BHOPAL. मध्यप्रदेश में ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) को लेकर कर्मचारी लामबंद हैं। हाल ही में राजधानी भोपाल में हजारों कर्मचारियों ने भेल दशहरा मैदान में शक्ति प्रदर्शन किया था। पेंशनर्स की समस्या केवल स्कीम तक सीमित नहीं है, बल्कि ये सरकार के धोखे का भी शिकार है। कोरोना काल जैसे मुश्किल दौर में जिन कर्मचारियों ने अपनी सेवाएं दी, सरकार ने उन्हें रिटायरमेंट के वक्त बढ़ा हुआ डीए तक नहीं दिया। इससे रिटायरमेंट पर कर्मचारियों को 2 से 2.5 लाख का नुकसान हुआ। वहीं सरकार ने 3 हजार करोड़ तक बचा लिए।
जनवरी 2019 की गणना के हिसाब से दिया डीए का लाभ
भोपाल के बावड़िया कला के शिवा रॉयल पार्क में रहने वाले राजेश चौबे ने बतौर तृतीय श्रेणी कर्मचारी 38 साल शासन को अपनी सेवाएं दी। इन्होंने मार्च 2020 से सितंबर 2021 तक कोविड काल के बीच भी ड्यूटी की और सितंबर 2021 में रिटायर हुए। रिटायरमेंट के बाद जब इन्होंने अवकाश नगदीकरण यानी जो छुट्टियां नहीं ली उसका भुगतान और ग्रेच्युटी की गणना की तो पता चला कि इन्हें तो करीब 2.5 लाख का नुकसान हुआ। कारण डीए की गणना जनवरी 2019 के हिसाब से की। राजेश चौबे ने कहा कि जुलाई 2019 से सितंबर 2021 तक जो भी कर्मचारी रिटायर हुए उन्हें 12 प्रतिशत डीए के हिसाब से ही लाभ मिला। इससे चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी तक को कम से कम 2 लाख और कुछ को 2.5 लाख से ज्यादा तक का नुकसान हुआ।
50 हजार रिटायर कर्मचारियों को हुआ नुकसान
ये कहानी अकेले राजेश चौबे की नहीं है, बल्कि प्रदेश के उन 50 हजार कर्मचारियों की है, जिनका रिटायरमेंट सितंबर 2021 तक हो गया और इन्हें रिटायरमेंट के वक्त 19 महीने पुराने डीए की गणना के हिसाब से लाभ दिया गया। इससे नुकसान ये हुआ कि रिटायरमेंट के बाद घर खरीदने या बच्चे की शादी का हिसाब किताब गड़बड़ा गया। पेंशनर्स एसोसिएशन के भोपाल संभागीय अध्यक्ष राजेश चौबे ने कहा कि केंद्र सरकार ने अपने ऐसे कर्मचारी जो कोविड काल के 18 महीने के दौरान रिटायर हुए, उन्हें डीए का लाभ 21 प्रतिशत (1 जनवरी 2020 से 30 जून 2020 तक), 24 प्रतिशत (1 जुलाई 2020 से 31 दिसंबर 2020 तक) और 28 प्रतिशत (1 जनवरी 2021 से 30 जून 2021 तक) दिया। मध्यप्रदेश सरकार ने जुलाई 2019 में 5 प्रतिशत डीए बढ़ा दिया, जो बढ़कर 17 प्रतिशत हो गया, लेकिन कमलनाथ सरकार के गिरते ही कोविड काल में बीजेपी सरकार ने इस पर रोक लगा दी, जो अब तक लगी हुई है, इससे कर्मचारियों को नुकसान उठाना पड़ा।
पेंशनर्स के घाटे और सरकार के मुनाफे का गणित
जुलाई 2019 से सितंबर 2021 में प्रदेश के 50 हजार कर्मचारी रिटायर हुए, लेकिन इन्हें लाभ मिला जनवरी 2019 के हिसाब से महंगाई भत्ते यानी 12 प्रतिशत के हिसाब से जबकि ये 31 प्रतिशत मिलना था। मतलब जुलाई 2019 से सितंबर 2021 तक रिटायर हुए कर्मचारियों को 19 प्रतिशत डीए का नुकसान हुआ, जो प्रत्येक पेंशनर्स को करीब 2.5 से 3 लाख रुपए बैठता है। इसके कारण 1500 से 3000 तक पेंशन का भी नुकसान उठाना पड़ा। इस नीति के कारण मध्यप्रदेश सरकार के करीब 3 हजार करोड़ बच गए।
5 लाख पेंशनर्स और 7 लाख कर्मचारियों को भी नुकसान
राज्य सरकार द्वारा महंगाई भत्ते की तारीख घोषित करने में हुई गड़बड़ियों के कारण जुलाई 2019 से पहले रिटायर हुए करीब 5 लाख पेंशनर्स और वर्तमान में कार्यरत 7 लाख कर्मचारी को भी नुकसान उठाना पड़ रहा है। कमलनाथ सरकार ने सरकार गिरने से ठीक पहले कर्मचारियों का डीए 5 प्रतिशत बढ़ा दिया था जिसकी गणना जनवरी 2019 से होना थी। मतलब कर्मचारियों को जनवरी 2019 से ही 12 प्रतिशत की जगह 19 प्रतिशत डीए के हिसाब से लाभ दिए जाने थे, लेकिन बीजेपी सरकार आते ही इस आदेश पर रोक लग गई। बस उसी के बाद से डीए मिलने पर पूरा स्लैब ही गड़बड़ा गया जिसका खामियाजा कर्मचारियों को अब तक उठाना पड़ रहा है।
महंगाई भत्ते की तारीख घोषित करने में हुई गड़बड़ी
पेंशनर्स को मिलने वाली महंगाई राहत यानी डीआर की बात करें तो अक्टूबर 2021 में ये 31 प्रतिशत मिलना थी, जबकि ये 14 प्रतिशत कम यानी 17 फीसदी ही मिला। मई 2022 में डीए 34 प्रतिशत मिलना था, जबकि ये 12 प्रतिशत कम यानी 22 फीसदी ही मिला। अगस्त 2022 से 38 प्रतिशत डीए के हिसाब से लाभ की गणना होनी थी, जबकि ये अगस्त 2022 में 28 प्रतिशत और अक्टूबर 2022 में 33 प्रतिशत ही मिला। इसी तरह कर्मचारियों को मिलने वाला महंगाई भत्ता यानी डीए की बात करें तो अक्टूबर 2021 में ये 31 प्रतिशत मिलना था जबकि ये 11 प्रतिशत कम यानी 20 फीसदी ही मिला। जनवरी 2022 में 34 प्रतिशत डीए के हिसाब से लाभ की गणना की जाना चाहिए थी जबकि ये मार्च 2022 में 31 फीसदी मिला। इसी तरह जुलाई 2022 से 38 फीसदी डीए का लाभ मिलना था जो मध्यप्रदेश में कर्मचारियों को 6 महीने बाद यानी जनवरी 2023 से मिलना शुरू हुआ। तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ के प्रदेश सचिव उमाशंकर तिवारी ने कहा कि सीएम भले ही कहते हैं कि वह कर्मचारियों को पाई-पाई देंगे पर हकीकत में केंद्रीय तारीखों के अनुसार डीए का लाभ नहीं मिलने से कर्मचारियों को लाखों का नुकसान हो रहा है।
कर्मचारी को हो रहे नुकसान को ऐसे समझें
मान लीजिए किसी कर्मचारी का मूल वेतन हर महीने 50 हजार रुपए है। 33 साल उसने नौकरी की और 240 दिन का अवकाश नगदीकरण के लिए स्वीकृत हुआ तो उसे क्या नुकसान होगा। 1 जुलाई 2019 से 31 दिसंबर 2019 तक रिटायर होने वाले कर्मचारियों को ग्रेच्युटी में 41 हजार 250 और अवकाश नगदीकरण में 20 हजार रूपए का नुकसान होगा। इसे ऐसे समझें कि 12 प्रतिशत महंगाई भत्ते के हिसाब से ग्रेच्यूटी होगी 9 लाख 24 हजार, जबकि कर्मचारी को केंद्रीय दर यानी डीए 17 प्रतिशत की दर से मिलना चाहिए था, यदि ऐसा होता तो ग्रेच्युटी 9 लाख 65 हजार 250 रुपए होती है। इसी तरह 12 फीसदी डीए की दर से अवकाश नगदीकरण 4 लाख 48 हजार मिला जबकि ये 17 फीसदी डीए की दर से 4 लाख 68 हजार रुपए होना था।
यूपी और बिहार में नहीं ली जाती सहमति
पेंशनर्स एसोसिएशन के प्रांतीय उपाध्यक्ष अशोक भार्गव ने कहा कि वर्ष 2000 में केवल मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ अलग नहीं हुआ था बल्कि उत्तरप्रदेश से उत्तराखण्ड और बिहार से झारखण्ड नए प्रदेश के रूप में अस्तित्व में आए थे लेकिन सिर्फ मध्यप्रदेश सरकार डीआर के मामले में राज्य पुनर्गठन अधिनियम की धारा 49(6) का हवाला देकर छत्तीसगढ़ से सहमति लेने की बात करती है, जबकि यूपी और बिहार में ऐसा नहीं है। 2017 में भारत सरकार मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव को पत्र भी लिख चुकी है कि इसके लिए आपसी सहमति की जरूरत नहीं है।
अधिनियम की 6वीं अनुसूची में सहमति का जिक्र ही नहीं
स्पष्ट है कि भारत सरकार के अवर सचिव टी अहिमन्यू कुमार मनीष ने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर 2017 में ही ये स्पष्ट कर चुके हैं कि राज्य पुनर्गठन अधिनियम की 6वीं अनुसूची में कहीं भी उल्लेख नहीं किया गया कि राज्यों द्वारा पेंशन की देनदारियों को स्वीकार करने के लिए मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के बीच सहमति आवश्यक है, बावजूद इसके मध्यप्रदेश सरकार हर बार डीए के मामले में अपनी जिम्मेदारियों से बचते हुए कर्मचारियों को आर्थिक नुकसान पहुंचाने पर तुली हुई है।