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BHOPAL/RAIPUR. सीहोर के कथावाचक पं. प्रदीप मिश्रा काफी चर्चाओं में रहते हैं। इस समय वे छत्तीसगढ़ के रायपुर स्थित गुढ़ियारी में कथा कर रहे हैं। उनकी कथा में हजारों लोग उमड़ रहे हैं। गलियां पार्किंग से पैक हैं। जानकारी के मुताबिक, कथा में रोज 2 लाख लोग उमड़ रहे हैं। कथा 13 नवंबर तक चलेगी। आज भले ही प्रदीप का नाम हो, लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था। आइए जानते हैं उनकी जिंदगी के बारे में...
पिता के साथ चाय की दुकान चलाई
एक अखबार से बात करते हुए पं. प्रदीप ने बताया कि मेरा जन्म सीहोर में हुआ। जन्म आंगन में तुलसी की क्यारी के पास पैदा हुआ, क्योंकि दाई को दिए जाने वाले पैसे नहीं थे। मेरे पिता रामेश्वर मिश्रा (अब दिवंगत) पढ़ नहीं पाए। वे चने का ठेला लगाते थे। बाद में चाय की दुकान चलाई, मैं भी दुकान में जाकर लोगों को चाय दिया करता था। मैं दूसरों के कपड़े पहनकर स्कूल गया, दूसरों की किताबों से पढ़ा। बस यही चिंता रहती थी कि पेट भर जाए और परिवार संभाल लें। भगवान शिव ने पेट भी भरा और जीवन भी संवारा। मुझे याद है, बहन की शादी का जिम्मा था। सीहोर के एक सेठ की बेटी की शादी हुई तो भवन में डेकोरेशन था। हम उस सेठ के पास हाथ जोड़कर कहने गए थे कि वो अपना डेकोरेशन रहनें दें, ताकि इसी में हमारी बहन की शादी हो जाए।
ब्राह्मण महिला ने कथावाचक बनने को कहा
पं. प्रदीप के मुताबिक, सीहोर में ही एक ब्राह्मण महिला गीता बाई पाराशर नाम ने कथावाचक बनने को प्रेरित किया। वो घरों में खाना बनाती थीं। मैं उनके घर पर गया था, उन्होंने मुझे गुरुदीक्षा के लिए इंदौर भेजा। मेरे गुरु विठलेश राय काका जी ने मुझे दीक्षा दी। पुराणों का ज्ञान दिया। गुरु के मंदिर में सैकड़ों पक्षी रहते हैं। वे पक्षियों से श्रीकृष्ण बुलवाते थे। मंत्र बुलवाते थे। पक्षी गुरुधाम में हरे राम हरे कृष्ण, बाहर निकलो कोई आया है... बोलते हैं। मैं जब उनके (गुरु के) पास गया था तो मुझे देखते ही उन्होंने अपनी पत्नी से कहा- बालक आया है, भूखा है, इसे भोजन दो। इसके बाद उन्होंने मुझे आशीर्वाद देकर कहा था तुम्हारा पंडाल कभी खाली नहीं जाएगा। शुरुआत में मैंने शिव मंदिर में कथा भगवान शिव को ही सुनाना शुरू किया। मैं मंदिर की सफाई करता था। इसके बाद सीहोर में ही पहली बार मंच पर कथावाचक के रूप में शुरुआत की।
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एक लोटा जल चढ़ाएं, सारी समस्याओं से छुटकारा पाएं
पं प्रदीप अपनी हर कथा में शिवलिंग पर एक लोटा जल चढ़ाने को सारी परेशानियों का हल बताते हैं। कहा कि जल चढ़ाने से भगवान शंकर की कृपा होती है। माता पार्वती और भगवान गणेश भी उन्हें जल चढ़ाते थे। भगवान राम जब अयोध्या से निकले और जहां-जहां रुके शिवलिंग बनाए और जल चढ़ाया। जल का महत्व ये है कि हम अपने हृदय भाव भगवान को अर्पित कर रहे हैं। हृदय में शिव का ध्यान करके जल चढ़ाइए और अपनी समस्या भगवान से कहिए। हमारे यहां शिव पुराण में कमल गट्टे के जल का प्रयोग बताया गया है। इसे शुक्रवार के दिन भगवान शिव पर चढ़ाएं, इससे लक्ष्मी आती है और आप निरोग रहते हैं।
हम अपनी कथा में भी लोगों से यही कहते हैं कि कर्म करिए और विश्वास के साथ भगवान शिव की आराधना करें। भगवान शिव ने अपने पुत्रों को विष्णु की तरह बैकुंठ और रावण को दी गई सोने की लंका नहीं दी। उन्होंने उन्हें भी कर्म करने दिया।
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