राहुल शर्मा, Bhopal. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी ने इटारसी रेल माल गोदाम की वजह से हो रहे प्रदूषण को लेकर सख्ती दिखाई है और मामले में पश्चित मध्य रेल के जीएम और भोपाल डीआरएम से 6 सप्ताह के अंदर जवाब मांगा है। वहीं नर्मदापुरम कलेक्टर की अध्यक्षता में कमेटी भी गठित करने के निर्देश दिए है। इस कमेटी को रेल माल गोदाम से होने रहे प्रदूषण की वजह से प्रभावितों की एक रिपोर्ट सबमिट करना है। इटारसी रेल माल गोदाम 40 सालों से बीच शहर में चल रहा है, जिसकी वजह से यहां एयर, वॉटर और सॉइल पाल्यूशन हो रहा है, जिसे लेकर द सूत्र ने जुलाई माह में इस मामले को पूरजोर तरीके से उठाया।
22 दिसंबर तक सबमिट करना है जवाब
इटारसी रेल माल गोदाम में वैसे तो कोयला छोड़ सभी रैक आती है, लेकिन इसमें सबसे ज्यादा सीमेंट और फर्टिलाइजर की रैक से दिक्कत होती है। याचिककर्ता की ओर से वकील आयुष गुप्ता ने कहा कि मामले में अगली सुनवाई 22 दिसंबर को है, तब तक रेलवे को अपना जवाब भी देना है और नर्मदापुरम कलेक्टर की अध्यक्षता में गठित कमेटी को अपनी रिपोर्ट भी सबमिट करनी है। इस कमेटी में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मेंबर भी रहेंगे।
सीमेंट डस्ट कार्सेजनिक, हो सकता है कैंसर
सीमेंट रैक लोडिंग अनलोडिंग से रेलवे माल गोदाम के पास जो सीमेंट की डस्ट उड़ती है वह कार्सेजनिक होती है। सामान्य तौर पर लोगों को इसके नुकसान पता नहीं होते, लेकिन इससे कैंसर तक होने की संभावना होती है। याचिकाकर्ता की ओर से वकील उर्वशी मिश्रा ने बताया कि पब्लिक हेल्थ को देखते हुए एनजीटी ने जिस तरह का आदेश निकाला यह काफी सराहनीय है।
इटारसी के 25 हजार नागरिक सहित ट्रेन में सफर करने वाले तक प्रभावित
इटारसी रेलवे मालगोदाम से न केवल वहां काम करने वाले हम्माल बल्कि आसपास रहने वाले 25 हजार लोग किसी न किसी तरह से प्रभावित हैं। रेल गोदाम बीच शहर में होने से जब यहां ट्रक की आवाजाही होती है तो जाम की स्थिति बन जाती है। यही नहीं मुंबई रूट से आने वाली ट्रेन इटारसी जंक्शन पर जाने से पहले आउटर पर रूकती हैं, इसी आउटर के सामने ही माल गोदाम है, जहां लोडिंग—अनलोडिंग का काम होता है। आउटर पर रूकने वाली यात्री ट्रेन के मुसाफिरों को भी इस पाल्यूशन को झेलना पड़ता है। दिक्कत यह है कि इस पूरे माल गोदाम से कितने रेलवे यात्री प्रभावित होते होंगे, इसका सही अंदाजा तो लगाया ही नहीं जा सकता।
रेलवे को भारी पड़ सकती है लापरवाही
रेलवे शुरू से ही इस मसले को लेकर गंभीर नहीं है। यही कारण है कि बीच शहर में 40 साल से चल रहे इस माल गोदाम को लेकर सेंट्रल पाल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की गाइडलाइन का पालन नहीं किया गया। एनजीटी ने पूरे मामले में नर्मदापुरम कलेक्टर को रिपोर्ट तैयार करने को कहा है। जिसके आधार पर रेलवे पर तगड़ा जुर्माना और प्रभावित लोगों को मुआवजे की बड़ी रकम देनी पड़ सकती है, जो करोड़ों रूपए तक हो सकती है।
दीवार के ऊपर रेलवे प्लेटफार्म, कैसे रूकेगी डस्ट
द सूत्र ने जब इस पूरे मामले को उठाना शुरू किया तो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इस पर संज्ञान लेते हुए रेलवे को नोटिस जारी किए। सांसद राव उदय प्रताप ने तो इटारसी शहर से माल गोदाम को शिफ्ट किए जाने तक का पत्र रेलवे के जीएम को लिख दिया। इस सब कवायद के बाद रेलवे ने माल गोदाम और सड़क के बीच एक दीवार बना दी, पर ये दीवार किसी काम की नहीं है। दरअसल दीवार की जो उंचाई है उससे उपर रेलवे का प्लेटफार्म है, मतलब लोडिंग—अनलोडिंग के समय यह दीवार किसी भी तरह से डस्ट को नहीं रोक सकेगी। सेंट्रल पाल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की गाइडलाइन में दीवार बनाने की जिक्र इसलिए किया गया था ताकि डस्ट को रोका जा सके, लेकिन यहां तो दीवार बनाने के बहाने से हजारों रूपए बर्बाद कर दिए गए।
दीवार बनने के बाद भी पार्टिकुलेट मेटर की वैल्यु बहुत अधिक
दीवार बनने के बाद इटारसी रेल माल गोदाम से हो रहे पाल्यूशन में क्या कोई कमी आई, यह जानने द सूत्र की टीम दोबारा इटारसी पहुंची। यहां रैक आने पर पार्टिकुलेट मैटर की वैल्यु निकाली, जो परमीसिबल लिमिट से काफी ज्यादा मिली। जिसके कारण मॉनीटर बीप करने लगा। पीएम 2.5 की वेल्यू 208 माइक्रोग्राम पर क्यूबिक मीटर और पीएम10 की वेल्यू 483 माइक्रोग्राम पर क्यूबिक मीटर मिली जो यह बताता है कि यहां कि स्थिति अब भी विस्फोटक बनी हुई है।
रहवासी बोले-शहर से बाहर हो मालगोदाम
बंजरंगपुरा के रहने वाले सतीश कैथवास कहते हैं कि जब यहां डीओसी की रैक आती है तो बारिश के समय पूरे इलाके में बदबू होती है। धूल उड़ती रहती है, जिससे परेशानी होती है। इटारसी के रहवासी नफीस खान बताते हैं कि कई बार यहां दुर्घटनाएं भी हुईं हैं। वैसे भी माल गोदाम शहर के बाहर होना चाहिए, बस यही बीच शहर में ये है, जिससे काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
माल गोदाम की वजह से मिट्टी-पानी तक प्रदूषित
द सूत्र ने पड़ताल में यह भी सामने आया था कि इटारसी रेल माल गोदाम की वजह से केवल हवा नहीं बल्कि मिट्टी और पानी तक प्रदूषित हुए हैं। सीपेज की प्रॉपर व्यवस्था न होने से यहां के पानी में टोटल कोलीफार्म की मात्रा 900 तक है। यह बैक्टीरिया मल मूत्र में पाया जाता है। द सूत्र ने यहां के मिट्टी का सैंपल लेकर उसकी भी जांच करवाई, जो रिपोर्ट आई वह बेहद चौकाने वाली है। कच्ची मिट्टी के प्लेटफार्म पर सीमेंट और फर्टीलाइजर की लोडिंग-अनलोडिंग की वजह से मिट्टी इस हद तक जहरीली हो गई है कि अब उसे मिट्टी नहीं कहा जा सकता। रिपोर्ट के अनुसार आर्गेनिक कार्बन, पोटेशियम, सल्फर, आयरन और मैगनीज निर्धारित मात्रा से कहीं अधिक पाए गए हैं, वहीं फास्फोरस, जिंक और कॉपर की मात्रा भी वेरी हाई बताई गई है, जो बेहद विस्फोटक व घातक स्थिति है। जानकारों के अनुसार इस मिट्टी में पहले तो कोई फसल लग नहीं सकती, लेकिन यदि कोई सब्जी लग भी गई तो उसके खाने से लोगों का बीमार बहुत बीमार होना निश्चित है।