मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (MP High Court) में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 27% आरक्षण पर गुरुवार 30 सितंबर को होने वाली सुनवाई (Hearing) समय की कमी के चलते नहीं हो पाई। अब इस मामले की सुनवाई 7 अक्टूबर होगी। सुनवाई आखिरी दौर में चल रही है। राज्य सरकार द्वारा अन्य प्रकरणों में दिए गए 27 प्रतिशत आरक्षण को दी गई चुनौती के मामले को भी हाईकोर्ट ने इसी के साथ लिंक कर दिया है। 27% OBC आरक्षण पर रोक हटाए जाने को लेकर 20 सितंबर को चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक और जस्टिस विजय शुक्ला की डबल बेंच में सुनवाई हुई थी। राज्य सरकार (MP Govt) का पक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने रखा था। वहीं पक्ष में कांग्रेस ने अभिषेक मनु सिंघवी और इंदिरा जय सिंह पैरवी करने की जिम्मेदारी सौंपी थी।
2 साल पहले हाईकोर्ट ने लगाई थी रोक
हाईकोर्ट ने 19 मार्च 2019 को मध्य प्रदेश में 14% ओबीसी आरक्षण की सीमा बढ़ाए जाने पर रोक लगाई थी। इसके बाद हुई सुनवाई में भी हाईकोर्ट ने बढ़े हुए आरक्षण पर रोक बरकरार रखी है। हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि इस मामले में सभी पक्षों को सुनने के बाद ही आखिरी फैसला सुनाया जाएगा।
सरकार ने 50% आबादी समेत सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन का दिया हवाला
सरकार के जवाब में पहले ही बताया जा चुका है कि एमपी में 50% से ज्यादा ओबीसी आबादी है। इनके सामाजिक, आर्थिक और पिछड़ेपन को दूर करने के लिए 27% आरक्षण जरूरी है। ये भी हवाला दिया कि 1994 में इंदिरा साहनी केस में भी सुप्रीम कोर्ट ने विशेष परिस्थितियों में 50% से ज्यादा आरक्षण देने का प्रावधान रखा है।
उधर, हाईकोर्ट में सरकार के 27% आरक्षण को चुनौती देने वाली छात्रा असिता दुबे सहित अन्य की ओर से पक्ष रख रहे अधिवक्ता आदित्य संघी कोर्ट को बता चुके हैं कि 5 मई 2021 को मराठा रिजर्वेशन को सुप्रीम कोर्ट ने 50% से ज्यादा आरक्षण होने के आधार पर ही खारिज किया था। ऐसी ही परिस्थितियां मध्य प्रदेश में भी है। यही जजमेंट सुप्रीम कोर्ट ने 1994 में इंदिरा साहनी के मामले में भी दिया था।