Indore.तुलसी नगर और महालक्ष्मी कॉलोनी के एक-दूसरे की जमीन पर फैल जाने का मसला लगातार उलझता जा रहा है । कॉलोनाइजर और भूमाफिया तो अपना हित साध गए लेकिन परेशान हो रहे हैं वो 58 लोग जिन्हें प्रशासन ने नोटिस देकर पूछा है कि बताओ आपके पास ये प्लॉट कहां से आया। शनिवार को भी दोनों कॉलोनियों की हद पर फीता रख असलियत तलाशने की कोशिश की गई । फिलहाल कोई नतीजा नहीं निकला है। यह शंका जरूर उजागर हुई है कि महालक्ष्मी ने भी तुलसी की जमीन पर प्लॉट काट दिए हैं।
शहर की बड़ी कॉलोनियों में शुमार महालक्ष्मी नगर और इससे सटी हुई विवादास्पद कॉलोनी तुलसी नगर में प्लॉट्स का ऐसा घालमेल हो गया है कि प्रशासन खुद चकरी हो रहा है। दरअसल प्रशासन ने उन लोगों को प्लॉट दिलाने की मुहिम चला रखी है जो हकदार थे पर कॉलोनाइजर या भूमाफिया ने उनके हक की जमीन दी नहीं। इसी में महालक्ष्मी के कुछ पीड़ित प्लॉटधारकों के दस्तावेज तलाशे गए, कुछ जमीन भी प्रशासन को दस्तावेजों में दिखी जो इन पीड़ितों की दी जा सकती थी। मौका मुआयना करने अफसर पहुंचे तो कहानी ही पलट गई। वहां तो मकान बने थे, प्लॉट्स पर पहले से फैंसिंग थी । पता चला महालक्ष्मी की जमीन पर तुलसी नगर के कॉलोनाइजर ने घुसपैठ कर अपने प्लॉट बेच दिए हैं। लोगों ने मकान भी बना लिए। ऐसे करीब 58 प्लॉट शुरुआती जांच में मिले थे जो हैं तो महालक्ष्मी के लेकिन उन पर तुलसी नगर के लोग रह रहे थे।
नोटिस दिए तो खुलते गए राज
प्रशासन ने सभी 58 लोगों को नोटिस दिए और तुलसी नगर से संबंधित दस्तावेज मांगे तो पता चला उन्हें महालक्ष्मी के खसरे की जमीन बेच दी गई है। लोगों का कहना था कि हम तो 25 साल से रह रहे हैं। हमें तुलसी नगर के कॉलोनाइजर ने प्लॉट दिए हैं। अभी तक कोई नहीं आया। अब 25 साल बाद जवाब मांग रहे हैं। शनिवार को फिर मुद्दा गरमाया। नए सिरे से नपती हुई तो एक
और राज खुला। महालक्ष्मी ने तुलसी नगर की जमीन पर कुछ प्लॉट अपने लोगों को दे दिए हैं। इस नपती में प्रशासन ने अपनी टीम के अलावा दोनों कॉलोनी के कॉलोनाइजर, तुलसी नगर रहवासी संघ और प्लॉटधारकों को भी बुलाया और उनके सामने ही जमीन नापी गई। अभी केवल महालक्ष्मी नगर के खसरे नापे गए हैं। तुलसी नगर की नपती की रिपोर्ट आना बाकी है। दोनों कॉलोनियों की असली हद दस्तावजों पर आने के बाद संभव है दोनों कॉलोनाइजर समझौते की राह अपनाएं क्योंकि दोनों ने ही एक-दूसरे की जमीन हथिया रखी है। इस समझौते से कम से कम प्लॉट होल्डर्स का नुकसान नहीं होगा और प्रशासन का भी काम आसान हो जाएगा।