भोपाल (अंकुश मौर्य). राजधानी के जय प्रकाश जिला अस्पताल (JP Hospital Bhopal) में आंखों के ऑपरेशन के लिए रोबोटिक मशीन (फेको इमल्सीफिकेशन) होने के बाद भी मोतियाबिंद के ऑपरेशन (cataracts opreation) रिस्क लेकर हाथों से किए जा रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि अस्पताल में तैनात तीन आई सर्जन में से एक भी रोबटिक मशीन (robotic machine) से ऑपरेशन के लिए ट्रेंड नहीं है। नेत्र विशेषज्ञों के मुताबिक फेको मशीन से ऑपरेशन सुरक्षित होता है और इससे मरीज की आंखों में बैक्टीरियल इन्फेक्शन का खतरा भी कम होता है। जबकि मैनुअल ऑपरेशन में घाव गहरा होने और इन्फेक्शन होने का खतरा ज्यादा रहता है।
मैनुअल ऑपरेशन से खराब हुईं कई मरीजों की आंखें: 8 अगस्त 2019 को इंदौर (Indore) के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद 15 मरीजों की आंखों की रोशनी चली गई। दूसरा मामला 25 सितंबर 2019 को छिंदवाड़ा (Chhindwara) से सामने आया। जहां डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में ऑपरेशन के बाद 4 मरीजों की आंखों रोशनी चली गई। इस तरह के ज्यादातर मामलों में आंखें खराब होने की वजह ऑपरेशन के दौरान या इसके बाद बैक्टीरियल इंफेक्शन होती है। लेकिन इसके बावजूद सरकार सबक नहीं लेती। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि राजधानी के डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में ही मरीजों की आंखों से खिलवाड़ किया जा रहा है।
धूल खा रही 15 लाख की मशीन: भोपाल के जय प्रकाश डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में हर साल मोतियाबिंद के सैकड़ों ऑपरेशन किए जाते हैं। लेकिन लगभग सभी ऑपरेशन मैनुअल यानी हाथों से किए जाते हैं। जबकि हॉस्पिटल में मोतियाबिंद के ऑपरेशन के लिए जर्मन तकनीक वाली रोबोटिक फेको इमल्सीफिकेशन मशीन मौजूद है। 10 फरवरी 2015 को जेपी हॉस्पिटल के आई डिपार्टमेंट में करीब 15 लाख रुपए की लागत से नई मशीन लगाई गई थी। लेकिन बीते 7 साल में इस मशीन से महज 128 ऑपरेशन किए गए हैं। यानी हर महीने इस मशीन से 2 ऑपरेशन भी नहीं किए गए। दूसरी तरफ राजधानी के ही दूसरे बड़े सरकारी हॉस्पिटल हमीदिया में फेको तकनीक से ही ऑपरेशन किए जा रहे हैं।
मैनुअल ऑपरेशन में हैं इंफेक्शन का खतरा ज्यादा: नेत्र रोग विशेषज्ञ और एमपी स्टेट ऑफ्थेल्मिक सोसाइटी के सेक्रेटरी डॉक्टर गजेन्द्र चावला स्पष्ट करते हैं कि मैनुअल की तुलना में फेको तकनीक से ऑपरेशन ज्यादा सुरक्षित होता हैं। फेको तकनीक से मोतियाबिंद का ऑपरेशन करने के लिए आंखों में महज 2 मिलीमीटर का चीरा लगाया जाता है। जबकि मैनुअल ऑपरेशन में 8 मिलीमीटर का चीरा लगाने की जरूरत पड़ती हैं। लिहाजा साफ है कि घाव छोटा होने की वजह से फेको तकनीक से ऑपरेशन कराने वाले मरीज की रिकवरी तेजी से होती हैं। उसे दर्द भी कम होता हैं और इंफेक्शन का खतरा भी न के बराबर होता है।
विशेषज्ञ डॉक्टर हैं, लेकिन रोबोटिक ऑपरेशन के लिए ट्रेंड नहीं: भोपाल के जेपी हॉस्पिटल में वर्तमान में 3 नेत्र रोग विशेषज्ञ पदस्थ हैं। लेकिन किसी को भी फेको इमल्सीफिकेशन मशीन से ऑपरेशन करना नहीं आता। यहां तैनात डॉ. निशा मिश्रा ने बताया कि मशीन से ऑपरेशन करने के लिए ट्रेनिंग की जरूरत होती हैं। लेकिन तीनों में से किसी भी डॉक्टर को ट्रेनिंग नहीं दिलाई गई है। लिहाजा ऑपरेशन मैनुअल ही किए जा रहे हैं। यहां पूर्व में तैनात डॉ. केके अग्रवाल और डॉ दीपा अग्रवाल ने रोबोटिक पद्धति से ऑपरेशन करने की ट्रेनिंग ली थी। लेकिन अब दोनों ही जेपी में पदस्थ नहीं हैं। डॉ. केके अग्रवाल ने तो वीआरएस ले लिया है।