पवन सिलावट, RAISEN. शिवराज सरकार ने गुरूवार (1 जून) को राजधानी भोपाल में गौरव दिवस मनाया। 1 जून 1949 को नवाबी शासन से भोपाल रियासत को आजादी मिली थी। नवाबी शासन से आजादी और भोपाल विलीनीकरण का आंदोलन रायसेन जिले के बोरास से शुरू हुआ था। इस आंदोलन में बोरास गांव के चार युवा शहीद हुए थे। यह चारों शहीद 30 साल से कम उम्र के थे। इनकी उम्र को देखकर उस वक्त युवाओं में देशभक्ति के जज्बे का अनुमान लगाया जा सकता हैं। लेकिन अब इन शहीदों को सरकार भूल चुकी है। यहां शहीदों के स्मारक तो बना दिए गए लेकिन इनकी शहादत को याद करने वाला कोई नहीं। इन शहीदों की स्मृति में उदयपुरा तहसील के ग्राम बोरास में नर्मदा तट पर शहीद स्मारक बनाया गया है।
तिरंगे के सम्मान के लिए सीने पर खा ली गोलियां
15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजी शासन की गुलामी से तो आजाद हो गया था, लेकिन भोपाल, विदिशा, सीहोर स्वतंत्र नहीं थे। भारत के मध्य भाग की भोपाल रियासत नवाबी शासन का गुलाम था। और विदिशा ग्वालियर रियासत में था। 14 जनवरी 1949 को रायसेन जिले की उदयपुरा तहसील के बोरास पर प्रजामंडल ने आम सभा का कार्यक्रम रखा गया था जो नवाबी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए किया था। गोपनीय रूप से चल रहे इस कार्यक्रम की जानकारी नवाब हमीद उल्ला खान को लगी तो तत्कालीन थानेदार जफर अली ने बिना बताए फायरिंग शुरू कर दी।
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विलीनीकरण आंदोलन की रणनीति का केंद्र था रायसेन
भोपाल रियासत के भारत संघ में विलय के लिए चल रहे विलीनीकरण आन्दोलन की रणनीति और गतिविधियों का मुख्य केन्द्र रायसेन जिला था। भोपाल रियासत का विलीनीकरण के लिए आंदोलन 14 जनवरी 1949 संक्राति के दिन शुरू हुआ था। यहां तिरंगा लहराने को लेकर आंदोलन हुआ और इस दौरान नवाबी शासन की पुलिस ने आंदोलन को कुचलने के लिए गोली चला दी। पुलिस की फायरिंग में चार युवा लड़के शहीद हो गए। बोरास में 16 जनवरी को शहीदों की विशाल शव यात्रा निकाली गई जिसमें हजारों लोगों ने अश्रुपूरित श्रद्धांजलि के साथ विलीनीकरण आंदोलन के इन शहिदों को विदा किया। नर्मदा नदी के तट पर शहीदों के स्मारक तो बने है लेकिन सरकार और जिम्मेदार अधिकारी इनकी शहादत को भूल गए है। सरकार एक और गौरव दिवस मनाकर वाह वाही लूट रही है लेकिन इस लड़ाई में जान गंवाने वाले युवा शहीदों को भूला चुकी हैं।