BHOPAL. मध्यप्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार की खबरों ने फिर जोर पकड़ा है। चुनाव में बमुश्किल एक साल का वक्त है। दिसंबर के बीतते ही प्रदेश चुनावी साल में खड़ा होगा। साल खत्म होते-होते अब सियासी गलियारों में सत्ता में फेरबदल की अटकलें एक बार फिर लग रही हैं। जिसका असर सीएम, ज्योतिरादित्य सिंधिया और दूसरे नेताओं पर भी पड़ेगा।
गुजरात के बाद मध्यप्रदेश का नंबर
बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने अपनी पूरी ताकत फिलहाल गुजरात में झोंक दी है। गुजरात चुनाव से निपटने बाद मध्यप्रदेश की बारी है। अगले साल होने वाले चुनाव से पहले आलाकमान मध्यप्रदेश में बड़े फेरबदल की तैयारी में हैं। इस तैयारी को प्रदेश की बीजेपी की जरूरत या मजबूरी भी कह सकते हैं। प्रदेश के कई नेताओं में असंतोष पसरा हुआ है। चुनावी मैदान में उतरने से पहले अपने ही घर के बागियों को शांत करना जरूरी है। वैसे तो फेरबदल सिर्फ मंत्रिमंडल में प्रस्तावित है और निगम मंडलों के पद भरे जाने हैं। लेकिन अटकलें सत्ता और संगठन में बदलाव की भी हैं।
नवंबर 2023 में 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव
नवंबर 2023 में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं। जिसमें तीन राज्य मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान बीजेपी के लिए बेहद अहम हैं। इसमें से रोटी पलट चुनाव की तासीर वाले राजस्थान की ओर से बीजेपी आश्वस्त है। छत्तीसगढ़ में मुकाबला बहुत कठिन है। इन तीन राज्यों के बीच मध्यप्रदेश बीजेपी के लिए सबसे अहम भी है और 20 साल की सत्ता को बचाए रखने की चुनौती भी है। 2018 का चुनाव हार चुकी बीजेपी यहां न राजस्थान जितनी आश्वस्त हो सकती है और न ही छत्तीसगढ़ जैसा टफ मुकाबला देख रही है। इसके बावजूद निश्चिंत होना भारी पड़ सकता है। क्योंकि बीजेपी को मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा खतरा किसी बाहर वाले या दूसरी पार्टी से नहीं बल्कि अपने अपनों से ही है। बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं में अधिकांश अंचलों में इस कदर असंतोष है कि आपसी कलह, गुटबाजी या सबोटाज से इनकार नहीं किया जा सकता। ये बात अलग है कि ये कांग्रेस की तरह ये सब खुलकर सामने नहीं आता है। लेकिन आलाकमान की नजरों से ये सब छिपा नहीं है।
दिसंबर में शिवराज मंत्रिमंडल में बड़ा फेरबदल
यही वजह है कि अब गुजरात चुनाव के बाद आलाकमान का सारा फोकस मध्यप्रदेश पर ही होगा, ऐसा माना जा रहा है। सियासी गलियारों में इन खबरों ने जोर पकड़ा हुआ है कि दिसंबर महीने तक शिवराज मंत्रिमंडल में बड़ा फेरबदल होगा। तरजीह उन अंचलों के विधायकों को दी जाएगी। जहां सबसे ज्यादा असंतोष या असंतुलन है। इसके अलावा निगम मंडलों के खाली पड़े पद भी भरे जाएंगे। फॉर्मूला वहां भी सेम ही होगा। अटकलें ये भी हैं कि इस बार फेरबदल में सिंधिया समर्थकों का पत्ता भी कट सकता है। फेरबदल की आंच सीएम और प्रदेशाध्यक्ष भी पहुंचे तो हैरानी नहीं होगी।
बीजेपी में असंतोष या सियासत हावी
बीजेपी में अटकलों का दौर शुरू होना इन दिनों आम हो गया है। खुद पार्टी के अंदर ही इतना असंतोष या यूं कहें कि सियासत हावी है कि अंदर ही अंदर बदलाव की खबरों को हवा देने से गुरेज नहीं किया जा रहा। कभी खबरें आती हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों का कद घटेगा या पद छीना जाएगा। कभी सुगबुगाहटें होती हैं कि सत्ता और संगठन में बड़ा बदलाव होगा। जिसके तहत सीएम और प्रदेशाध्यक्ष का चेहरा बदल दिया जाएगा। हालांकि शीर्ष नेतृत्व ये साफ कर चुका है कि सीएम फेस बदलने का उसका कोई इरादा नहीं है। इन सब अटकलों के बीच सीएम शिवराज सिंह चौहान ने विधायक दल की बैठक बुलाकर सबको चौंका दिया है। कहा गया कि ये बैठक गौरव यात्रा के मद्देनजर हुई। लेकिन अंदर की खबर ये है कि बैठक में विधायकों के परफॉर्मेंस पर भी चर्चा हुई। जिसके आधार पर कैबिनेट फेरबदल से जुड़े फैसले हो सकते हैं।
विधायक दल की बैठक ने चौंकाया
विधायक दल की बैठक सबसे ज्यादा चौंकाने वाली इसलिए रही क्योंकि ये सत्र से कई दिन पहले हुई। आमतौर पर सत्र से पहले विधायक दल की बैठक होती है। इस बैठक में कई अहम मसलों पर चर्चा हुई। सूत्रों का कहना ये भी है कि मंत्री और विधायकों से उनके क्षेत्र से जुड़े विकास के मुद्दों और हालात पर भी बात हुई। जिसके आधार पर ये फैसला होगा कि किस विधायक को मंत्रिमंडल में जगह दी जा सकती है और किसका कद घटेगा। इस विस्तार में अंचलों का गणित साधने की पूरी कोशिश होगी। फिलहाल ग्वालियर चंबल से मंत्रियों की संख्या सबसे ज्यादा है। बीजेपी को सबसे ज्यादा सीट देने वाले विंध्य को खास तवज्जो नहीं मिली। असंतोष महाकौशल में भी बहुत है। मंत्रिमंडल में खाली पद हैं चार और दावेदारों की लिस्ट बहुत लंबी है। जिनमें कई पूर्व मंत्री भी शामिल हैं। क्योंकि ये विधायक सिंधिया समर्थकों की वजह से मंत्री नहीं बन पाए थे। ऐसे में वे इस बार मौका पाने की तैयारी में हैं।
दो समीकरण साधना चाहती है बीजेपी
अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा संगठन व सत्ता दोनों ही इन रिक्त पदों को भरने के पक्ष में बताए जाते हैं। दरअसल नए मंत्रियों के सहारे बीजेपी, राजनीतिक और क्षेत्रीय दोनों समीकरणों को साधना चाहती है। ताकि विधानसभा चुनाव में इसका फायदा उठाया जा सके। पिछली बार मंत्रिमंडल विस्तार में सीएम शिवराज के करीबी कई विधायक मंत्री नहीं बन पाए थे। जो अब फिर से मंत्री पद की उम्मीद में हैं। राजेंद्र शुक्ला, रामपाल सिंह, अजय विश्नोई, नागेंद्र सिंह, रमेश मेंदोला, पारस जैन, प्रदीप लारिया, गायत्री राजे पवार सहित अन्य कई विधायक दावेदार अब एक बार फिर मंत्री पद पाने की रेस में शामिल हो गए हैं। बीजेपी की मुश्किल ये है कि पद कम है दावेदार ज्यादा है। इसलिए ये काम बहुत आसान नहीं है।
खराब परफॉर्मेंस वाले मंत्रियों पर गिर सकती है गाज
सूत्रों की मानें तो जिन मंत्रियों का परफॉर्मेंस खराब है, उन मंत्रियों के विभाग बदले जा सकते हैं। सत्ता और संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक 10 मंत्रियों की परफॉर्मेंस खराब है। इनमें वे मंत्री शामिल हैं जिनके पास भारी-भरकम विभाग हैं। खबर तो ये भी है कि दो से तीन मंत्रियों की छुट्टी भी हो सकती है। कैबिनेट से बाहर होने वाले या फिर जिनका कद घटेगा उनमें ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक भी शामिल हो सकते हैं। हालांकि माना ये भी जा रहा है कि सीएम शिवराज चुनाव के पहले रिस्क नहीं लेना चाहेंगे, ऐसे में मंत्री पद से किसे हटाया जाएगा, ये फैसला केंद्रीय हाईकमान को लेना है। क्योंकि इस मामले में जरा-सी भी चूक चुनाव के नतीजों पर असर डाल सकती है।
क्या सत्ता और संगठन में भी होगा बदलाव?
जो फॉर्मूला मंत्रिमंडल फेरबदल पर लागू होगा। तकरीबन उसी फॉर्मूले से निगम मंडलों के खाली पदों को भरने का भी फैसला होगा। मंत्रिमंडल फेरबदल और निगम मंडलों में उठापटक के बाद क्या सत्ता और संगठन भी बदलाव की राह पर होंगे। फिलहाल ये बड़ा सवाल है।
कोई भी सख्त फैसला लेना बीजेपी के लिए आसान नहीं
बीजेपी सख्त फैसले लेने के लिए जानी जाती है। लेकिन इस बार ये फैसले लेना आसान नहीं होगा। स्थिति आगे कुआं पीछे खाई वाली जो है। अंसतुलन को मैनेज करने में जरा-सी भूल हुई तो उसका खामियाजा किसी और रूप में भुगतना पड़ सकता है। मामला सिर्फ एक अंचल को मैनेज करने का नहीं है। सारे अंचलों के समीकरण साधने के साथ साथ जातिगत समीकरणों का भी ध्यान रखना है। इन समीकरणों को साधने के साथ बीजेपी को अपनी पार्टी के दिग्गज नेताओं को भी मैनेज करना है। जिनके समर्थकों का कद घटेगा या बढ़ेगा वो अपनी साख बचाने के लिए कुछ तो कद उठाएंगे। उनकी प्लानिंग भी पार्टी की मुश्किल बढ़ा सकती है। परेशानी ये है कि पद कम और दावेदार ज्यादा हैं। ऐसे में एक गलती फायदे को नुकसान में आसानी से बदल सकती है।