महाकाल लोक में मूर्ति टूटने के मामले में लोकायुक्त ने केस दर्ज कर जांच शुरू की, 5 साल में स्वत: संज्ञान में लेने का पहला केस

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Atul Tiwari
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महाकाल लोक में मूर्ति टूटने के मामले में लोकायुक्त ने केस दर्ज कर जांच शुरू की, 5 साल में स्वत: संज्ञान में लेने का पहला केस

BHOPAL. उज्जैन के महाकाल लोक में तेज आंधी में धराशायी सप्तऋषि की 6 मूर्तियों के मामले में लोकायुक्त ने जांच शुरू कर दी है। 5 साल में संभवत: यह पहला मामला है, जब लोकायुक्त ने स्वत: संज्ञान लेकर किसी केस में ऐसे जांच दर्ज की है। लोकायुक्त जस्टिस एनके गुप्ता ने एक अखबार को बताया कि जांच दर्ज कर तकनीकी शाखा को भेज दी गई है। लोकायुक्त की ये जांच इसलिए भी अहम है, क्योंकि प्रदेश सरकार के नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने इस मामले में भ्रष्टाचार की बात को खारिज कर दिया है। 30 मई को भूपेंद्र सिंह ने कहा था कि महाकाल लोक में 55 किमी/घंटे की रफ्तार से चली आंधी के कारण ये मूर्तियां टूटीं। इसमें कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ।





मामले में पहली शिकायत 18 मई 2022 को हुई थी





उज्जैन के तराना से कांग्रेस विधायक महेश परमार ने लोकायुक्त से शिकायत की थी। इसमें कहा गया था कि एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अंशुल गुप्ता ने पद का दुरुपयोग करते हुए ठेकेदार एमपी बावरिया को नियम विरुद्ध लोहे की जीआई शीट को अत्यंत महंगी पॉली कार्बोनेट शीट से बदलकर एक करोड़ रुपए का फायदा पहुंचाया। परमार ने गुप्ता से ये राशि वसूल किए जाने का आग्रह किया था। शिकायत में ये भी लिखा था कि उज्जैन स्मार्ट सिटी ने 6 फरवरी 2021 को पार्किंग शेड विद सोलर पीवी सिस्टम का टेंडर निकाला था। टेंडर 3.62 करोड़ का था। एमपी बावरिया ने 17.67% कम कीमत पर ये टेंडर हासिल किया।





परमार ने शिकायत में बताया था कि टेंडर के कुल 1.20 करोड़ के आइटम बदले गए। लोकायुक्त ने तत्कालीन कलेक्टर आशीष सिंह सहित 13 अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगे थे। परमार का आरोप था कि सरकार के इशारे पर इस केस की जांच सुस्त कर दी गई।





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दूसरी शिकायत 11 अक्टूबर 2022 को हुई 





ये शिकायत लक्ष्मण सिंह ठाकुर ने की थी। लिखा कि उज्जैन स्मार्ट सिटी लिमिटेड उज्जैन जो निर्माण और सौंदर्यीकरण का काम कर रहा है, उसकी अधिकतम राशि केंद्र सरकार से प्राप्त हुई है। केंद्र से हो रही फंडिंग के कारण स्मार्ट सिटी के पदेन अध्यक्ष, कार्यपालक निदेशक, कंसल्टेंट और इंजीनियर्स ने इसका फायदा उठाया। केंद्र सरकार को पेश किए गए निर्माण संबंधी दस्तावेज में हेरफेर किया गया। टेंडर आईडी नंबर 2020 यूएडी 112241-1 का जिक्र करते हुए इस शिकायत में लिखा गया है कि सरकार को आर्थिक नुकसान पहुंचाने और ठेकेदार को आर्थिक फायदा पहुंचाने के लिए किस तरह से काम किया गया। 





मंत्री भूपेंद्र सिंह बोले– महाकाल लोक का वर्क ऑर्डर कांग्रेस के कार्यकाल में हुआ





भूपेंद्र सिंह ने 30 मई को प्रेस कॉन्फ्रेंस में सरकार का पक्ष रखते हुए बताया था कि महाकाल लोक का वर्क ऑर्डर कांग्रेस की सरकार के दौरान जारी हुआ था। कंपनी डीएच मेसर्स गायत्री पटेल इलेक्ट्रिकल्स के संयुक्त उपक्रम को यह काम दिया गया था। डीपीआर में भी इसी एफआरपी मूर्तियों का प्रावधान है। दूसरे राज्यों में भी इसी की बनी हुई प्रतिमाएं हैं।





जहां सप्तऋषि की 6 मूर्तियां गिरीं, उसके आसपास 55 किमी/घंटे की रफ्तार से हवाएं चली थीं। बाकी यहां 100 से अधिक मूर्तियां सुरक्षित हैं। एक और बात ये है कि कमलनाथ सरकार में ही इस प्रोजेक्ट को तकनीकी मंजूरी मिली थी। दो बार भुगतान भी हुआ, तब तकनीकी विशेषज्ञों ने ही कहा था कि एफआरपी की ही मूर्तियां लगनी चाहिए। इसमें किसी भी तरह की गड़बड़ी नहीं है। निर्माता कंपनी की जिम्मेदारी है कि वह गिरी हुई मूर्तियों को नए सिरे से सुव्यवस्थित करेगी।





दिल्ली की संस्था सिपेट ने तकनीकी परीक्षण भी किया है। टेक्निकल टीम ने मूल्यांकन किया। एफआरपी (फाइबर रीइन्फोर्स प्लास्टिक) की 100 मूर्तियां पूरे परिसर में लगी हैं, जिसकी लागत साढ़े 7 करोड़ रुपए है। ये आर्ट एफआरपी पर ही संभव है। पत्थर पर बहुत समय लगता है। देश के कई स्थानों पर एफआरपी की मूर्तियां लगाई गई हैं। इनमें महाराष्ट्र के पंढरपुर (शेगांव), दिल्ली के किंगडम ऑफ ड्रीम, अक्षरधाम मंदिर समेत कुरुक्षेत्र, सिक्किम के मंदिरों के साथ ही बाली-इंडोनेशिया के धार्मिक स्थल भी शामिल हैं।



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