Indore.चार हजार लगेंगे...दूर कितना है...। वापस खाली भी तो आना पड़ेगा। अरे भैया, मरे के लिए क्या सौदेबाजी कर रहे हो। एक तो हमने इंसान खो दिया, दूसरा आप पैसों पर अड़े हो। लोग तो धर्म के लिए ही शव वाहन दे देते हैं..। आप थोड़ी तो इंसानियत रखो। यहां तो रोज दस-पंद्रह मरते हैं। सबसे इंसानियत रखेंगे फिर तो हो गया हमारा काम...। बोलो जल्दी बोलो..ले जाना है क्या बॉडी..। लेकर हम ही जाएंगे कोई और घुस भी नहीं पाएगा। पड़ी रहेगी यहीं।
ये द्रश्य प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी हॉस्पिटल महाराजा यशवंत राव चिकित्सालय ((MYH)) में रोजमर्रा के हैं। कारण। इतने बड़े हॉस्पिटल में एक अदद सरकारी शव वाहन तक नहीं है जो यहां से शवों को घर तक पहुंचा दे। भले ही सशुल्क। नतीजा यह कि प्रायवेट गाड़ी वालों ने पूरे परिसर में कब्जा कर लिया है। किसी के स्वर्ग सिधारते ही इनके दलाल और ड्रायवर सक्रिय हो जाते हैं। खास बात यह कि मरीज की मौत की खबर इन्हें हॉस्पिटल से ही तत्काल मिल जाती है। मतलब इनके तार कहीं न कहीं हॉस्पिटल के अंदर तक जुड़े हुए हैं।
पच्चीस साल पहले दान में मिला था वाहन
एमवायएच में साल में औसतन तीन-साढ़े तीन हजार हजार तक मौत होती हैं। 'द सूत्र' ने अधिकृत जानकारी निकाली तो बताया गया कि फरवरी-1997 में (25 साल पहले) रेडक्रास ने एक शव वाहन दिया था, लेकिन वाहन खुद पहले दिन से मरणासन्न था। ठीक से काम नहीं कर रहा था फिर भी उसे हॉस्पिटल से जोड़े रखा लेकिन जब लगा कि यह बोझ बन रहा है, जिस काम के लिए मिला है वो काम हो ही नहीं पा रहा है तो पांच साल पहले उसे यथास्थान पहुंचा दिया। प्रबंधन ने लिखित में स्वीकार किया कि वर्तमान में हॉस्पिटल में कोई शव वाहन नहीं है।
गोलियां चल चुकी हैं
हॉस्पिटल के पास शव वाहन नहीं है। निजी वाहन वालों का गुट यहां शवों की सवारी को कब्जे में लेने के लिए आए दिन विवाद करता है। कुछ महीने पहले परिसर में गोली तक चल चुकी है। उसके बाद पुलिस और प्रबंधन ने निजी गैंग की गाड़ियां जरूर परिसर से बेदखल करवा दीं, लेकिन गैंग के सदस्य अब भी वहीं मंडराते रहते हैं। ज्योही अंदर से मौत का संकेत मिलता है, पीड़ितों को झपटने के लिए उसे घेर लेते हैं।
हॉस्पिटल अधीक्षक डॉ. पी.एस. ठाकुर (Dr.P.S. Thakur) से 'द सूत्र' के सवाल
-सवाल- इतने बड़े हॉस्पिटल में एक शव वाहन तक नहीं है। करोड़ों का बजट है। हर महीने सैकड़ों मौत होती हैं। कारण ?
-जवाब- मुझे जहां तक याद है कभी शव वाहन रहा ही नहीं यहाँ। दस साल से तो मैं ही देख रहा हूँ।
-सवाल- जरूरत नहीं लगती हॉस्पिटल को इस वाहन की ?
-जवाब- यहां स्थानीय नहीं, आसपास के शहरों, गांवों के मरीज भी आते हैं, उन्हें यह सुविधा देना थोड़ा मुश्किल है।
सवाल-कोई योजना है खरीदने की?
जवाब- अभी शव वाहन खरीदने की कोई योजना नहीं है।
सवाल-निजी वाहन मनमाना पैसा लेते हैं, विवाद भी होता है।
जवाब- निजी वाहन वालों के लिए प्री-पेड बूथ बना रहे हैं ताकि पहले ही तय हो जाए कहां जाने का कितना पैसा देना होगा। आधुनिक पुलिस चौकी भी बनवा रहे हैं।
एंबुलेंस के नाम पर हैं नाकारा गाड़ियाँ
हॉस्पिटल के पास कहने को सात एंबूलेंस हैं। उसमें दो-तीन तो सर्वसुविधा संपन्न हैं लेकिन बाकी वो हैं जिन्हें सरकार भी बंद कर चुकी है।
-एक एंबुलेंस 1995 मॉडल (27 साल पुरानी) है, जो वास्तव में मारूति वैन है, जिसमें केवल सीटें लगी हैं।
-एक एंबुलेंस 2002 मॉडल ( 17 साल पुरानी टैंपो ट्रेवलर) है।
-दो एंबुलेंस 2004 मॉडल ( 18 साल पुरानी) मारूति वैन हैं।
-दो एंबुलेंस 2019 मॉडल हैं। दोनों सर्वसुविधा संपन्न हैं। दान में मिली हैं।
-एक एंबुलेंस 2005 मॉडल आरटीवी वैन है। यह परिसर में आराम करती है। इसे खुद इलाज की जरूरत है। हॉस्पिटल ने लिखकर दिया है- अचलायमान।