भोपाल। प्रदेश में गौवंश के संरक्षण और संवर्धन के लिए सरकार के तमाम दावों और प्रयासों के बाद भी गौशालाओं की हालत सुधर नहीं रही है। गौशालाओं में चारा-पानी और देखभाल के अभाव में आए दिन प्रदेश के किसी न किसी जिले से गायों के दम तोड़ने की खबरें सुनने देखने में आती हैं। पिछले हफ्ते ही उज्जैन जिले की पिपलिया बाजार में 5 गायों के भूख से मरने की खबर सुर्खियों में आई। गौशालाओं की व्यवस्था के बारे में सरकार के दावों की हकीकत (Ground report on cow welfare) जानने के लिए द सूत्र की टीम ने कुछ गौशालाओं का जायजा लेकर संचालकों से बात की तो दर्दनाक हकीकत सामने आई। राजधानी भोपाल से सटे तूमड़ा गांव की गौशाला (MP cowshed) में 4 गायें बदहाल व्यवस्था में मरणासन्न हालत में पड़ी नजर आईं। यह हालत इसलिए बन रही है, क्योंकि गौशालाओं में एक गाय का पेट भरने के लिए हर दिन 80 रुपए की जरूरत है। जबकि हकीकत में 20 रुपए भी नहीं मिल पा रहे हैं।
भोपाल के पास तूमड़ा गौशाला में मरणासन्न मिलीं गायें: मुख्यमंत्री गौसेवा योजना (CM Cowshed scheme) में जो गौशालाएं बनाई जा रही हैं, उनकी क्षमता 100 गाय की है। जबकि शेड में बमुश्किल 60 से 70 गाय ही आ सकती हैं। क्षमता से अधिक गाय होने पर भूसा खाने के दौरान इनमें आपस में संघर्ष होता है और ये गिरकर घायल हो जाती हैं। बिजली नहीं होने से रात में इन गायों को खड़ा करने में काफी दिक्कत होती है। क्षमता से अधिक गाय होने से अधिकांश गाय शेड से बाहर कीचड़ में रहती हैं, जिससे वे बीमार पड़ जाती हैं। द सूत्र की टीम हालात का जायजा लेने राजधानी भोपाल के नजदीक तूमड़ा गौशाला पहुंची। यहां 4 गाय मरणासन्न हालत में दिखीं। उनकी दुर्दशा के बारे में गौशाला के संचालक भगवान सिंह प्रजापति से सवाल करने पर वे खुद ही इस गौशाला को मौत (cow death in shade) का कुआं कहते नजर आए। उन्होंने बताया कि सरकारी पशु चिक्तिसा अस्पताल के डॉक्टर को बीमार गायों की जानकारी देते हैं, लेकिन वे यहां नहीं आते हैं। एक महीने पहले भी यहां 4 गायों की मौत हो चुकी है।
चारे के लिए रोज 20 रुपए भी मयस्सर नहीं: गौशालाओं के संचालक बताते हैं कि एक गाय की भरपेट खुराक के लिए रोज 80 रुपए की जरूरत होती है, लेकिन सरकार ने इसके लिए अनुदान की राशि 20 रुपए तय की है, लेकिन सरकार ने आज तक ये 20 रुपए भी कभी नहीं दिए। प्रदेश में अभी 627 प्राइवेट और मुख्यमंत्री गौसेवा योजना से बनी 951 गौशालाओं में करीब 1 लाख से अधिक गौवंश है। कायदे से इनके साल भर खाने के लिए ही 300 करोड़ की आवश्यकता है, लेकिन सरकार की ओर से इतना कभी बजट दिया ही नहीं गया। 2018 से अब तक की बात करें तो कमलनाथ सरकार में गौशालाओं के लिए 150 करोड रुपए का बजट (Budget for cowshed) निर्धारित किया। जबकि 2021-22 में शिवराज सरकार ने 60 करोड़ का ही प्रावधान किया। यानी सरकार चाहे कांग्रेस की हो या BJP की दोनों ही गौशालाओं की जरूरत के मुताबिक बजट नहीं दिया।
शिवपुरी में पिछले साल अगस्त से नहीं मिला अनुदान: गौशाला संचालकों का कहना है कि सरकार हर गाय के लिए रोजाना जो 20 रुपए अनुदान देने की बात करती है, दरअसल वो कभी पूरा मिलता ही नहीं है। शिवपुरी जिले के पशु चिकित्सा विभाग के उप संचालक एमएस तमोली का बयान खुद इस बात की पुष्टि कर देता है। वे बताते हैं कि अगस्त 2021 के बाद से गौशालाओं को अनुदान राशि नहीं दी है। अब जल्द से जल्द 23 लाख रूपए जारी कए जाएंगे। शिवपुरी की 31 गौशालाओं में अभी 3203 गौवंश है। इनके लिए 20 रुपए के हिसाब से अनुदान राशि 76 लाख 80 हजार होती है, पर अभी सिर्फ 23 लाख रुपए मिलने की संभावना है।
भिंड में पूर्व सरपंचों ने गौशालाओं चलाने से खड़े किए हाथ: भिंड जिले की बिजपुरी ग्राम पंचायत (cowshed in Bhind) में गौशाला के नाम पर सिर्फ टीनशेड ही नजर आता है। आसपास की जमीन भी उजाड़ पड़ी है। भूसा गोदाम भी खाली है। गायों को चारा खिलाने वाली जगह पर दीमक लग गई है। यहां के पूर्व सरपंच सरमन लाल जाटव ने बताया कि वे गौशाला का संचालन करने में असमर्थ है। इस बारे में उन्होंने जिला पंचायत CEO को लिखकर दे दिया है। वहीं, बबेडी गांव की गौशाला में एक भी गाय नहीं मिली। पूर्व संरपच नीतू सिंह राजावत ने बताया कि समय पर अनुदान नहीं मिलने से गौशाला के संचालन में कठिनाई आ रही है। जिले की एक अन्य डिडी गौशाला के कर्मचारी होमसिंह कुशवाह ने गौशाला में 40 गायें होने का दावा किया पर हकीकत में यहां 2-3 गाएं ही नजर आईं।
तीन साल में बंद हो चुकी हैं 200 गौशालाएं: सरकार या समाज से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पाने के कारण अब तक प्रदेश में 200 गौशालाएं बंद हो चुकी हैं। बीते एक साल में गौ-संवर्धन बोर्ड ने ही 3 गौशालाएं बंद कर दीं। इनमें एक भोपाल और दो देवास जिले की है। पशुपालन विभाग और गौ-संवर्धन बोर्ड (cow breeding board) प्रदेश में संचालित 627 प्राइवेट गौशालाओं में से 25 का हाईटेक होने का दावा करता है, लेकिन अब इनकी हकीकत भी जान लीजिए। भोपाल के शेखपुरा में गौशाला का संचालन कर रहे पूर्व सरपंच रघुवीर सिंह मीणा और चौकीदार चांद अली बताते हैं कि गौशाला को हाईटेक बनाने के नाम पर गोबर से गौकाष्ठ (cow dung machine) बनाने की एक मशीन आई थी। लेकिन बिजली नहीं होने से एक महीने बाद ही वापस चली गई। जबकि इस मशीन के संचालक के लिए बिजली विभाग (Electricity depatment) से लेकर जनपद पंचायत के CEO तक को आवेदन दे चुके थे।
वन विभाग भी 25 गौशालाओं की रकम कर चुका है सरेंडर: वन विभाग को भी 50 गौशालाओं के निर्माण का टारगेट मिला था। प्रत्येक गौशाला के निर्माण के लिए 30-30 लाख रुपए स्वीकृत भी हुए, लेकिन वन विभाग 25 गौशालाओं को बना ही नहीं पाया। इसके पीछे राजस्व विभाग द्वारा जमीन मुहैया नहीं कराने जैसे अन्य कारण रहे। इसके बाद वन विभाग ने 25 गौशालाओं की रकम सरेंडर कर दी। वन विभाग बीते ढाई साल में सिर्फ 10 गौशालाएं ही बना पाया, जिनमें गौवंश है। इनका संचालन पंचायत कर रही है। 15 गौशालाएं निर्माणाधीन है।
द सूत्र के सवाल
1. 15 जून 2019 को कांग्रेस सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ (cm kamalnath) ने गौशालाओं की मॉनिटरिंग के लिए हर ब्लॉक व जिले में पशु कल्याण समिति बनाने की बात कही थी, लेकिन ये समितियां कागजों से निकलकर मैदान में साकार क्यों नहीं हो पाईं?
2. 22 नवंबर 2020 का देश की पहली गौ-कैबिनेट (cow cabinet) बनाई गई थी। इसमें पशुपालन, वन, पंचायत, कृषि और ग्रह विभाग के मंत्री को शामिल किया था। गौ कैबिनेट को प्रदेश में गायों के संरक्षण और कल्याण के लिए काम करना था तो फिर प्रदेश में गायों की यह दुर्दशा क्यों है?
3. सरकार खुद मानती है कि 8 लाख गाय सड़कों (cow in road side) पर घूमती हैं तो फिर भिंड जिले की डिडी और बबेड़ी जैसी गौशालाएं खाली क्यों पड़ी है?
मंत्री की लाचारी: इन सवालों का जवाब जानने के लिए द सूत्र संवाददाता ने जब पशुपालन विभाग के मंत्री प्रेमसिंह पटेल (Prem singh patel) से बात की। उनके जवाब से जाहिर हो गया कि उन्हें गौशालाओं की दुर्दशा की जानकारी ही नहीं है। वे कहते हैं कि कोरोना प्रकोप के चलते वे अभी कहीं दौरान नहीं कर पाए हैं। उनका कहना है कि सरकार सभी अनुदान प्राप्त गौशालाओं को राशि जारी कर रही है। हो सकता है कि कोरोना संकट के चलते कहीं भुगतान में थोड़ी बहुत देर हो रही हो। जब उन्हें भोपाल के पास तूमड़ा गांव की गौशाला में मरणासन्न गायों की हालत के बारे में जानकारी दी गई तो वे बात टाल गए। बोले बाद में बात करते हैं।
गौसंवर्धन बोर्ड के अध्यक्ष की दो टूक: पशुपालन मंत्री के बाद द सूत्र ने गौसंवर्धन बोर्ड के अध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरी से बात की। गौशालाओं की दुर्दशा के सवाल पर उन्होंने बताया कि सरकार इन्हें व्यवस्थित करने के लिए 900 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है। अब यदि कोई इसका संचालन ठीक से नहीं कर पा रहा है तो इसका कारण संचालक का अप्रशिक्षित होना है। अब यदि अप्रशिक्षित लोग गौशालाएं चलाएंगे तो अव्यवस्था तो होगी ही। लेकिन अब बोर्ड गौशाला संचालकों को प्रशिक्षित करने की योजना बना रहा है।
मुख्यमंत्री का तर्क: प्रदेश में संचालित करीब 1578 गौशालाओं को सिर्फ अनुदान के भरोसे बेहतर ढंग से चलाना सरकार के लिए भी बड़ी चुनौती है। व्यवस्था में अपेक्षित सुधार के लिए वो प्राइवेट और पब्लिक पार्टनरशिप पर जोर दे रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 4 जनवरी को पशुपालन एवं डेयरी विकास विभाग की समीक्षा बैठक में विभाग (cm shivraj meeting on cowshed) के अधिकारियों से पूछा कि जब प्राइवेट डेयरी संचालक लोन लेकर भी ज्यादा कमाई कर लेते हैं तो हमारी गौशालाएं सरकारी सहायता मिलने के बाद भी कम फायदे में क्यों हैं? उन्होंने कहा कि जब तक हम गौशालाओं को अपने पैरों पर खड़ा नहीं करेंगे इनकी दशा सुधारना चुनौती बनी रहेगी। उन्होंने विभाग के अधिकारियों से पूछा कि गौशालाओं को बिना अनुदान के चलाने के लिए क्या प्रयास किए जा सकते हैं? गौशालाओं का संचालन व्यवस्थित ढंग से हो, उन्हें कैसे आत्मनिर्भर बनाया जाए। अब बाजार में गोबर, गौ-मूत्र से कई उत्पाद बन रहे हैं, इसलिए गाय के गोबर और गौमूत्र के नए-नए प्रयोग करें।
(भोपाल से राहुल शर्मा, जबलपुर से ओपी नेमा, भिंड से मनोज जैन और शिवपुरी से परवेज खान की रिपोर्ट।)