अंकुश मौर्य, BHOPAL. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इन दिनों धुआंधार फॉर्म में हैं। गड़बड़ी करने वाले अधिकारियों को मंच से ही सस्पेंड कर देते हैं। वर्चुअल मीटिंग में भी मुख्यमंत्री सड़कों पर नजर रहे हैं लेकिन न जाने क्यों मुख्यमंत्री का ध्यान सहकारिता के अफसरों पर नहीं जा रहा। राजधानी में पदस्थ सहकारिता के अधिकारी खुद को विधानसभा और हाईकोर्ट से बड़ा समझने लगे हैं। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि विधानसभा के सवाल पर हुई जांच की रिपोर्ट को दबा दिया जाता है। कार्रवाई के लिए हाईकोर्ट आदेश देता है तो अफसर उसे भी ठेंगा दिखा देते हैं।
हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी कार्रवाई नहीं
भोपाल की सहकारी गृह निर्माण संस्थाओं में हुए घोटालों को लेकर तमाम जांच हो चुकी हैं। जिनमें घोटाले और गुनहगारों से जुड़े तथ्य सामने आ चुके हैं। लेकिन किसी पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। लिहाजा एक पीड़ित विवेक दीक्षित ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कार्रवाई के आदेश दिए लेकिन सहकारिता के अफसरों ने कार्रवाई नहीं की।
कार्रवाई नहीं होने पर अवमानना याचिका दायर
भोपाल की गौरव और हेमा गृह निर्माण सोसाइटी में हुई गड़बड़ियों को लेकर हाईकोर्ट ने अवैध तौर पर की गई रजिस्ट्रियों को शून्य कराने और संस्थाओं के खातों से गबन की गई राशि की वसूली के आदेश दिए थे। लेकिन अफसरों ने कोई कार्रवाई नहीं की। कार्रवाई न होने पर याचिकाकर्ता ने अवमानना याचिका दायर कर दी। जिस पर नोटिस जारी किए गए। याचिकाकर्ता विवेक दीक्षित ने आयुक्त सहकारिता मध्यप्रदेश नरेश कुमार पाल को पार्टी बनाया है।
हाईकोर्ट के आदेश का असर नहीं
आयुक्त ने उपायुक्त सहकारिता जिला भोपाल को 2 अगस्त 2022 को कार्रवाई के निर्देश दिए। 3 महीने की समय सीमा तय की गई थी। लेकिन जिले के अधिकारियों पर किसी भी आदेश निर्देश का कोई असर नहीं हुआ और 3 महीने का वक्त भी निकल गया। गौरव और हेमा गृह निर्माण सोसाइटी के संस्थापक सदस्य सालों से प्लॉट के लिए भटक रहे है। ऐसे में जब सहकारिता के अफसरों पर हाईकोर्ट के आदेश का भी असर नहीं हो रहा तो पीड़ितों को न्याय मिलना मुश्किल नजर आ रहा है।