BHOPAL: मध्य प्रदेश सरकार में मंत्रियों और नौकरशाही के बीच प्रशासनिक मुद्दों और नीतियों को लेकर होने वाली खींचतान नई बात नहीं है। विभिन्न विभागों में सरकारी योजनाओं के नियमों और उनके संचालन पर कई बार उनमें असहमति अक्सर दिखाई दे जाती है। मंत्रियों और आला अधिकारियों में तालमेल की इस कमी का खामियाज़ा अक्सर आम जनता भुगतती है। ऐसा ही कुछ वाकया मध्य प्रदेश पंचायत एवं ग्रामीण विकास महकमे के मंत्री डॉ. महेंद्र सिंह और प्रमुख सचिव उमाकांत उमराओ के बीच भी होता हुआ नज़र आ रहा है। जहाँ राज्य की ग्राम पंचायतों को लेकर तैयार की नई टैक्स व्यवस्था पर दोनों एकमत नज़र नहीं आ रहे है। ये पूरा मसला जानने के लिए पढ़िए द सूत्र की ये रिपोर्ट....
क्या है पूरा मामला
ग्राम पंचायतों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ग्रामीणों से कर वसूलने के अधिकार
हाल ही में मध्य प्रदेश पंचायत राज संचालनालय ने राज्य की पंचायतों के लिये टैक्स की नई व्यवस्था तैयार की है। जिसमें 'स्वनिधि से समृद्धि' अभियान के तहत ग्राम पंचायतों को ग्रामीणों से कर वसूलने के अधिकार दिए हैं। मतलब शहर की तर्ज पर अब ग्राम पंचायत भी ग्रामीणों से भूमि तथा भवन पर संपत्ति कर, निजी शौचालयों पर कर, प्रकाश कर और वृत्ति कर वसूल कर सकेगी। ये कर एक अप्रैल से आगामी 31 मार्च तक के वर्ष के लिये अधिरोपित होंगे। इसके पीछे विभाग के अधिकारियों ने तर्क दिया कि वो पंचायतों की माली हालत सुधारना चाहते हैं। क्योंकि ज्यादातर ग्राम पंचायतें फंड-संसाधन के अभाव में ग्रामीणों को मूलभूत सुविधाएं मुहैया नहीं करवा पाती हैं। और अधिकांश पंचायतों की निजी आय नगण्य होने से उसे फंड्स और संसाधनों के लिए पूरी तरह राज्य सरकार या केंद्र सरकार पर निर्भर रहना पड़ता है। ग्रामीणों से मिलने वाले टैक्स से पंचायतों की स्वयं की आय पैदा होगी और उनकी आर्थिक आत्मनिर्भरता बढ़ेगी। जिससे पंचायतों को गाँवों में विकास कार्य करने के लिए राज्य या फिर केंद्र सरकार द्वारा दिए जाने वाले फंड्स पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। मगर पंचायतों को आत्मनिर्भर बनाने की यह नई कर व्यवस्था लागू होनेू से पहले ही सवालों के घेरे में आ गई। और इन नए कर प्रावधानों के विवादों में घिरने का सबसे बड़ा कारण रहा - पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की गरीबों के पीएम आवास को भी सम्पत्तिकर के दायरे में लाने की मंशा।
पंचायतों के लिए प्रस्तावित अनिवार्य करों में शामिल संपत्ति कर के अनुसार पीएम आवास भी कर के दायरे में
दरअसल, अगर पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा प्रपोज़ किये गए टैक्स के नए प्रावधान अगर जस-के-तस लागू हो जाते हैं तो इसका सबसे बड़ा असर पीएम आवास के गरीब हितग्राहियों पर पड़ेगा। क्योंकि अनिवार्य करों में शामिल संपत्ति कर का जो निर्धारण किया गया है, उसके अनुसार प्रधानमंत्री आवास भी कर के दायरे में आ जाएंगे। प्रावधानों के अनुसार जिस आवासीय संपत्ति का पूंजी मूल्य 50,000 से 1 लाख के बीच है उसपर न्युनतम 100 रुपये संपत्ति कर देय होगा। इसी तरह से 1 लाख रुपये से अधिक पूंजी मूल्य के भवनों पर न्युनतम 500 रुपए संपत्तिकर देय होगा। अब इसके अनुसार गांवों में बने प्रधानमंत्री आवास 1 लाख रुपये से अधिक पूंजी मूल्य के दायरे में आ रहे हैं। लिहाजा पीएम आवास हितग्राही को अपने घर पर 500 रुपये सालाना टैक्स देना पड़ेगा।
गरीब ग्रामीणों ने किया पीएम आवास पर सम्पत्ति कर का विरोध
अब पहले से ही क़र्ज़, सूखे, फसल खराबी और महंगाई की मार झेल रहे किसानों और गरीब ग्रामीणों ने इस जबरन के टैक्स का विरोध शुरू कर दिया। ग्रामीणों का कहना है कि पीएम आवास को कर के दायरे में लाना मतलब गरीब ग्रामीणों पर अतिरिक्त भार डालना है। गांव में ज्यादातर किसान और मजदूर रहते हैं, जिनको राहत देने की बजाय सरकार टैक्स लगाकर और परेशान करने का काम कर रही है। टैक्स से गाँवों में विकास नहीं, बल्कि ग्रामीणों को परेशानी ज्यादा हो जाएगी। द सूत्र के टीम ने जाना विदिशा और राजगढ़ जिले के ग्रामीण हितग्राहियों से उनका मत...
टैक्स से गांवों में विकास नहीं ग्रामीणों को परेशानी ज्यादा: मोहर सिंह लोधी, अनवई, ग्यारसपुर, विदिशा
"सरकार पीएम आवास के तहत जो 1 लाख 30 हज़ार दे रही हैं, वही पूरे नहीं पड़ते घर बनाने को...कुटीर पूरी बनाने के लिए मौजूदा चीज़ें गिरवी रखनी पड़ती हैं...पीएम आवास पर शासन को टैक्स नहीं लगाना चाहिए...गरीब आदमी कहाँ से देगा? गरीब आदमी के पास तो खाने के ही पैसे नहीं हैं...टैक्स से गांवों में विकास नहीं ग्रामीणों को परेशानी ज्यादा हो जाएगी।"
टैक्स कहाँ से देंगे, कोई कमाई नहीं हैं: गजराज, पीएम आवास हितग्राही, राजगढ़
"मुझे पहली बार अब पीएम आवास मिला हैं....अगर सरकार इस पर टैक्स लगाएगी तो कहाँ से देंगे....रोज किसी तरह गुजारा करते हैं....मजदूरी करते हैं...कोई कमाई नहीं हैं।"
मैं टैक्स नहीं दे सकती: रूड़बाई, पीएम आवास हितग्राही, राजगढ़
"मैं टैक्स नहीं दे सकती....अब मैं कमाऊँ क्या और टैक्स क्या दूँ? जब घर की जरूरतें ही पूरी नहीं होती।"
पीएम आवास पर कर लगाने से इस योजना का औचित्य ही समाप्त हो जाता है: राकेश मालवीय, एक्सपर्ट
ग्रामीण तो पीएम आवास पर संपत्ति कर लगाने कि बात को नाजायज ठहरा ही रहे हैं, साथ ही एक्सपर्ट्स ने भी इस तरह के टैक्स को गैरजरूरी बताया है। सामाजिक संस्था विकास संवाद से जुड़े राकेश मालवीय के अनुसार इस तरह के कर लगाने से सरकारी मदद का क्या मतलब रह जाता है। एक तरफ सरकार गरीबों के लिए योजनाएँ चलती है, और दूसरी तरफ टैक्सेशन के माध्यम से उनसे वसूली करती है। ये दोगलापन वाला रवैया है। पीएम आवास जैसी योजना गरीबों को दी ही इसलिए जाती है क्योंकि वे अपने बूते घर बनाने के लिए सक्षम नहीं है। सरकार को पीएम आवास पर कर लगाने के प्रस्ताव पर दोबारा सोचना चाहिए।
अब पीएम आवास पर टैक्स लगाने के प्रपोसल का विरोध कितना जायज है....ये समझने के लिए पहले जानते हैं की पीएम आवास योजना क्या है और समाज के किस तबके के लिए है:
पीएम आवास योजना
1 अप्रैल 2016 को इंदिरा आवास योजना को पुनर्गठित कर शुरू कि गई पीएम आवास योजना केंद्र सरकार की सबसे बड़ी आवास योजना है। स्कीम के तहत सरकार की मंशा है कि वर्ष 2024 तक देश के ऐसे सभी लोगों को पक्का मकान मिल जाए.... जो या तो बेघर हैं या फिर कच्चे मकानों में रहते हैं। मध्य प्रदेश में 37,89,400 ग्रामीण पीएम आवास बनाने का टारगेट रखा गया है। योजना के तहत सरकार घर बनाने के लिए वित्तीय सहायता देती है। ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को यह मदद, प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के माध्यम से मिलती है। ग्रामीण हितग्राहियों को प्रधानमंत्री आवास (ग्रामीण) योजना के अंतर्गत पक्का घर बनाने के लिए 1 लाख 30 हज़ार तक की मदद दी जाती है।
अब पीएम आवास पर ग्राम पंचायत द्वारा लगाए जाने वाले 500 रुपए के कर के विरोध सही क्यों हैं इसे इन दो बातों से समझिये:
पहला: दरअसल, खुद सरकार के अनुसार, प्रधानमंत्री आवास (ग्रामीण) योजना ऐसे लोगों के लिए है जो गरीब है, BPL श्रेणी के हैं और कम आमदनी वाले ग्रामीण हैं। ऐसे ग्रामीण जो झुग्गी, झोपडी या कच्चे घरों में रहते हैं। और योजना वाकई में बेघर-गरीब ग्रामीण के ही काम आए, इसके लिए सरकार लाभार्थियों का चयन बड़ी ही पैनी नज़रों से करती है। सरकार हितग्राहियों का चयन करने के लिए 2011 की सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) के अनुसार 'आवास अभाव मानकों' का उपयोग करती है। SECC डेटा का उपयोग करके बेघर और कच्ची दीवार- कच्चे छत वाले घरों में रहने वाले परिवारों को पहचाना जाता है। इसके बाद चयनित किये गए ग्रामीण लाभार्थियों को ग्राम सभाओं द्वारा सत्यापित किया जाता है। यानी ये तथ्य स्थापित होता है कि पीएम आवास योजना का लाभ पाने वाले वाकई में वो गरीब ग्रामीण है, जो दो वक़्त का खाना जुगाड़ने के लिए दिनभर मशक्कत करते हैं। इस तरह पीएम आवास पर 500 रुपए का टैक्स वाकई गरीब ग्रामीणों पर एक अतिरिक्त भार ही साबित होगा।
दूसरा: ग्रामीणों पर संपत्ति कर का ये एक्स्ट्रा बोझ तब लगाने की बात हो रही हैं जब हाल ही में CAG की रिपोर्ट में खुलासा हो चुका हैं कि वित्तीय वर्ष 2021-22 में पंचायत एवं ग्रामीण विकास ने ग्रामीण सड़कों जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए विदेशी बैंक से लिए गए 1,131 करोड़ का क़र्ज़ लिया। पर उस कर्ज में से 769 करोड़ का उपयोग ही नहीं किया। यानी फंड्स होते हुए भी पंचायतों के लिए फंड्स की कमी का रोना विभाग के मिसमैनेजमेंट की हद ही हैं। और अगर अब तक बनाए गए सभी 29,02,191 ग्रामीण पीएम आवासों पर 500 रुपए का टैक्स वसूल हो भी जाए तो भी डेढ़ सौ करोड़ के आसपास ही इकठ्ठा हो पाएंगे। जो पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के पास पड़े 745 करोड़ के इस अनयुस्ड फण्ड के सामने कुछ नहीं।
पीएम आवास को कर के दायरे में लाने के प्रस्ताव पर हो रहे विवादों और ग्रामीणों एवं एक्सपर्ट्स के तर्कों को लेकर द सूत्र ने बात की खुद पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के मंत्री डॉ. महेंद्र सिंह से और साथ ही पक्ष जाना विभाग के प्रमुख सचिव उमाकांत उमराव का भी। दोनों से बात करने पर पता चला कि जहाँ विभाग के प्रमुख सचिव उमाकांत उमराओ पीएम आवास को समपत्तिकर के दायरे में लाने के पक्षधर हैं...तो वहीँ मंत्रीजी पंचायतों के विकास के लिए टैक्स सिस्टम तो चाहते हैं मगर इसमें पीएम आवास को शामिल करने की बात से बिलकुल भी इत्तेफाक नहीं रखते। यानी इस पूरे मुद्दे को लेकर विभाग के मंत्री और आला अफसरों में ही सहमति नहीं हैं। क्या कहना हैं मंत्री डॉ. महेंद्र सिंह और विभाग के प्रमुख सचिव उमाकांत उमराव का...आप खुद ही पढ़ लीजिये:
कोई भी कर जिससे ग्रामीणों पर अतिरिक्त भर पड़े, नहीं लिया जाएगा: डॉ. महेंद्र सिंह, मंत्री, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग
"पंचायतों का अगर विकास करना हैं तो टैक्स सिस्टम तो होना चाहिए...सरकार पर डिपेंडेंसी कब तक रहेगी...बाज़ार, मंडी, बड़े गोडाउन्स आदि पर टैक्स लगाने की बातें हैं...हालाँकि, अभी वो फाइनलाइज़्ड नहीं हैं..पाइपलाइन में हैं... मैंने अभी ड्राफ्ट पूरा स्टडी नहीं किया हैं.....जहाँ तक पीएम आवास को करयुक्त करने का ड्राफ्ट हैं तो ...ऐसा कोई कर जिससे ग्रामीणों पर अतिरिक्त भर पड़े...नहीं लिया जाएगा। "
अगर पीएम आवास हितग्राही ग्रामीण उसपर टैक्स देगा तो उसके लिए ही अच्छा हैं: उमाकांत उमराव, प्रमुख सचिव, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग
"गाँवों के विकास कार्य के लिए पंचायतों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए ये कर प्रणाली जरुरी हैं....अगर पीएम आवास वाला हितग्राही भी टैक्स देता हैं...तो उसके लिए भी अच्छा ही हैं...क्योंकि अगर वह अपने आवास पर टैक्स देता हैं तो जरुरत पड़ने पर बैंक द्वारा उसकी प्रॉपर्टी यानी घर के मूल्य का आकलन किया जा सकेगा और उसको लोन दिया जा सकेगा....उस पैसे से वो कुछ काम कर सकेगा...अभी तक पीएम आवास पर लोन नहीं दिया जा सकता हैं। "
यानी पीएम आवास पर ग्राम पंचायतों द्वारा टैक्स लिया जाए या नहीं...इस बात पर मंत्री और अधिकारी दोनों दोनों के ही सुर अलग-अलग हैं। अब मंत्रीजी के अनुसार संबंधित सम्पत्तिकर का मामला अभी पाइपलाइन में हैं और प्रस्तावित ही हैं, लेकिन अधिकारियों द्वारा पीएम आवास को टैक्स प्रणाली में शामिल करना ही शासन की सोच पर सवाल खड़ा कर रहा है। और अभी तक पंचायत राज संचालनालय ने पीएम आवास को टैक्स से बाहर रखने संबंधी कोई आदेश भी नहीं दिया है।
(इनपुट्स- विदिशा: अविनाश नामदेव/ राजगढ़: बीपी गोस्वामी)