मप्र की आईएएस शैलबाला मार्टिन का FB पोस्ट- यीशू के नाम पर लोग दुकानें चला रहे, चंद ही कानून के शिकंजे में, कई खुले घूम रहे

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Atul Tiwari
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मप्र की आईएएस शैलबाला मार्टिन का FB पोस्ट- यीशू के नाम पर लोग दुकानें चला रहे, चंद ही कानून के शिकंजे में, कई खुले घूम रहे

BHOPAL. मध्य प्रदेश की सीनियर आईएएस शैलबाला मार्टिन ने ईसाई धर्म प्रचारकों पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने फेसबुक पोस्ट में ईसाई धर्म के पदाधिकारियों पर जमकर निशाना साधा। शैलबाला खुद क्रिश्चियन हैं।



ईसाई समाज के धंधेबाज प्रचारकों को पहचानें- शैलबाला



आज मसीही (प्रोटेस्टेंट ईसाई) समाज के कई पहरुए (उच्च पदासीन धर्मगुरु) उन फरीसियों की तरह हो गए हैं जिन्होंने परमेश्वर के मंदिर में व्यापार कर के उसे डाकुओं की खोह बना दिया था। वही खरीद फरोख्त, षडयंत्र, राजनीति आज चर्चों में हावी हो चुकी है। समाज की संस्थाएं घिनौने षड़यंत्रों से गुलजार हो रही हैं। प्रभु परमेश्वर के पुत्र यीशु मसीह के नाम पर कुछ लोग अपनी अपनी दुकानें चला रहे हैं। इनके लिए धर्म धंधे का माध्यम मात्र बन गया है। सफेद चोगा पहन कर ज़मीनों की खरीद फ़रोख़्त में आकंठ डूबे ये 'धर्माध्यक्ष' वास्तव में धर्म को लज्जित करने में लगे हैं। 



अभी इनमें से चंद रंगे सियार ही कानून के शिकंजे में आए हैं, लेकिन कई अभी खुले घूम रहे हैं। ईसाई समाज के नाम पर चांदी काट रहे इन धंधेबाज धर्म प्रचारकों को समय रहते पहचानिए और आगे आइए, वर्ना ये लोग समाज और समाज की संपत्तियों को घुन की तरह चाट जाएंगे।



अखबारों में गत दिनों छपी खबरों के अनुसार ईसाई समाज के पूर्व बिशप श्री पी सी सिंह के आवास, दफ्तर, नागपुर स्थित सी एन आई के दफ्तर, और उनके एक सहयोगी के निवास पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की टीम ने छापा मारा गया। ये छापा पूर्व बिशप (सी एन आई के मॉडरेटर भी थे) के द्वारा की गई धोखाधड़ी, आर्थिक अनियमितताओं, गैर कानूनी रूप से विदेशी मुद्रा रखने, समाज की संस्थाओं की ज़मीन की हेराफेरी, आदि मामलों में डाला गया है। मध्य प्रदेश या संभवतः देश में ईसाई समाज के किसी धर्मगुरु (?) के विरुद्ध होने वाली यह अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई है, जिसके कारण समाज का सिर शर्म से झुक गया।



आखिर पीसी सिंह के विरुद्ध कार्रवाई क्यों हुई?



जबलपुर धर्म प्रांत के भूतपूर्व धर्माध्यक्ष (बिशप) पीसी सिंह द्वारा समाज की शैक्षणिक संस्थाओं को फीस के रूप में प्राप्त होने वाली राशि का उपयोग धार्मिक संस्थाओं के संचालन और स्वलाभ के लिए करने की शिकायतें सरकार को मिल रहीं थीं। सबूत के साथ मिली शिकायतों पर 8 सितंबर 2022 को जबलपुर स्थित उनके आवास पर मध्य प्रदेश की आर्थिक अपराध शाखा द्वारा छापा मारा गया था। 

 

इस छापे में 1.65 करोड़ रुपए कैश और 18 हजार डॉलर बरामद हुए थे। इतना ही नहीं, 48 बैंक खातों और 8 कारों के इनके पास होने की भी जानकारी ईओडबल्यू को मिली थी। जांच में पाया गया कि चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया के शिक्षा बोर्ड (बोर्ड ऑफ एजुकेशन, चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया, जबलपुर) का नाम भी इनके द्वारा बदल दिया गया और ये स्वयं इसके अध्यक्ष बन गए। इसके अलावा उन पर चारित्रिक और आपराधिक तत्वों से संबंध रखने के आरोप भी अपुष्ट रूप से लगते रहे हैं। 



इस छापे के समय पूर्व बिशप पीसी सिंह जर्मनी के प्रवास पर थे, लेकिन 12 सितंबर 2022 को जर्मनी से लौटने पर उन्हें नागपुर हवाई अड्डे से गिरफ्तार कर लिया गया। लगभग 5 महीने से ज्यादा जेल में रहने के बाद हाल ही में उन्हें जमानत मिली थी और अब 15 मार्च को ईडी ने उनके आवास पर दबिश दे दी।



इस घटना के साथ ही प्रदेश के कई चर्चों और संस्थाओं से संबद्ध जमीनों की हेराफेरी संबंधी खबरें भी आने लगीं। समाज की जमीनों की अवैध खरीदी बिक्री के असंख्य मामले देश के न्यायालयों में विचाराधीन हैं ही। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण पक्ष ये है कि कई पादरियों और बिशपों के खिलाफ इस प्रकार की हेरा फेरी और जालसाजी की FIR दर्ज हैं। बीच-बीच में ईसाई धर्मगुरुओं और संपदा प्रबंधकों के भू माफियाओं के साथ गठबंधन की खबरें भी आती रहती हैं।

 

ईसाई समाज द्वारा संपत्तियों का अर्जन

 

भारत में अंग्रेजों के आने के साथ ही यह समाज मानवता की सेवा के लिए अस्पताल, शिक्षण संस्थाओं, अनाथालयों, वृद्धाश्रमों, कुष्ठालयों आदि के संचालन में रत रहा है। इन संस्थाओं के संचालन हेतु सबसे पहले ईसाई मिशनरियों को ब्रिटिश शासनकाल में सरकार की तरफ से लीज पर जमीनें दी गईं। यह क्रम आजादी के बाद भी चलता रहा। इनका उद्देश्य आजादी के बाद देश में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का सुदृढ़ीकरण था। आजादी के कई वर्षों बाद भी देश में मिशनरी इन संस्थाओं का संचालन अपनी देख- रेख में करते रहे। भारत से जाते समय अंग्रेज, स्वीडिश, कैनेडियन और अन्य विदेशी मिशनरी इन अचल संपत्तियों और संस्थाओं का ज़िम्मा भारत में गठित ईसाई समाज की संस्थाओं को सौंप गए। 



अनेक अचल संपत्तियां चर्च और अन्य संस्थाओं के द्वारा खरीदी भी की गईं। इन भूमियों पर शिक्षण संस्थाएं, अस्पताल आदि संचालित हो रहे हैं। इन्हीं कैंपसों में संस्थाओं में कार्य करने वाले कर्मचारियों के आवास गृह भी होते हैं। ब्रिटिश काल में बने संस्थाओं के भवन बहुत विशाल और आकर्षक भी हैं। बड़े बड़े खेल के मैदान मिशन कंपाउंडों की विशेषता है।



समाज की संपत्ति की बंदरबांट, विलासिता पूर्ण जीवन जीने की ललक



आज यही संपत्तियां जो जनसेवा के लिए उपयोग में आ रही थीं, समाज में नासूर बन कर उभरी हैं। उच्च पदों पर आसीन समाज के धर्माधिकारी जो अपने आप को समाज का मठाधीश और मालिक समझने लगे हैं, सामाजिक उद्देश्य के लिए उपयोग में लाई जाने वाली इन जमीनों और संस्थाओं की विभिन्न प्रकार से हेरा फेरी करने में संलिप्त हो गए हैं। इन धर्म गुरुओं के अलावा कई ऐसे लोग भी हैं, जिनके द्वारा फर्जी पावर ऑफ अटॉर्नी अपने पक्ष में तैयार कर अवैध सौदे किए जा रहे हैं।



हेराफेरी का तरीका



फर्जीवाड़े को अंजाम देने के लिए कई तरीके ईजाद कर लिए गए हैं। एक तो सीधा-सीधा जमीन का सौदा। अगर शिक्षण संस्था या अस्पताल है तो उसके सुचारू संचालन अथवा रेनोवेशन के नाम पर तीसरे पक्ष से अनुबंध कर एक मोटी राशि व्यक्तिगत तौर पर एकमुश्त अथवा नियमित रूप से प्राप्त करना। संस्थाओं के खुले मैदानों, भवनों को विवाह समारोहों, कोचिंग सेंटर, ऑफिस के संचालन हेतु व अन्य आयोजनों के लिए किराए पर देना और उस किराए की राशि में तरह तरह से घपले करना।



सबसे पसंदीदा तरीका किसी भू-माफिया को अचल संपत्ति का केयर टेकर बना कर उसे अधिकार पत्र सौंपना है। समाज के लोग इस बात को लेकर हैरान हैं कि जब चर्च सबसे व्यवस्थित रूप से संचालित होने वाली धार्मिक संस्था है, उसमें विभिन्न प्रकार की समितियों में समाज के व्यक्तियों की भागीदारी है तो फिर किसी अन्य धर्मावलंबी को अचल संपत्तियों का केयरटेकर क्यों बनाया जा रहा है?



इस प्रकार के मामलों के कोर्ट में जाने पर अव्वल तो ठोस रूप से डिफेंस ही नहीं किया जाता। दूसरे पेशी तारीखों में गैर-मौजूद रहकर केस को खारिज करवा लिया जाता है या फिर समझौते के लिए आवेदन दिए जाते हैं। ऐसे ही मामले में प्रदेश के एक कोर्ट ने चर्च के पदाधिकारियों के विरुद्ध सख्त टिप्पणी भी की है। हाल ही में प्रदेश की राजधानी से लगे एक जिले में मिशन कंपाउंड की जमीन पर किसी व्यक्ति द्वारा कब्जे का प्रयास करने पर भू-माफिया को केयरटेकर नियुक्त करने की बात सामने आई थी। विवाद बढ़ने पर इस अधिकार पत्र को ही रद्द कर दिया गया। चर्चा आम है कि मालवा के एक जिले में समाज की जमीन पर इस भू माफिया का कब्जा इसी तरीके से करवा दिया गया है। 



समाज के ढांचे को व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए धराशायी करना



धर्मदंड धारण करने वाले समाज के मठाधीश विलासिता में तरह डूब चुके हैं। उन्हें दुनियावी सुख सुविधाओं, दिखावे, आडंबर और फैशन परस्ती से इतना मोह चुका है कि अपने स्वार्थ के लिए समाज के स्थापित मूल्यों को उन्होंने पूरी तरह धता बता दिया है। चर्चों के संचालन के लिए निर्धारित नियमों को बला-ए-ताक़ रखकर अपनी मनमर्ज़ी की जा रही है। आम सभाओं का आयोजन बंद कर दिया गया है, ताकि समाज का कोई व्यक्ति उन से प्रश्न ना पूछ सके। चर्च संचालन के लिए गठित होने वाली समिति के निर्वाचन ना करवाकर सालों से एडहॉक समितियों से काम चलाया जा रहा है। जबकि एडहॉक समिति एक निश्चित अवधि के लिए ही गठित की जा सकती है। इस अवधि के बाद आम चुनाव के माध्यम से समिति का गठन किया जाना अनिवार्य है। 



जाहिर हैं कि इन एडहॉक समितियों में हां में हां मिलाने वाले, नजर उठा कर प्रश्न पूछने की हिम्मत ना रखने वाले सदस्यों को नामित किया जाकर इनके माध्यम से ही सारी नियम विरुद्ध गतिविधियों को अमली जामा पहनाया जाता है। चर्च की सदस्यता से बर्खास्त करने की तानाशाहीपूर्ण धमकियां लोगों को इन कामों के विरुद्ध आवाज उठाने से रोक देती हैं। केवल कुछ मुट्ठी भर लोग ही साहस कर रहे हैं।



आधुनिक फरीसी



यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन्हें समाज को राह दिखाना चाहिए, वो किसी और ही प्रकार का उदाहरण नौजवानों के सामने रख रहे हैं। वे आधुनिक फरीसी हो गए हैं। आए दिन पड़ने वाले छापों, पूर्व बिशपों के जेल जाने, वर्तमान बिशपों/पादरियों का अपने को बचाते फिरना जांच एजेंसियों के सामने जा जा कर सफाई देना ये सब समाज के सामने क्या उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है। 



इसकी चिंता धर्मगुरुओं को करना चाहिए और उनकी तरफ से स्थितियों को बिगड़ने से बचाने के प्रयास होना चाहिए। वरना नई पीढ़ी धर्मगुरु के पद को समाज सेवा अथवा प्रचारक की दृष्टि से ना देख कर विलासितापूर्ण जीवन के द्वार की कुंजी समझने लगेगी। अपनी मूल पहचान के विपरीत ईसाई समाज इन आधुनिक फरीसियो के कुकर्मों के कारण ना केवल बदनाम हो रहा है, बल्कि आज के सबसे कठिन दौर में तबाही के द्वार पर आकर खड़ा हो गया है। समाज में केवल दिखावा छा गया है, आत्मिकता गायब हो चुकी है, क्योंकि हमारे कुछ धर्मगुरु खुद लोगों को कपट और बैर का मंत्र बांटते फिर रहे हैं।

 

वक्फ बोर्ड जैसी किसी संपत्ति प्रबंधन संस्था की जरूरत



आज जो हालात समाज में देखने को मिल रहे हैं, उसकी जड़ में चर्चों में सदस्यों के दान से प्राप्त होने वाला पैसा और अचल संपत्ति है। जिस प्रकार मुस्लिम समाज में संपत्तियों के प्रबंधन एवं नियंत्रण के लिए सरकार द्वारा वक्फ बोर्ड का गठन किया गया है, उसी तरह ईसाई समाज की संपत्तियों का सर्वे कर उनके प्रबंधन एवं नियमन के लिए भी सरकार को किसी समिति अथवा बोर्ड का गठन करने पर विचार करना चाहिए। जो लोग इन संपत्तियों को खुर्द-बुर्द कर रहे हैं या इन षड्यंत्रों में शामिल हैं, चाहे वे धर्मगुरु हों अथवा कोई और सभी के विरुद्ध कठोरतम कानूनी कार्यवाही होना चाहिए।



ईसाई समाज को भी आवाज बुलंद करनी होगी



आज के हालात में समाज के हर व्यक्ति का यह दायित्व है कि वो समाज और नियम विरुद्ध कार्य करने वाले लोगों की गलत हरकतों का विरोध करे। सभी एजेंसियों से इनके काले पीले कारनामों की शिकायत करने हेतु आगे आए। अपनी पहचान ना छिपाएं और जांच में खुल कर सहयोग करें, तभी समाज का भला कर सकेंगे।

पवित्र शास्त्र कहता है- “क्योंकि तू दीन लोगों को तो बचाता है, परंतु घमण्ड भरी आंखों को नीची करता है।” 



इन दिनों हम प्रभु यीशु मसीह के पुनरुथान दिवस की तैयारी कर रहे हैं। वास्तव में ये हमारे समाज के पुनरुत्थित होने का समय है। अभी समय है हमें तत्काल चैतन्य होकर घमंड से भरी इनकी आंखों को समय रहते नीची करवाने के लिए उठ खड़े होना होगा। वरना हम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक खोखला समाज छोड़ कर जाने वाले हैं।

आप तय कीजिए कि क्या आप समाज को और उसकी संस्थाओं को बर्बाद होते देखना चाहते हैं अथवा बचाना चाहते हैं।



(शैलबाला मार्टिन मध्य प्रदेश के सामान्य प्रशासन विभाग में एडिशनल सेक्रेटरी हैं)


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