JABALPUR. सूबे की सियासत में महाकौशल के रोल को देखने के लिए जरूरी है कि आप उसकी विरासत को पढ़ लें। इस साल मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होना है। चुनाव की तैयारी चालू हो गई है। सियासी पार्टियां अपने मोहरे धो-पोंछकर बिसात पर सजा रहे हैं। 38 विधानसभा सीटों के इस इलाके का सियासी इतिहास समृद्ध रहा है। ये सेठ गोविन्ददास, पंडित डीपी मिश्रा, श्यामसुंदर नारायण मुशरान, मंगरू उइके, गिरिराज किशोर कपूर, सुभाष चंद्र बनर्जी, मनोहर राव सहस्त्रबुद्धे, चिंतामन साहू, ठाकुर निरंजन सिंह, हरिविष्णु कामथ, भवानी प्रसाद तिवारी और शरद यादव की सियासी कर्मभूमि का इलाका है। सूबे की राजनीति में अच्छा खासा दखल महाकौशल का रहा है। आजादी की लड़ाई में भी महाकौशल चुप नहीं रहा। कांग्रेस, बीजेपी (पहले जनसंघ) और समाजवादी आंदोलन की इस जमीन पर राजनीति के बड़े खिलाड़ी अपना हुनर या दांव पेंच दिखा चुके हैं। समय की मार और करवट ने इसकी राजनीति को भी प्रभावित किया, जो होना था वो हुआ भी। कांग्रेस, बीजेपी और समाजवादी राजनीति ने बड़े उतार-चढ़ाव देखे हैं। अब ये सब एक इतिहास है। इसका उल्लेख करने का जरूरी कारण था कि क्षेत्र की तासीर का हवाला हो तो समझने में आसानी होती है। आज के दौर में महाकौशल कांग्रेस और बीजेपी की सीधी लड़ाई का मैदान है।
महाकौशल ऐसा क्षेत्र है जहां हर जात, धर्म के लोग ठीक-ठाक तादाद में रहते हैं। कुछ जिले स्पष्ट और कुछ में बंटी हुई बसाहट में आदिवासी भी हैं। नक्सल आंदोलन की धमक भी है। जमीन के नीचे यदि खनिज है तो ऊपर उपजाऊ धरती पर हरे भरे खेत। नर्मदा, हिरन, तवा और बैनगंगा की धार और बरगी बांध की नहरों का जाल भी। शिक्षा के बड़े प्रतिष्ठित संस्थान हैं तो न्याय करता हाईकोर्ट भी। महाकौशल की अपनी संस्कृति है, साहित्य, अध्यात्म, धर्म-बोली, भाषा की मजबूत विरासत भी इस गुलदस्ते में मिलते हैं| ओशो, महर्षि महेश योगी और शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती अध्यात्म के पुरोधा हैं तो व्यंग्य के सिरमौर हरिशंकर परसाई, सुभद्रा कुमारी चौहान, भवानी प्रसाद तिवारी, ज्ञानरंजन ने विपुल साहित्य का सृजन किया है। इन खूबियों वाले महाकौशल में राजनीति की मौजूदा हालत को नापने के लिए जरूरी है कि सूबाई सरकार की नजर और तवज्जो को भी परखना होगा।
महाकौशल की राजनीति के केंद्र रहे जबलपुर से ही राजनीति को पकड़ने की कोशिश करना ठीक रहेगा। जबलपुर में लम्बे समय के बाद कांग्रेस ने प्रदर्शन तो बेहतर किया है, लेकिन जबलपुर के विकास को लेकर किसी भी राजनितिक दल के पास जुबानी जमा खर्च ही ज्यादा दिखता है। रक्षा संस्थानों के इस शहर में अब बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। नरसिंहपुर, बालाघाट, सिवनी में भी विकास का पहिया रुका है। मंडला और डिंडौरी तो विकास की दौड़ अभी शुरू ही कर रहे हैं। कटनी अपनी खनिज संपदा और व्यापारिक केंद्र के चलते चर्चा में तो है, फिर भी विकास की ऊंचाई के लिए बहुत कुछ होना बाकी है। छिंदवाड़ा ही वो जिला है जो अपनी अलग पहचान के साथ ठसक बनाए हुए है। अब तो इसके विकास और आर्थिक मॉडल को कांग्रेस सामने रखकर चुनावी तैयारी कर रही है।
एक समय था, जब महाकौशल की राजनीति का प्रमुख केंद्र जबलपुर हुआ करता था। सेठ गोविंददास, डीपी मिश्रा ने इसका नेतृत्व किया। उसके बाद की कमान समाजवादी राजनीति के पहरुआ शरद यादव ने संभाली, जिन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में महाकौशल को मुकाम दिया। संयुक्त विपक्ष के पहले उम्मीदवार का प्रयोग भी इसी धरती पर हुआ। राजनीति का ये वो दौर था, जब तीन विचार कांग्रेस बीजेपी और समाजवादी को जनता का समर्थन मिला। बीजेपी का असल प्रादुर्भाव 1980 के बाद ही हुआ। 1977 के नतीजों को भी बीजेपी के हक में जोड़ सकते हैं।
आज महाकौशल की 38 सीटों के बंटवारे में कांग्रेस को बढ़त है। कांग्रेस के पास 24 और बीजेपी के पास 13 सीट तो 1 स्वतंत्र उम्मीदवार (कांग्रेस का बागी अब बीजेपी के साथ) के पास है| जबलपुर की 8 में से कांग्रेस, बीजेपी के पास 4-4, कटनी की 4 में से बीजेपी 3, कांग्रेस 1, नरसिंहपुर 4 में बीजेपी 1 कांग्रेस 3, बालाघाट की 6 में से बीजेपी 2 कांग्रेस 3, स्वतंत्र 1, छिंदवाड़ा की 7 सीट में से सातों कांग्रेस के पास हैं। सिवनी की 4 में से बीजेपी-कांग्रेस 2-2 पर काबिज हैं। मंडला की 3 में से 1 बीजेपी, 2 कांग्रेस और डिंडौरी की 2 में से 2 सीट कांग्रेस के पास हैं।
इस बंटवारे में खास बात ये है कि कमलनाथ के जिले की सभी सीटें अभी तो कांग्रेस के पास हैं, लेकिन उनको सहेजे रखने की जिम्मेदारी भी उन्हीं के पास है। वैसे चुनावी गणित को देखें तो कमलनाथ को कांग्रेस फिर से मुख्यमंत्री का चेहरा बनाती हैं तो कांग्रेस अपनी बढ़त बरकरार रख सकती हैं। ये बात कांग्रेस के लोग आसानी से कह देते हैं, लेकिन ये इतना आसान नहीं। छिंदवाड़ा को ही लें तो लम्बे समय बाद ये नतीजा कांग्रेस के खाते में दर्ज हुआ है। महाकौशल में अपना रुतबा बढ़ाने के लिए बीजेपी ने तैयारी तेज कर दी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के लगातार दौरे बताते हैं कि पार्टी नेताओं की नकेल दुरुस्त की जा रही है। जबलपुर में कांग्रेस के सामने अपनी स्थिति को यथावत रखने के लिए ही मशक्कत करना होगी। मंडला और डिंडौरी में आदिवासी वोट पर नजर तो है, लेकिन अब आदिवासी वो नहीं रहा, जो पहले हुआ करता था। केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह के प्रभाव में भी कमी आई है। दुसरे केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल के गृह जिले में कांग्रेस की बढ़त है। वहां पर बीजेपी को अपने सांसद उदय प्रताप सिंह की जमावट का फायदा अभी तक नहीं मिला है। इस जिले में दो विधायक कांग्रेस के एनपी प्रजापति और संजय शर्मा कमान को ठीक से पकड़े हुए हैं। चुनाव में अभी समय है, नर्मदा की धार को अभी बहुत अठखेली करना है। इसलिए इलाके का रुझान भी थम कर टकटकी बांधे इंतजार कर रहा है।