस्डिक्शन अलग है, लेकिन उनके आंख के सामने ही हर दिन नर्मदा का सीना छलनी हो रहा है और किसी को भी कोई फर्क नहीं पड़ रहा।
ट्रैक्टर के ब्लेड से नदी से निकाल रहे रेत
जोशीपुर-बघवाड़ा घाट से सीएम शिवराज सिंह चौहान का पैतृक गांव बमुश्किल 25 किमी दूर ही है। यहां दर्जनों ट्रैक्टर नदी के अंदर से ही रेत को निकालते दिखे। ट्रैक्टर पहले नदी में इतनी गहराई तक जा रहे थे, जहां ये करीब-करीब आधे डूब जाते हैं, उसके बाद ट्रैक्टर के पीछे लगी ब्लेड के जरिए नदी के अंदर की रेत को बाहर निकाला जाता है। जब रेत पर्याप्त मात्रा में इकट्ठा हो जाती है तो इसे ट्रॉलियों में लोड कर बाहर की ओर रवाना कर दिया जाता है।