BHOPAL, अरुण तिवारी. इन्वेस्टर्स समिट के नाम पर बड़ा जलसा करने वाली मध्यप्रदेश सरकार के हाथ खाली हैं। ये खुलासा खुद सरकार विधानसभा में कर रही है। पिछले 15 सालों में छह इन्वेस्टरर्स समिट हुईं। इनमें से महज छह फीसदी उद्योग ही जमीन पर उतरे हैं। जितनी राशि के निवेश के करार हुए उनमें से सिर्फ दस फीसदी ही कागज से उतर पाए हैं। इन 15 सालों में प्रदेश में लगे उद्योगों से 2 लाख लोगों को ही रोजगार मिला है। विधानसभा में कांग्रेस के मेवाराम जाटव के सवाल के जवाब में उद्योग मंत्री राजवर्धन सिंह दत्तीगांव ने ये जवाब दिया है।
इन्वेस्टरर्स समिट की जमीनी हकीकत
साल 2007 से 2023 तक छह इन्वेस्टर्स समिट हो चुकी हैं। सबसे आखिरी समिट हाल ही में 11-12 जनवरी 2023 को इंदौर में हुई। इन छह इन्वेस्टर्स समिट में 13 हजार 388 करार हुए। इन करार में निवेश की राशि 30 लाख 13 हजार 41 करोड़ थी। लेकिन ये सारे करार कागजों में ही सिमट कर रह गए। जमीन पर जो उद्योग लगे हैं उनकी संख्या 762 यानी महज छह फीसदी है। वहीं 3 लाख 47 हजार 891 करोड़ का ही इन्वेस्टमेंट हुआ। यानी सिर्फ दस फीसदी राशि का ही निवेश जमीन पर उतर आया। इन उद्योगों से 2 लाख 7 हजार 49 लोगों को रोजगार मिला।
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इन्वेस्टर्स समिट पर खर्च
सरकार ने विधानसभा के लिखित जवाब में 2023 की समिट छोड़कर बाकी आयोजनों का खर्च भी बताया है। सरकार के मुताबिक पिछली पांच इन्वेस्टर्स समिट के आयोजनों पर 50 करोड़ 54 लाख का खर्च हुआ है। वहीं विदेश यात्रा और रोड शो पर 17 करोड़ 78 लाख रुपए खर्च किए गए। यानी कुल खर्च 68 करोड़ 32 लाख रुपए है।
366 उद्योग यूनिट को सवा करोड़ की मदद
वहीं सरकार ने साल 2007-08 से लेकर 2015-16 तक उद्योग यूनिटों को सहायता राशि भी दी। इन नौ सालों में 366 उद्योग यूनिट को 1 करोड़ 22 लाख 433 हजार रुपए की सहायता राशि दी। लेकिन जवाब ये नहीं आया कि ये किस बात की सहायता किन उद्योगों को की गई।
अखबारों को दिए एक करोड़
सरकार ने इस साल जनवरी में हुई दो दिवसीय इन्वेस्टर्स समिट में प्रचार प्रसार पर खूब खर्च किया। प्रदेश के 122 अखबारों को 98 लाख 82 हजार रुपए विज्ञापन के रुप में दिए गए। यह राशि जनसंपर्क विभाग ने खर्च की। वहीं टीवी और वेब और सोशल मीडिया पर अलग-अलग विभागों ने अलग-अलग एजेंसियों के जरिए राशि दी गई।
इन्वेस्टर्स समिट के खर्च की जल गई फाइल
कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी ने पूछा कि जनवरी में सरकार द्वारा आयोजित इन्वेस्टर मीट से क्या लाभ प्रदेश को हुआ और उसमें कितना खर्च हुआ। जवाब मिला कि हमारे पास अभी कितना खर्च इस आयोजन में हुआ है उसकी कोई जानकारी नहीं है क्योंकि विभाग का हिसाब रखने वाले ऑफिस में आग लग गई और सारा डाटा,नस्तियां जलकर खाक हो गईं। वहीं जब यह पूछा गया कि अन्य विभागों ने क्या खर्च किया तो जवाब आया कि दूसरे विभाग का हिसाब नहीं रखते हैं।
कर्ज चुकाने संपत्ति बिकने का आरोप
वहीं जीतू पटवारी ने आरोप लगाया कि एक तरफ सरकार निवेश के नाम पर पैसा उड़ा रही है वहीं सरकार ने जो लोन लिया है उसके एवज में जो सिक्योरिटीज जो प्रतिभूतियां उन्होंने गिरवी रखी है वह पैसा ना चुका पाने के कारण आरबीआई उस प्रतिभूतियों को नीलाम कर रहा है जो यह बताता है कि मध्यप्रदेश के ऊपर बहुत बहुत ज्यादा कर्ज है और सरकार उसका मूल तो दूर ब्याज भी नहीं चुका पाने की स्थिति में है। जीतू ने अखबार में छपी हुई रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की एक विज्ञप्ति भी मीडिया को दिखाई।