BHOPAL. राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक दिल्ली में संपन्न हुई, लेकिन खलबली मध्यप्रदेश में मच गई है। खलबली मचनी ही थी, क्योंकि पीएम नरेंद्र मोदी ने भरी बैठक में एमपी के नेताओं के सामने जमीनी हकीकत खोलकर रख दी और फटकार भी लगा दी। आला नेताओं की बैठक के खत्म होने के कुछ ही घंटे बाद मध्यप्रदेश में भी बड़ी बैठक हो चुकी है। जिसमें सीएम मंत्रियों की लगाम कस ही चुके हैं। बैक टू बैक होने वाली ये बैठक आने वाले बड़े बदलाव का संकेत भी हो सकती हैं।
बड़े नेता फिलहाल कुछ दिन और खैर मना सकते हैं!
मध्यप्रदेश में गुजरात फॉर्मूला लागू होगा का दावा करने वाले प्रदेश के तमाम नेताओं की बोलती पीएम मोदी ने सिर्फ एक बात से बंद कर दी। ये अंदेशा था कि राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक के बाद प्रदेश में बड़े बदलाव होंगे। गुजरात की तरह एक झटके में सीएम सहित मंत्रिमंडल बदल दिया जाएगा। लेकिन बैठक में जेपी नड्डा का कार्यकाल बढ़ा तो कुछ समय का जीवनदान प्रदेश के नेताओं को भी मिलता नजर आ रहा है। बड़े नेता फिलहाल कुछ दिन और खैर मना सकते हैं, लेकिन मंत्रियों पर तलवार जल्दी गिर सकती है। बीजेपी ने अपनी बड़ी बैठक में ये संकेत दे दिया कि फिलहाल मध्यप्रदेश में सीएम और अध्यक्ष पर उनका फोकस नहीं है। पार्टी अभी अपना सारा ध्यान उन राज्यों पर लगाना चाहती है जहां जल्द ही चुनाव होने हैं। मध्यप्रदेश की बारी उसके बाद भी आ सकती है, लेकिन पीएम मोदी की एक फटकार ये साफ इशारा कर रही है कि एमपी में बूथ लेवल पर हो रहे काम से वो खुश नहीं हैं।
पीएम मोदी मध्यप्रदेश में बूथों पर पकड़ से खुश नहीं
गुजरात की जीत के बाद मध्यप्रदेश के भी अधिकांश नेता गुजरात फॉर्मूले की जीत का गुणगान करते नजर आए। फॉर्मूला सिर्फ एक याद रहा कि चुनाव से पहले सीएम और कैबिनेट बदल दी गई। लेकिन बैठक में पीएम नरेंद्र मोदी ने ये साफ कर दिया कि गुजरात फॉर्मूला की बात करने वाले नेता पहले जमीनी स्तर के हालात को समझें। अंदरखानों की खबर ये है कि पीएम मोदी मध्यप्रदेश में बूथों पर पार्टी की पकड़ से खुश नहीं हैं। उन्होंने बैठक में साफ कहा कि गुजरात की जीत इसलिए हुई क्योंकि वहां बूथ मजबूत थे। बूथ की मजबूती एंटीइंकंबेंसी को काफी हद तक कम कर देती है। हालांकि, बूथ लेवल पर पार्टी के डिजिटल होने की जानकारी पर उन्होंने पीठ भी थपथपाई।
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कार्यकर्ताओं की हर बात से आलाकमान बाखबर है
बात बूथों की है तो यहां ये याद दिलाना भी जरूरी है कि कुछ दिन पहले एक बैठक में जिला प्रभारी ने प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा के सामने बूथ समितियों के बारे में खुलकर बात की थी। जिला प्रभारी ने कहा था कि बूथ समितियां सिर्फ कागजी हैं। खबर तो ये भी है कि जिला प्रभारी की उस बात से प्रदेशाध्यक्ष नाराज भी हुए, लेकिन जिला प्रभारी अपनी बात पर अड़ा रहा। उसी तर्ज पर पीएम का बूथों की मजबूरी पर नाराजगी जताना ये जाहिर तो करता ही है कि कार्यकर्ताओं की बात से प्रदेश के नेता भले ही बेखबर हों, लेकिन आलाकमान हर बात से बाखबर हैं। पीएम मोदी से मिली छोटी सी सलाह क्या इस बात का संकेत है कि वो प्रदेश संगठन के चुनावी मैनेजमेंट से खुश नहीं है। जिसका खामियाजा आज नहीं तो कल भुगतना पड़ सकता है।
राहत की बात, फिलहाल बड़े चेहरे या मंत्रिमंडल में बदलाव के संकेत नहीं
एमपी में किस स्तर पर क्या काम चल रहा है आलाकमान को हर बात की खबर है। जिसके बाद खलबली मचना लाजमी थी। राहत की सांस यूं भर सकते हैं कि फिलहाल बड़े चेहरे बदलने या मंत्रिमंडल में बड़े उलटफेर के कोई संकेत नहीं मिले हैं। हालांकि, कुछ राजनीतिक जानकार ये दावा भी कर रहे हैं कि फरवरी से मई तक जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, उससे निपटने के बाद बीजेपी मध्यप्रदेश के लिए बड़े फैसले ले सकती है। लिहाजा राहत महसूस करना अरमानों पर पानी फिरने जैसा हो सकता है। ये बात शायद मध्यप्रदेश के तजुर्बेकार सीएम भी भांप चुके हैं। जो बैठक के बाद भोपाल में एक बड़ी बैठक में बड़े फरमान सुना चुके हैं।
ट्रिपल लेयर सर्वे के आधार पर नॉन परफार्मर मंत्री बदलेंगे
बीजेपी समेत सारे दलों के लिए ये साल बहुत बड़ा जम्मू कश्मीर में चुनाव घोषित हुए तो इस साल दस राज्यों के चुनाव लड़ने हैं। मध्यप्रदेश का नंबर नवंबर में आएगा, उससे पहले त्रिपुरा, नागालैंड, मेघालय और कर्नाटक जैसे प्रदेशों के चुनाव होने हैं। जाहिर है मध्यप्रदेश पहले फोकस इन राज्यों की ओर है। इसका ये कतई मतलब नहीं कि कुछ और वक्त तक मध्यप्रदेश के तमाम मंत्री और नेता चैन की बंसी बजा सकते हैं। हालांकि, आलाकमान का रुख अभी इधर नहीं है, लेकिन सियासी हवा कब इधर का रास्ता पकड़ ले ये कहा नहीं जा सकता। यही वजह है कि सीएम शिवराज बैठक के तुरंत बाद एक्टिव हो गए। एक बड़ी बैठक ली, जिसमें सारे मंत्रियों को सख्त ताकीद दी गई है कि वो विकास यात्रा को गंभीरता से लें। गांव तक अपनी पहुंच बढ़ाएं। ट्रिपल लेयर सर्वे के आधार पर फिर से ये याद दिला दिया कि नॉन परफार्मर मंत्री कभी भी बदले जा सकते हैं। इसका मतलब साफ है जिन्हें कुर्सी बचानी है उन्हें फरवरी की विकास यात्रा के जरिए आखिरी मौका मिल रहा है। इस दौरान कार्यकर्ताओं की नाराजगी भी दूर करनी है और बूथ तक पकड़ बनानी है।
नरेंद्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया और कैलाश विजयवर्गीय की प्रदेश में वापसी
अटकलें हैं कि नरेंद्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया और कैलाश विजयवर्गीय इन तीन नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी सौंपकर आलाकमान इन्हें प्रदेश में वापस भेज दें। यानी चुनाव की बागडोर अकेले शिवराज या वीडी शर्मा के हाथ नहीं, बल्कि इन नेताओं के हाथ भी होगी। इसमें प्रहलाद पटेल का नाम भी शामिल हो सकता है। बदलावों का सिलसिला यहीं नहीं रुकता।
जानकारों की मानें तो
गुजरात की तर्ज पर मध्यप्रदेश में बड़े फेरबदल की संभावना हैं, शिवराज कैबिनेट के कई मंत्री बदले जाने की संभावना नजर आती है। विंध्य और महाकौशल के नेताओं को कैबिनेट में तवज्जो मिलेगी ऐसे आसार हैं। जाति आधारित समीकरण साधने के लिए भी मशक्कत होगी इस बात का भी अंदाजा है। शिवराज, वीडी समेत संगठन के बड़े नेता बदले जा सकते हैं। प्रदेश बीजेपी में ये बदलाव संभावित माने जा रहे हैं। हालांकि, अब तक किसी बदलाव पर मोहर नहीं लगी है, लेकिन बीजेपी ऐन वक्त पर रणनीति बदल कर चौंकाने वाली राजनीति करने में माहिर है इसलिए कभी भी किसी भी बदलाव की या फेरबदल की उम्मीद की जा सकती है।