मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक धरोहरों पर नहीं सरकार की नजर, ऐतिहासिक किले और महल बन गए खंडहर

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Ruchi Verma
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मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक धरोहरों पर नहीं सरकार की नजर, ऐतिहासिक किले और महल बन गए खंडहर

BHOPAL: ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण धरोहरें किसी भी राज्य या राष्ट्र की संस्कृति के भण्डार होती हैं। शायद इसी लिए संग्रहालयों की स्थापना की जाती हैं - जो उस जगह की धरोहरों, कलाकृतियों आदि को बचाकर रखतें हैं। शायद इसी लिए पुरातात्विक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध मध्य प्रदेश में आज 43 संग्रहालय मौजूद है। पर आपको जानकर अचरज होगा कि इनमें से 22 संग्रहालय जैसे - चंदेरी का रामनगर किला, रीवा का वेंकट भवन, मांडू का छप्पन महल, सतना के रामवन का तुलसी राज्य संग्रहालय- भारी सरकारी उपेक्षा की शिकार हैं। न तो इनका रखरखाव किया जा रहा है और ना ही इनकी सुरक्षा को लेकर कोई व्यवस्था है। ये खुलासा हुआ है हाल ही में जारी हुई CAG रिपोर्ट में।CAG ने अपनी रिपोर्ट में 7 राज्य संग्रहालय, 3 स्थानीय संग्रहालय, 2 स्थल संग्रहालय और 4 पुरातत्व संघ संग्रहालय को शामिल किया हैं। रिपोर्ट में जो चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं, उनके अनुसार





रिपोर्ट में शामिल संग्रहालयों के मैनेजमेंट में भरी ख़ामियाँ





CAG रिपोर्ट में सामने आया है कि राज्य के पास अपने संग्रहालयों के मैनेजमेंट को लेकर किसी तरह की कोई पॉलिसी/ दिशा-निर्देश नहीं मौजूद हैं। भले ही ASI ने संग्रहालयों के प्रबंधन के लिए दिशा-निर्देश तैयार किये है, लेकिन राज्य सरकार MP के 43 संग्रहालयों में इसे लागू नहीं करवा पाई है।





संग्रहालयों की सुरक्षा के लिए कोई डिसास्टर मैनेजमेंट प्लान नहीं





रिपोर्ट में ये भी सामने आया कि अगर राज्य के संग्रहालयों में किसी तरह की आपदा आ जाए (प्राकृतिक/मानव निर्मित), तो उसे रोकने के लिए कोई भी डिसास्टर मैनेजमेंट प्लान मौजूद नहीं हैं। जबकि MP के 50 एरियाज भूकंप-संवेदनशील क्षेत्र में आते हैं। साथ ही राष्ट्रीय संरक्षण नीति 2014 में भी कहा गया हैं कि अपने ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण स्मारकों और संग्रहालयों को सुरक्षित रखने के लिए राज्यों के पास आपदा प्रबंधन योजना होनी चाहिए।





ऐतिहासिक धरोहरों के वेरिफिकेशन में लापरवाही





रिपोर्ट में स्टडी किये गए संग्रहालयों में मौजूद आर्टीफेक्ट्स का पीरियोडिक वेरिफिकेशन और संग्रहालयों का फिजिकल वेरिफिकेशन समय पर नहीं किया गया। कई जगहों पर तो संग्रहालयों का फिजिकल वेरिफिकेशन दस सालों में एक बार किया गया। इससे संग्रहालयों में मौजूद आर्टिफैक्ट्स का सही रख-रखाव नहीं हो पाया और उनके चोरी होने नकली के साथ बदल देने का ख़तरा बना रहा।





पुरातत्व विभाग ने डेटाबेस का डिजिटलीकरण नहीं किया





संग्रहालयों के डिजिटल होने से इंटरनेट की मदद से राज्य की ऐतिहासिक धरोहर को फायदा होता हैं और ज्यादा से ज्यादा दर्शक जुड़ते हैं। साथ ही ऐतिहासिक धरोहरों का डिजिटलीकरण होने से उनमें मौजूद आर्टिफैक्ट्स सुरक्षित होते हैं और ख़राब होने से बचते हैं। परन्तु CAG ने पाया कि पुरातत्व विभाग ने अपने डेटाबेस को संरक्षित करने के लिए डिजिटलीकरण की तरफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। इससे राज्य की धरोहर की जानकारी विश्व स्तर पर जाने से रुक गई। 





संग्रहालयों की सुरक्षा-व्यवस्था में भारी कमी





मध्य प्रदेश के संग्रहालयों के सुरक्षा तंत्र में बड़ी कमी देखी गई। रिपोर्ट में पाया गया कि २२ संग्रहालयों में से केवल 4 ही संग्रहालयों में CCTV कैमरे मिले। किसी भी संग्रहालय में आग लगने की अवस्था में अलार्म सिस्टम की कोई व्यवस्था नहीं है और न ही संग्रहालय के कर्मचारियों को अग्निशमन प्रशिक्षण दिया गया है।





टूरिस्ट्स और विज़िटर्स की सुविधाओं की कमी





ज्यादातर संग्रहालयों जैसे रीवा जिला संग्रहालय, ओरछा  जिला संग्रहालय और विदिशा जिला संग्रहालय में विज़िटर्स के लिए जरुरी सुविधाएं जैसे ऑनलाइन टिकट, पीने का पानी की अव्यवस्था, प्रसाधन कक्ष, आसान पहुंच की कमी देखने को मिली। CAG ने इस बात का साफ़ असर आने वाले विज़िटर्स की संख्या पर पड़ने की आशंका जताई। संग्रहालयों में विकलांग टूरिट्स के लिए रैंप की सुविधा की कमी भी दिखी।





संग्रहालयों की कलाकृतियों की ओरिजिनालिटी से समझौता





CAG ने अपनी रिपोर्ट में बताया हैं कि राज्य के संग्रहालयों में मौजूद कलाकृतियों में पेंट की छीटें और सीमेंट के निशान देखे गए, यानि आर्टिफैक्ट्स के संरक्षण में सीमेंट के इस्तेमाल को देखा गया। इससे आर्टिफैक्ट्स की ओरिजिनालिटी से समझौता हुआ।



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