ज्योतिरादित्य ने महाकाल मंदिर को राणोजी सिंधिया निर्मित बताया, कांग्रेस बोली- मनगढ़ंत कहानियों से इतिहास बदलने की कोशिश

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The Sootr CG
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ज्योतिरादित्य ने महाकाल मंदिर को राणोजी सिंधिया निर्मित बताया, कांग्रेस बोली- मनगढ़ंत कहानियों से इतिहास बदलने की कोशिश

संजय गुप्ता, INDORE. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 'महाकाल लोक' के लोकार्पण के पहले 11 अक्टूबर को अमृत महोत्सव नाम से बने ऑफिशियल ट्विटर के एक ट्वीट को रीट्वीट किया है। इसके बाद कांग्रेस ने इस मामले में उन पर इतिहास के जरिए भ्रम फैलाने का आरोप लगाया है।



ये ट्वीट किया- राणोजी राव सिंधिया द्वारा निर्मित महाकाल का यह मंदिर भूमिज, चालुक्य एवं मराठा शैलियों का अद्भुत समन्वय है। बाद में राणोजी की प्रेरणा पर ही यहां सिंहस्थ समागम की भी दोबारा शुरुआत की गई। राणोजी राव सिंधिया द्वारा 1736 में उज्जैन में निर्मित पुराना महाकाल मंदिर। 



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कांग्रेस का आरोप- राणोजी सिंधिया नहीं, शिंदे थे



एमपी कांग्रेस कमेटी के प्रदेश सचिव राकेश सिंह यादव ने मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया पर तंज कसते हुए कहा हैं कि मनगढ़ंत कहानियों से इतिहास बदलने का प्रयास किया गया है। उन्होंने दावा किया कि पुरातत्व इतिहास का सच यह हैं कि उज्जैन के महाकाल मंदिर का मुगल शासन के बाद जीर्णोद्धार पेशवा बाजीराव प्रथम के निर्देशों पर कराया गया था। अठारहवीं सदी के चौथे दशक में उज्जैन में मराठा शासन स्थापित किया गया था। उज्जैन का प्रशासन पेशवा बाजीराव(प्रथम) ने अपने वफादार सेनापति राणोजी शिंदे को सौंपा था। उन्होंने अपनी संपत्ति को धार्मिक उद्देश्यों के लिए निवेश करने का फैसला किया। इसी व्यक्ति की संपत्ति के माध्यम से महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ था। शिंदे ने पेशवा बाजीराव के शासनकाल में महाकाल मंदिर का पुनर्निर्माण से लेकर ज्योतिर्गलिंग की पुनः स्थापना और सिंहस्थ पर्व स्नान की स्थापना की थी। उज्जैन 1750 में शिंदें (वर्तमान सिंधिया) के हाथों में आया। इसके बाद 1810 में दौलत राव सिंधिया ने ग्वालियर में अपनी नई राजधानी स्थापित की, तब वह सिंधिया प्रभुत्व का प्रमुख शहर बना।



वीकीपीडिया यह कहता है



महाकालेश्वर मंदिर महाकालेश्वर भगवान का प्रमुख मंदिर है। पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में इस मंदिर का मनोहर वर्णन मिलता है। स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की अत्यन्त पुण्यदायी महत्ता है। महाकवि कालिदास ने मेघदूत में उज्जैन की चर्चा करते हुए इस मंदिर की प्रशंसा की है। साल 1235 में इल्तुतमिश के द्वारा इस प्राचीन मंदिर का विध्वंस किए जाने के बाद से यहां जो भी शासक रहे, उन्होंने इस मंदिर के जीर्णोद्धार और सौन्दर्यीकरण की ओर विशेष ध्यान दिया। इतिहास से पता चलता है कि उज्जैन में सन 1107 से 1728 तक यवनों का शासन था। इनके शासनकाल में अवंति की लगभग 4500 सालों में स्थापित हिन्दुओं की प्राचीन धार्मिक परंपराएं प्राय: नष्ट हो चुकीं थीं। लेकिन 1690 ई. में मराठों ने मालवा क्षेत्र में आक्रमण कर दिया और 29 नवंबर 1728 को मराठा शासकों ने मालवा क्षेत्र में अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया। इसके बाद उज्जैन का खोया हुआ गौरव पुनः लौटा और सन 1731 से 1809 तक यह नगरी मालवा की राजधानी बनी रही। मराठों के शासनकाल में यहां दो महत्त्वपूर्ण घटनाएं घटीं। पहली महाकालेश्वर मंदिर का पुनिर्नर्माण और ज्योतिर्लिंग की पुनर्प्रतिष्ठा तथा सिंहस्थ पर्व स्नान की स्थापना, जो एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। आगे चलकर राजा भोज ने इस मंदिर का विस्तार कराया।



ग्रंथों में उल्लेख



14वीं और 15वीं सदी के ग्रंथों में महाकाल का उल्लेख मिलता है। 18वीं सदी के चौथे दशक में मराठा राजाओं का मालवा पर आधिपत्य हो गया। पेशवा बाजीराव प्रथम ने उज्जैन का प्रशासन अपने विश्वस्त सरदार राणौजी शिंदे को सौंपा। राणौजी के दीवान सुखटंकर रामचंद्र बाबा शैणवी थे। इन्होंने ही 18वीं सदी के चौथे-पांचवें दशक में मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। वर्तमान में जो महाकाल मंदिर स्थित है, उसका निर्माण राणौजी शिंदे ने ही करवाया है। 



महाकाल मंदिर का इतिहास द्वापर युग से



अलग-अलग जगह से मिली जानकारी के अनुसार महाकाल मंदिर का इतिहास सदियों पुराना है। महाकवि कालिदास और तुलसीदास की रचनाओं में महाकाल मंदिर और उज्जैन का उल्लेख है। कहा जाता है कि महाकाल मंदिर की स्थापना द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के पालनहार नंदजी से आठ पीढ़ी पूर्व हुई थी। शिवपुराण के अनुसार मंदिर के गर्भ गृह में मौजूद ज्योर्तिलिंग की प्रतिष्ठा नन्द से आठ पीढ़ी पूर्व एक गोप बालक द्वारा की गई थी।



जब भगवान श्रीकृष्ण उज्जैन में शिक्षा प्राप्त करने आए, तो उन्होंने महाकाल स्त्रोत का गान किया था। गोस्वामी तुलसीदास ने भी महाकाल मंदिर का उल्लेख किया है। छठी शताब्दी में बुद्धकालीन राजा चंद्रप्रद्योत के समय महाकाल उत्सव हुआ था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लोकार्पण के दौरान श्रीकृष्ण द्वारा यहां शिक्षा लेने की बात अपने उद्बोधन में कही थी।



इस मंदिर की महिमा का वर्णन बाणभट्ट, पद्मगुप्त, राजशेखर, राजा हर्षवर्धन, कवि तुलसीदास और रवीन्द्रनाथ की रचनाओं में भी मिलता है। मंदिर द्वापर युग का है लेकिन समय-समय पर इसका जीर्णोंद्धार होता रहा है। मंदिर परिसर से ईसवीं पूर्व द्वितीय शताब्दी के भी अवशेष मिले हैं, जो इस बात का प्रमाण हैं। 



महाकाल मंदिर त्रिस्तरीय है



वर्तमान में महाकाल ज्योतिर्लिंग मंदिर के सबसे नीचे के भाग में प्रतिष्ठित हैं। मध्य के भाग में ओंकारेश्वर का शिवलिंग है और सबसे ऊपर वाले भाग पर साल में सिर्फ एक बार नागपंचमी पर खुलने वाला नागचंद्रेश्वर मंदिर है। महाकाल का यह मंदिर भूमिज, चालुक्य और मराठा शैलियों का अद्भूत समन्वय है। मंदिर के 118 शिखर स्वर्ण मंडित हैं, जिससे महाकाल मंदिर का वैभव और अधिक बढ़ गया है।


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