Bhopal. कर्नाटक चुनाव परिणाम के बाद बीजेपी आलाकमान के कान खड़े हो गए हैं, यही कारण है कि अब मध्यप्रदेश में बीजेपी हाईकमान फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। पिछले दिनों प्रदेश संगठन की कमान किसी और हाथ में सौंपे जाने की कवायद चली, लेकिन उसे फिलहाल के लिए रोक दिया गया। दरअसल बीजेपी 230 सीटों वाले मध्यप्रदेश में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है।
2 दशक से सत्ता में काबिज बीजेपी की राह आसान नहीं है, पार्टी के भीतर एक साथ कई गुट ने मोर्चा खोल रखा है। बीजेपी की अंदरुनी लड़ाई भी पहली बार सोशल मीडिया और सड़कों पर आ गई है। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह भी बीजेपी में शिवराज भाजपा, महाराज भाजपा और नाराज भाजपा का तंजरूपी वर्गीकरण कर चुके हैं। जिस पर बीजेपी ने न तो उतना कड़ा पलटवार किया है और न ही बीजेपी के किसी आला नेता ने इस पर कोई सफाई पेश की।
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हाल ही में बीजेपी के खेमे में जो विवाद चर्चा में रहे उनमें ज्योतिरादित्य का गुना में जनता से माफी मांगना और फिर सांसद केपी यादव का सिंधिया पर पलटवार करना चर्चा में रहा। जिस पर बीजेपी संगठन ने केपी यादव को सख्त हिदायत दे डाली। इसी तरह सागर के धुरंधर नेताओं गोपाल भार्गव और गोविंद सिंह राजपूत ने जिस प्रकार से भूपेंद्र सिंह के खिलाफ मोर्चा खोला उसने बीजेपी की अंदरूनी खींचतान को जगजाहिर किया है।
इधर ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा अपने ट्विटर हैंडल से बीजेपी को हटा देना भी कई सवाल खड़े कर गया है। ऐसा उन्होंने कांग्रेस में रहते वक्त तब किया था जब वे उपेक्षा से काफी पीड़ित महसूस कर रहे थे। इधर इंदौर में सत्यनारायण सत्तन, जबलपुर में हरेंद्रजीत सिंह बब्बू और अनूप मिश्रा की नाराजगी भी खुलकर सामने आ चुकी है।
ऐसे में कोई अचरज वाली बात नहीं होगी कि बीजेपी एकदम से मध्यप्रदेश में गुजरात फॉर्मूला लागू कर दे। बीते दिनों प्रदेश अध्यक्ष के पद पर प्रहलाद पटेल की नियुक्ति की चर्चाएं इसी कारणवश जोर पकड़ी थीं। वहीं अब यह भी चर्चा जोरों पर है कि कहीं शिवराज की बजाय पार्टी प्रहलाद पटेल या किसी और चेहरे पर 2023 की बाजी न खेल जाए। राजनैतिक पंडित मान रहे हैं कि यदि कर्नाटक चुनाव में बीजेपी को सफलता मिल जाती तब तो गुजरात फॉर्मूला लागू होना सौ फीसदी तय था, लेकिन कर्नाटक की हार ने बीजेपी को एक बार फिर रणनीति बदलने मजबूर कर दिया है। माना यही जा रहा है कि 15 जून तक सारी रणनीति पानी की तरह साफ हो सकती है।