केंद्रीय कृषि मंत्री का ऐलान, प्राकृतिक खेती विधा बनेगा कृषि पाठ्यक्रम का हिस्सा, मसौदा तैयार करने ग्वालियर में जुटे वैज्ञानिक

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Vivek Sharma
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केंद्रीय कृषि मंत्री का ऐलान, प्राकृतिक खेती विधा बनेगा कृषि पाठ्यक्रम का हिस्सा, मसौदा तैयार करने ग्वालियर में जुटे वैज्ञानिक

देव श्रीमाली, GWALIOR. केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने शनिवार को एक बड़ी घोषणा की । उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती को कृषि शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा। उन्होंने कहा कि हमारे कृषि उत्पाद गुणवत्ता में वैश्विक स्तर पर भी खरे उतरें और किसानों की आय बढ़े इसी सोच के साथ सरकार अब उत्पादन केन्द्रित खेती के बजाय गुणवत्ता व आय केन्द्रित खेती को बढ़ावा दे रही है। इसी कड़ी में सरकार द्वारा प्राकृतिक खेती को विशेष प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इसी तारतम्य में कृषि के राष्ट्रीय पाठ्यक्रम में प्राकृतिक खेती भी पढ़ाई जाएगी।



ग्वालियर में प्राकृतिक खेती पर चल रहा है राष्ट्रीय सेमिनार



 तोमर ग्वालियर के राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय में “प्राकृतिक खेती” विषय पर आयोजित हुई राष्ट्रीय कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। कृषि विश्वविद्यालय के दत्तोपंत ठेंगड़ी सभागार में आयोजित हुई कार्यशाला की अध्यक्षता प्रदेश के उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)  भारत सिंह कुशवाह ने की। कार्यशाला में देश भर के 425 कृषि विज्ञान केन्द्रों से आए कृषि वैज्ञानिक, प्राकृतिक खेती से जुड़े उन्नतशील कृषक एवं कृषि तकनीक अनुप्रयोग अनुसंधान के नोडल अधिकारियों ने हिस्सा लिया। कार्यशाला में केन्द्रीय कृषि विद्यालय इम्फाल के कुलपति डॉ. अनुपम मिश्रा, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक डॉ. वेदप्रकाश चहल एवं राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अरविंद कुमार शुक्ला मंचासीन थे। कार्यशाला का आयोजन जबलपुर व ग्वालियर के कृषि विश्वविद्यालय और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबद्ध कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान केन्द्र जबलपुर (अटारी) के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। 



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प्राकृतिक खेती को लेकर वैज्ञानिक कर रहे हैं मंथन



कार्यशाला को संबोधित करते हुए केन्द्रीय मंत्री  तोमर ने कहा कि एक समय देश ने हरित क्रांति अपनाकर और रासायनिक खेती के माध्यम से खाद्यान्न की जरूरतों को पूरा किया है। लेकिन अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से हमें दुष्परिणाम भी भोगने पड़ रहे हैं। इसलिए प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की महती आवश्यकता है। उन्होंने कहा प्राकृतिक खेती को बल देने के लिये भारत सरकार द्वारा व्यापक स्तर पर कार्यशालाओं आदि के माध्यम से कृषि वैज्ञानिकों एवं किसानों के बीच मंथन कराया जा रहा है। 



खेती के बिना अन्न नही मिल सकता भले ही जेब में खूब पैसा हो



तोमर ने कहा कि कृषि सिर्फ आजीविका भर नहीं है, आजीविका के कई और साधन हो सकते हैं पर यदि कृषि उपेक्षित हुई तो जेब में पैसा तो होगा पर पैसे से हम अन्न नहीं बना सकते।  प्राकृतिक खेती अपने आप में पूर्णता का संदेश है और समय की मांग है। यदि हम अभी से सचेत नहीं हुए तो माटी की उर्वरा शक्ति कमजोर हो जायेगी और एक दिन ऐसा आयेगा कि धरती उत्पादन देना बंद कर देगी। इसलिये हमें प्राकृतिक खेती को अपनाना ही होगा। 



कृषि वैज्ञानिक जारी रखें अनुसंधान



 तोमर ने इस अवसर पर कृषि वैज्ञानिकों का आह्वान किया कि वे इस दिशा में अनुसंधान जारी रखें और किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए प्रेरित करें। उन्होंने यह भी कहा कि यदि किसान प्राकृतिक खेती अपना लेंगे तो गायें भी सड़क पर दिखाई नहीं देंगीं। गुजरात का डांग जिला इसका उदाहरण है। जहाँ पर प्राकृतिक खेती अपनाई जाने से लोग गौशालाओं से गायें लाकर अपने घर पर बांध रहे हैं। 



एमपी दे रहा है बढ़ावा



उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)  भारत सिंह कुशवाह ने कहा कि किसान की ताकत बढ़ेगी तो देश भी ताकतवर होगा। इसी सोच के साथ मध्यप्रदेश में किसान हितैषी योजनायें बनाई गई हैं। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती कम खर्चे व कम पानी में अधिक उत्पादन और आय बढ़ाने वाली खेती की पद्धति है। उन्होंने प्राकृतिक खेती के लिये पशुपालन को अनिवार्य बताया। 



देश मे प्राकृतिक खेती पर देश की सबसे बड़ी कार्यशाला 



केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय इम्फाल के कुलपति प्रो. अनुपम मिश्र ने कहा कि देश में पहली बार प्राकृतिक खेती पर इतनी बड़ी कार्यशाला हुई है, जिसमें देश के 400 से अधिक जिलों से कृषि वैज्ञानिक व प्रगतिशील किसान आए हैं। प्रकृति के साथ समन्वय बनाकर रहना मनुष्य के लिये जरूरी है। इसलिये स्वस्थ रहने के लिये प्राकृतिक खेती को अपनाना ही होगा। 



प्राकृतिक खेती भारत मे आदिकाल से होती है



राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अरविंद कुमार शुक्ला ने कहा कि प्राकृतिक खेती प्रगति और प्रकृति के बीच समन्वय बनाने का काम करती है। इसीलिए भारत में आदिकाल से प्राकृतिक खेती होती आई है। 

कार्यक्रम के अंत में निदेशक विस्तार सेवाएं डॉ. वाय पी सिंह ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। संचालन कृषि वैज्ञानिक डॉ. वाय डी मिश्रा द्वारा किया गया । 



केन्द्रीय मंत्री तोमर ने की मध्यप्रदेश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की सराहना 



केन्द्रीय मंत्री  तोमर ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान ने भी प्रदेश के पाँच हजार किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ने की पहल कर राज्य में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की दिशा में सराहनीय कदम उठाया है। 



किसानों का भी समर्पण सेना के जवानों की तरह 



 तोमर ने कहा कि किसान भी सेना के जवान की तरह समर्पण भाव से काम करते हैं। जिस प्रकार सेना के जवान के लिये सीमा पर ड्यूटी के दौरान केवल मातृ भूमि की रक्षा का ध्येय होता है, उसी तरह कितनी भी प्राकृतिक आपदाएं झेलनी पड़ें, किसान खेती नहीं छोड़ता और उसके मन में सदैव यह ध्येय रहता है कि देश के 130 करोड़ लोगों की भूख मिटाने में हम सहभागी बनें।


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