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संजय गुप्ता, INDORE. शासकीय लॉ कॉलेज में किताब पर चल रहे विवाद की जांच के लिए नई कमेटी का गठन हुआ है। इस मामले की जांच के लिए प्रदेश सरकार ने पहले एक कमेटी बनाई थी, इस कमेटी में मंत्री तुलसी सिलावट के भाई को जगह दी गई थी। विवाद के बाद नई कमेटी बनाई गई, जिसमें मंत्री सिलावट के भाई और होलकर कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. सुरेश सिलावट को शामिल नहीं किया गया है। नई कमेटी में कुल सात सदस्य हैं। द सूत्र ने पुरानी कमेटी पर सवाल खड़े किए थे और कमेटी की निष्पक्षता पर प्रश्न किया था। क्योंकि कमेटी के सदस्य डॉ. सिलावट की पत्नी डॉ. सुधा सिलावट के प्रिंसिपल रहने के दौरान ही ये किताब लाइब्रेरी में रखी गई थीं। बता दें कि डॉ. सुधा सिलावट साल 2012 से 2015 तक इंदौर लॉ कॉलेज की प्रिंसिपल पर रहीं हैं। ऐसा माना जा रहा है कि ये किताब उनके कार्यकाल के दौरान ही लाइब्रेरी में आई थी। उल्लेखनीय है कि नई कमेटी मे पुरानी कमेटी के तीन सदस्य बरकरार रखे गए हैं, केवल सिलावट को ही बाहर कर चार अन्य सदस्य शामिल किए गए हैं।
नई कमेटी में ये हैं सदस्य
नई कमेटी में अतिरिक्त संचालक डॉ. किरण सलूजा, प्रिंसीपल डॉ. अनूप कुमार व्यास, डॉ. मथुरा प्रसाद, डॉ. आरएस चौहान, डॉ. कुंभन खंडेलवाल, डॉ. आरसी दीक्षित और डॉ. संजय कुमार जैन शामिल हैं। उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव के आदेश पर यह कमेटी बनी है और इसे तीन दिन में जांच करने का आदेश दिया गया है।
इधर लेखिका फरार, प्रिंसिपल की अग्रिम जमानत खारिज
उधर विवादास्पद किताब सामूहिक हिंसा एवं दाण्डिक न्याय पद्धति की लेखिका डॉ. फरहत खान फरार हो गई हैं। पुलिस जब उनके घर पहुंची तो वहां ताला मिला, फोन भी बंद आ रहा है। गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने जांच दल बनाकर उन्हें गिरफ्तार करने के निर्देश दिए हैं। उधर प्रकाशक के गिरफ्तारी की खबर आई है। लेकिन इधर प्रिंसिपल डॉ. इनार्मुर रहमान और आरोपी प्रोफेसर व उप प्राचार्य डॉ. मिर्जा की अग्रिम जमानत याचिका जिला कोर्ट में खारिज हो गई है। आरोपियों द्वारा तर्क रखे गए कि यह किताब उनके कार्यकाल में नहीं खरीदी गई, इसलिए वह आरोपी नहीं हो सकते हैं। फरियादी छात्र के वकील गोविंद बैस ने बताया कि कोर्ट ने माना कि अभी मुद्दे में जांच होना है और कई गंभीर आरोप है, ऐसे में पुलिस पूछताछ जरूरी है।
विवादित लेखिका की एक और किताब लाइब्रेरी में मिली
विवादित लेखिका डॉ. खान की एक और किताब शासकीय लॉ कॉलेज में मिली है। इसका नाम है- महिलाएं एवं आपराधिक विधि। इसका पब्लिकेशन सेंट्रल लॉ पब्लिकेशन ने किया है। इस किताब में स्त्रियों की स्थिति बताते हुए कहा गया है कि पुरूष प्रधान सामाजिक व्यवस्था में स्त्रियों को पुरूषों की वासना पूर्ति का साधन मात्र समझा जाता था। सभी युगों में पुरूष प्रधान व्यवस्था होने से उन्हें वस्तु और वासना पूर्ति का साधन मान लिया गया। आज भी द्रौपदी का चीर हरण, सीता का अपहरण देखने को मिलता है लेकिन अब अबला स्त्री के लिए कोई कृष्ण और राम नहीं है। कन्या भ्रूण हत्या, ब्राह्ण, ठाकुर और गुर्जर इस काम को ज्यादा करते हैं और वह अब कन्या भ्रूण हत्या के परिणाम भुगत रहे हैं।