मध्यप्रदेश में कांग्रेस में अकेले दम लगा रहे कमलनाथ, बीजेपी में बूथ से दिल्ली तक पूरा संगठन साथ 

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Arun Dixit
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मध्यप्रदेश में कांग्रेस में अकेले दम लगा रहे कमलनाथ, बीजेपी में बूथ से दिल्ली तक पूरा संगठन साथ 

BHOPAL. इस बार के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस की तरफ से चेहरे बहुत साफ हैं। इस चुनाव में सिर्फ दो चेहरे हैं जिनके बीच चुनाव होना है। कांग्रेस की तरफ से कमलनाथ और बीजेपी की तरफ से नरेंद्र मोदी यानी पूरा संगठन। 2018 के चुनाव में ये स्थिति नहीं थी। चुनाव के 9 महीने पहले की तस्वीर देखें तो दोनों दलों में एक खास अंतर नजर आता है। कांग्रेस में अकेले कमलनाथ सरकार बनाने के लिए दम लगा रहे हैं तो बीजेपी में पूरा संगठन चुनाव जीतने में लगा है। इस संगठन में बूथ से लेकर दिल्ली तक के नेता हैं जिनमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी शामिल हैं। यानी साफ है कि इस बार कमलनाथ और बीजेपी संगठन के बीच सीधी टक्कर है।



कमल को हराने में लगे अकेले कमलनाथ



2018 में लंबे वनवास के बाद सत्ता में कांग्रेस लौटी जरूर थी, लेकिन सत्ता का ये साथ महज 15 महीने का रहा। कांग्रेस जानती है कि यदि इस बार उसके अपेक्षा के अनुसार नतीजे नहीं आए तो पार्टी का अज्ञातवास तय है। यही कारण है कि ये चुनाव कांग्रेस के साथ साथ कमलनाथ के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गए हैं। कमलनाथ अकेले इस चुनाव में कांग्रेस को जिताने के लिए दम लगा रहे हैं। कमलनाथ अक्सर कहते हैं कि उनका मुकाबला बीजेपी संगठन से है। यानी यहां कमलनाथ अकेले हैं और बीजेपी का पूरा संगठन चुनाव में ऐड़ी चोटी का जोर लगा रहा है।



अकेले बैठकें और दौरे कर रहे कमलनाथ



पिछले दो महीने यानी जनवरी और फरवरी की बात करें तो सिर्फ कमलनाथ ने ही बैठकें लीं और अलग-अलग जिलों के दौरे किए। एससी-एसटी, ओबीसी से लेकर पूर्व कर्मचारियों की बैठक लेकर चुनाव की रणनीति बनाई। हाथ से हाथ जोड़ो अभियान में भी कमलनाथ पूरी दिलचस्पी दिखाई। इन दो महीनों में कमलनाथ ने 15 बैठकें की और अलग-अलग जिलों के 13 दौरे किए। कमलनाथ के निर्देश पर कार्यकर्ताओं ने सरकार के खिलाफ छह बड़े धरना-प्रदर्शन किए। इसके अलावा कमलनाथ जब भी भोपाल में होते हैं तो रोजाना शाम को अपने निवास पर नेताओं की बैठक अनिवार्य रूप से लेते हैं। विधानसभा प्रभारियों की बैठकें भी कमलनाथ लगातार कर रहे हैं। उनका साथ कभी-कभी प्रदेश प्रभारी जेपी अग्रवाल देते हैं तो दिग्विजय सिंह हाल ही में समन्वय का काम संभाल कर अपनी भूमिका निभा रहे हैं। कमलनाथ के साथ कभी-कभी अरुण यादव नजर आ जाते हैं। 



दो महीने में इतने सक्रिय रहे कमलनाथ




  • पीसीसी और निवास पर 15 बैठकें


  • अलग-अलग जिलों के 13 दौरे

  • जिला प्रभारी और विधानसभा प्रभारियों की बैठकें

  • जेपी अग्रवाल कर रहे जिलों में दौरा

  • दिग्विजय के पास समन्वय का काम



  • बीजेपी में बूथ से दिल्ली तक जुटा संगठन 



    कांग्रेस में अकेले कमलनाथ हाथ-पैर मार रहे हैं तो बीजेपी में पूरा संगठन लगा हुआ है। दिल्ली के नेता प्रदेश में डेरा डाले हुए हैं। ये नेता सीधे बूथ से संपर्क में हैं। यानी बूथ के कार्यकर्ताओं के साथ बराबर बैठकें हो रही हैं। सरकार और संगठन दोनों मिलकर चुनावी रथ को खींच रहे हैं। एक तरफ सीएम शिवराज चुनावी रंग से रंगे सरकारी कार्यक्रम कर रहे हैं तो दूसरी तरफ प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव, राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश, क्षेत्रीय संगठन प्रमुख अजय जामवाल, प्रदेश सहप्रभारी रामशंकर कठेरिया और पंकजा मुंडे कमोबेश मध्यप्रदेश में ही डेरा डाल चुके हैं। पिछले दो महीने में बीजेपी करीब 20 बड़ी ऐसी बैठकें कर चुकी है जिनमें सीएम समेत ये सभी बड़े नेता मौजूद रहे हैं। यहां तक कि प्रदेश कार्यसमिति की बैठक भी भोपाल में हो चुकी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अलग-अलग जिलों में 28 सभाएं कर चुके हैं। पांच फरवरी से 25 फरवरी तक विकास यात्रा निकाली गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दौरे भी प्रदेश में हो चुके हैं। 



    दो महीने में बीजेपी संगठन के कार्यक्रम




    • कार्यालय में 20 बैठकें


  • सीएम शिवराज की 28 सभाएं

  • बीस दिन तक पूरे प्रदेश में विकास यात्रा

  • मुरलीधर राव,शिवप्रकाश,अजय जामवाल का प्रदेश में डेरा

  • प्रदेश कार्यसमिति की बैठक



  • करो या मरो का चुनाव



    ये चुनाव बीजेपी और कांग्रेस के लिए करो या मरो का चुनाव है। 2018 के बाद प्रदेश की स्थितियां बहुत बदल गई हैं। अति आत्मविश्वास में बैठी बीजेपी को 2018 में बड़ी जोर का झटका लगा और राजनीतिक समझौते की बुनियाद पर नई सरकार बनी। नए साझेदार बीजेपी संगठन को परेशान कर रहे हैं तो विकास यात्रा में कई विधायकों का विरोध संगठन की पेशानी पर बल डाल रहा है। इन सब चुनौतियों के चलते बीजेपी के लिए ये चुनाव आसान नहीं है। वहीं कांग्रेस के लिए ये और मुश्किल भरा है। गुटबाजी का पुराना मर्ज चुनाव के वक्त सतह पर आ जाता है। बड़े नेताओं के अभी से इस तरह के बयान आने लगे हैं जिससे नजर आता है कि कांग्रेस के अंदर सबकुछ ठीक नहीं है। कांग्रेस नेता ये भी जानते हैं कि इस बार नहीं जीते तो कांग्रेस अज्ञातवास में जा सकती है। यही कारण है कि बीजेपी और कांग्रेस इसे करो या मरो का चुनाव मान रहे हैं।



    जेपी अग्रवाल, प्रदेश प्रभारी कांग्रेस 




    • 7 जनवरी- कमलनाथ के निवास पर बैठक 


  • 9 जनवरी- पंचायती राज सम्मेलन

  • 18-20 जनवरी- प्रदेश में दौरा



  • अजय जामवाल, क्षेत्रीय संगठन महामंत्री 




    • 11 जनवरी- विदिशा बैठक


  • 13 जनवरी- सरदारपुर बैठक

  • 24 जनवरी- प्रदेश कार्यसमिति बैठक

  • 24 फरवरी- दमोह बैठक

  • 26 फरवरी- भोपाल बैठक

  • 01 मार्च- सिंगरौली बैठक

  • 02 मार्च- उमरिया 



  • मुरलीधर राव, प्रदेश प्रभारी, बीजेपी




    • 24 जनवरी- प्रदेश कार्यसमिति की बैठक


  • 26 फरवरी- संगठन की चुनाव को लेकर बैठक

  • 26-27 फरवरी- विकास यात्रा की समीक्षा बैठक

  • 27 फरवरी- सभी मोर्चों की संयुक्त बैठक

  • 28 फरवरी- विधायकों की बैठक

  • 04 मार्च- विधानसभा संयोजकों की बैठक

  • 05 मार्च- मंत्रियों की बैठक



  • शिवप्रकाश, राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री, बीजेपी 




    • 24 जनवरी- प्रदेश कार्यसमिति की बैठक


  • 26 फरवरी- संगठन की चुनाव को लेकर बैठक

  • 26-27 फरवरी- विकास यात्रा की समीक्षा बैठक

  • 27 फरवरी- सभी मोर्चों की संयुक्त बैठक

  • 28 फरवरी- विधायकों की बैठक

  • 04 मार्च- विधानसभा संयोजकों की बैठक

  • 05 मार्च- मंत्रियों की बैठक


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