संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर बावड़ी हादसे में 36 मौतों के बाद जोर-शोर से अवैध अतिक्रमण हटाने, दोषियों पर सख्त कार्रवाई करने की बात चली। मामले को बिगड़ता देख शासन के आदेश से जिला प्रशासन और नगर निगम ने भी आव देखा ना ताव और पुराने श्री बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर पर बुलडोजर चलवा दिया। लेकिन अब इस पूरे मामले में प्रशासन और निगम अधिकारी उलझ कर रह गए हैं। पूरे मामले में एक-एक कर नेता अलग होते गए हैं और सारी गगरी अधिकारियों के माथे फूट रही है। सीएम शिवराज सिंह चौहान 31 मार्च को आकर दोषियों पर सख्त कार्रवाई की बात कहते हैं, फिर अवैध निर्माण की बात उठती है। बीजेपी राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय से लेकर सांसद शंकर लालवानी, महापौर पुष्यमित्र भार्गव सभी दोषियों पर कार्रवाई की बात कहते हैं। पूर्व सीएम कमलनाथ चेतावनी दे जाते हैं। सात दिन में अवैध निर्माण नहीं हटा तो कोर्ट जाएंगे। इसके बाद निगम और प्रशासन मोर्चा संभालते हैं और मंदिर तोड़ दिया जाता है।
अब सभी के बयान पलटने शुरू हो जाते हैं
फिर सामने आते हैं रहवासी और हिंदू संगठन, पहले मस्जिद, मजार के अतिक्रमण की बात उठती है, धरना प्रदर्शन होता है। फिर श्री बेलेश्वर मंदिर के लिए बन जाती है। मंदिर संघर्ष समिति, घटनास्थल पर पूजा भी होती है, पैदलमार्च निकलता है। इसके बाद एक-एक कर फिर सभी पलटना शुरू करते हैं। विजयवर्गीय कहते हैं बावडियों को तोडना नहीं चाहिए। सीएम कहते हैं आस्था को देखते हुए मंदिर वहीं बनाएंगे और विजयवर्गीय सही कहते हैं बावडियों को संवारना चाहिए, फिर महापौर और आखिर में कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी. भी कहते हैं कि कुएं, बावड़ियों को हम संवारेंगे।
यह सारे सवाल उठ रहे हैं
- पुराना मंदिर तोड़ने का तो कोई नोटिस था ही नहीं, निगम से जो नोटिस गया वह नए निर्माण पर था, तो फिर मंदिर तोड़ा क्यों?
नए मंदिर के लिए रहवासियों ने 60 लाख रुपए खर्च किए थे, अब वह एक करोड़ मांग रहे हैं, यह खर्चा उठाएगा कौन?
यदि यह नया निर्माण अवैध था तो फिर बगीचे की जमीन पर नए निर्माण के लिए टीएंडसीपी और निगम से मंजूरी कैसे मिलेगी, ग्रीन बेल्ट पर हो ही नहीं सकता है
मंदिर ट्रस्ट अध्यक्ष, सचिव पर केस हो गया, निगम के दो अधिकारी सस्पेंड हो गए, सीएम मंदिर बनाने की घोषणा कर चुके,
अब मजिस्ट्रियल जांच में क्या अनोखा कर देगा प्रशासन
आखिर सीएम से लेकर बाकी नेताओं ने क्यों बदला रूख
कांग्रेस तो खुद अपने पीसीसी चीफ कमलनाथ के बयान के कारण बैकफुट पर आ गई
आईए इन सभी के जवाब देखते हैं
- नगर निगम द्वारा 23 अप्रैल 2022 में दिए गए नोटिस और फिर 30 जनवरी को दिए गए रिमूवल नोटिस में नए निर्माण को लेकर ही बात है। पुराना मंदिर जो आईडीए की स्कीम से पहले से बना हुआ था, उसे लेकर कभी कोई नोटिस की बात ही नहीं थी। यह मंदिर तो बगीचा बनने से पहले से ही कायम था। पुराने मंदिर को तोड़ा जाना ही गलत था। मुद्दा केवल बावड़ी को सुरक्षित करने का था। निगम ने प्रशासन को और प्रशासन ने भोपाल में बताकर ही कार्रवाई की लेकिन अब सभी बैकफुट पर आ गए हैं।
नए मंदिर के लिए अब संघर्ष समिति एक करोड़ राशि की मांग कर रही है, यह राशि कौन देगा? लेकिन जिस तरह से इस मंदिर को लेकर हिंदुत्व की लहर उठी है, यह तय है कि इसमें क्षेत्रीय विधायक आकाश विजयवर्गीय और उनके पिता कैलाश विजयवर्गीय की अहम भूमिका होगी, क्योंकि सात माह बाद चुनाव है और इस विधानसभा में हार-जीत का अंतर छह हजार वोट से कम रहता है, ऐसे में यह कोई रिस्क नहीं उठाएंगे। सांसद भी इसमें सहयोग कराएंगे क्योंकि उन पर उंगलियां सबसे ज्यादा उठी और महापौर भार्गव भी रहेंगे।
पुराने मंदिर पर नए निर्माण में तकनीकी समस्या नहीं है, क्योंकि यह स्कीम से पहले से ही बना है, लेकिन तय एरिया से ज्यादा पर जाते हैं तो मंजूरी की समस्या तो आएगी। क्योंकि ग्रीन बेल्ट पर पांच फीसदी ही निर्माण हो सकता है, वह तो सर्वेंट क्वार्टर के साथ पीछे एक मंदिर, टंकी बनाकर पूरा हो चुका है।
मजिस्ट्रियल जांच के लिए कुछ नहीं बचा है, ले- देकर मंदिर ट्रस्ट के दो पदाधिकारियों पर जो केस हुआ है और जिन निगम के भवन अधिकारी, इंस्पैक्टर को सस्पेंड किया गया है, उन्हें ही इस पूरे कांड के लिए जिम्मेदार बताकर इतिश्री की जाएगी। हाथोंहाथ आपदा हालात के लिए किसी विशेष सेल के गठन की सलाह दे दी जाएगी, जो पहले ही महापौर पुष्यमित्र भार्गव घोषित कर चुके हैं। इससे ज्यादा इसमें कुछ नहीं निकलने वाला है, क्योंकि ना अब घटनास्थल बचा और ना ही अवैध निर्माण का मुद्दा बचा।
इस बार विधानसभा चुनाव हिंदुत्व की लहर पर ही होना है, विविध सर्वे में बीजेपी को इस बार राह कांटों भरी दिख रही है। ऐसे में किसी भी हालत में वह हिंदुत्व विरोधी नहीं दिख सकती है, संघ लगातार नजर रखे हुए हैं। उधर विजयवर्गीय हमेशा ही हिंदुत्व विचारधारा के लिए मालवा में एक बड़ा चेहरा रहे हैं, और जबकि यह उनके ही बेटे की विधानसभा में हुआ हो तो उन्हें दोहरी चिंता थी। वोट फिसले तो सीट खतरे में आ जाएगी, वहीं उन्हें अपने चेहरे के अनुकुल ही इस मुद्दे को उठाना था, इसलिए उन्होंने सरकार तक बात पहुंचाई की मंदिर तोड़ना गलत था, फिर से बनना चाहिए। आखिर यह बात सुनी गई। जब सीएम ने घोषणा कर दी तो फिर महापौर के लिए कुछ बचा नहीं था, कार्रवाई की बात करने वाले कलेक्टर भी बैकफुट पर आ गए और बावड़ियों के संवारने की बात पर लौट आए।
कांग्रेस इस मामले में शुरूआत में जितनी मुखर थी, बाद में रहवासियों के मंदिर तोड़े जाने को लेकर आए विरोध के बाद उतनी ही पीछे हट गई। कारण था पीसीसी चीफ व पूर्व सीएम कमलनाथ बोल गए कि सात दिन में अवैध अतिक्रमण नहीं हटा तो कोर्ट जाएंगे। बाद में अतिक्रमण तोड़ा गया, लेकिन हिंदुत्व के बीच इसका ऐसा उलटा असर जाएगा इसका अनुमान किसी ने नहीं लगाया था। यदि यह संदेश जाए कि कांग्रेस के दबाव में मंदिर टूटा तो उसके लिए साफ्ट हिंदुत्व पर जाने वाला एजेंडा मुश्किल में आ जाएगा इसलिए वह फिलहाल इसमें मुखर होने की जगह शांत हो गई है।