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जितेंद्र सिंह, GWALIOR. देश में धूम्रपान से सालाना तकरीबन 12 साल 80 हजार यानी रोज करीब 3500 मौतें हो रही हैं। एक सर्वे के मुताबिक, मध्य प्रदेश के 51 जिलों में कुल 50.2% पुरुष और 17.3% महिलाएं तंबाकू का सेवन करती हैं। युवाओं और बच्चों में भी तंबाकू उत्पादों का बढ़ता इस्तेमाल चिंता का विषय है। मध्य प्रदेश 13 से 15 साल की उम्र के 14 प्रतिशत से ज्यादा बच्चे तंबाकू की लत का शिकार हैं। अब जरा ये भी जान लीजिए। प्रदेश के हर जिले को तंबाकू से होने वाली मौतों की रोकथाम के लिए सालाना साढ़े 13 लाख रुपए का बजट मिलता है। नियमों का उल्लंघन करने के लिए चालानी कार्रवाई के भी आदेश हैं, पर जिम्मेदार अधिकारियों के पास नियम तोड़ने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने का समय तक नहीं है। महज 31 मई यानी विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर छोटे-मोटे कार्यक्रम करके वाहवाही लूटने वाले अधिकारी सालाना करोड़ों के बजट में सेंध लगा रहे हैं।
भारत सरकार ने सीओटीपीए-2003 बनाया
भारत सरकार ने सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान रोकने एवं तंबाकू उत्पादों को नाबालिगों की पहुंच से दूर रखने के लिए सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम-2003 (सीओटीपीए-2003) बनाया था। समय समय पर अधिनियम में संशोधन होते रहे। काननू का सख्ती से पालन कराने के लिए राज्यों को जिम्मा सौंपा गया। कलेक्टर की अध्यक्षता में जिला स्तर पर निगरानी दल बनाए गए हैं। राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम (एनटीसीपी) चलाने के लिए सालाना करोड़ों का बजट भी दिया गया है। इसके बावजूद ना सिर्फ सार्वजनिक स्थानों पर, बल्कि प्रतिबंधित क्षेत्रों में धड़ल्ले से धूम्रपान हो रहा है। शिक्षण केंद्रों और धार्मिक स्थानों के आसपास पर भी तंबाकू प्रोडक्ट्स की बिक्री थमी नहीं है।
21 राज्यों के 42 जिले किए थे शामिल
राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम (एनटीसीपी) 2007-08 में भारत के 21 राज्यों के 42 जिलों में पायलट परियोजना के रूप में शुरू किया गया था। एनटीसीपी के पहले चरण में मध्य प्रदेश के दो जिले (ग्वालियर और खंडवा) शामिल थे। कार्यक्रम (एनटीसीपी) में धीरे-धीरे देश के 36 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के 612 जिलों को शामिल कर लिया गया। वर्तमान में मध्य प्रदेश के 51 जिलों में राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम (एनटीसीपी) चल रहा है।
उल्लंघन पर दंड का प्रावधान
सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम-2003 (सीओटीपीए-2003) के अंतर्गत सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करने वालों पर धारा 4 के तहत 200 रुपए के जुर्माने का प्रावधान है, जबकि धारा 5 में सिगरेट एवं अन्य तंबाकू उत्पाद के विज्ञापन पर प्रतिबंध है। पहली बार उल्लंघन करने वाले को 2 साल जेल या 1000 रुपए जुर्माना और दूसरी बार 5 साल की जेल या 5000 रुपए का जुर्माना लगेगा। धारा 6 के तहत नाबालिगों और शैक्षणिक संस्थाओं के आसपास सिगरेट या अन्य तंबाकू उत्पादों की बिक्री करने पर 200 रुपए तक जुर्माने का प्रावधान है।
प्रदेश में 3 साल में सिर्फ 4567 चालान
मध्य प्रदेश में सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम-2003 (सीओटीपीए-2003) को लेकर जिलों में ना तो कलेक्टर गंभीर हैं और ना एसपी। इतना ही नहीं नोडल अफसर से लेकर समस्त विभागों के मुखिया और सामाजिक संगठन का भी अधिनियम के पालन को लेकर कोई योगदान नहीं हैं। तभी तो सार्वजनिक स्थान पर धूम्रपान करने पर मध्य प्रदेश के 51 जिलों में पिछले तीन सालों (2019-20 में 1897, 2020-21 में 890 तथा 2021-22 में 1780) में सिर्फ 4567 चालान काटकर खानापूर्ति कर दी गई। यानी कई जिलों ने एक भी चालानी कार्रवाई नहीं की। वहीं, साल 2016 से 2019 में सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करने वाले सिर्फ 767 लोगों का चालान कर जुर्माना वसूला गया। प्रदेश के कई जिले तो ऐसे भी हैं, जहां आज तक चालान बुक तक नहीं छपी।
सालाना 13.50 लाख का बजट
भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम (एनटीसीपी) चलाने के लिए 2015-16 में 105.45 करोड़, 2016-17 में 137.77 करोड़ तथा 2017-18 में 126.55 करोड़ का वार्षिक बजट दिया गया था। प्रत्येक जिले को जिला तंबाकू नियंत्रण प्रकोष्ठ को राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम (एनटीसीपी) चलाने के लिए सालाना 13 लाख 48 हजार रुपए का बजट स्वीकृत होता है। जिला स्तर पर साल में सिर्फ एक बार 31 मई यानी विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर एनटीसीपी की औपचारिकता कर दी जाती है। इसके बाद जिलों में सालभर ना तो कोई कार्यक्रम होता है और ना ही अधिनियम का उल्लंघन करने वालों पर कार्रवाई। ऐसे में सवाल उठता है कि जब जिला तंबाकू नियंत्रण प्रकोष्ठ काम ही नहीं कर रहा तो फिर बजट खर्च कहां हो रहा है।
जिला प्रकोष्ठ की बैठक तक नहीं हो रही
जिला तंबाकू नियंत्रण प्रकोष्ठ का मुखिया कलेक्टर को बनाया गया है, जबकि सीएमएचओ का सदस्य सचिव। इसके अलावा प्रकोष्ठ में एसपी से लेकर समस्त विभागों के अधिकारियों समेत एक सामाजिक संगठन को भी शामिल किया गया है, जिसमें सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम-2003 को लेकर प्रत्येक अधिकारी की जिम्मेदारी तय की गई है। पर जिम्मेदारी निभाना तो दूर अधिकारियों को जिम्मेदारी से अवगत करवाने के लिए सालों से प्रकोष्ठ की बैठक तक नहीं हो रही।
चालान बुक तक नहीं दी गई
जिले के तमाम विभागों के मुखिया को जिला तंबाकू नियंत्रण प्रकोष्ठ में शामिल तो कर लिया, उनकी जिम्मेदारी भी तय कर दी, पर कार्रवाई ना कर पाने के पीछे उनकी भी कोई गलती नहीं है। जिला एवं स्वास्थ्य अधिकारी द्वारा आज तक विभागों को चालानी कार्रवाई करने के लिए कट्टे ही मुहैया नहीं करवाए गए हैं। मुहैया करवाना तो दूर, छपवाए तक नहीं गए हैं। ग्वालियर के नोडल अफसर डॉ. आलोक पुरोहित का कहना है कि अब चालान बुक छपवाकर पुलिस को सौंपी हैं। जल्द ही चालानी कार्रवाई शुरू करेंगे। बैठक के लिए सीएमएचओ आदेश करेंगे, तब बैठक होगी। ऐसे में सवाल उठता है कि जब चालान बुक छपी नहीं। बैठकें हो नहीं रहीं तो अभियान कैसे चल रहा है।
आंकड़ों से समझें मध्य प्रदेश की स्थिति
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