सुनील शर्मा, BHIND. त्रेता युग के रामायण काल को गुजरे भले ही सदियां बीत चुकी हो, लेकिन आज भी रामायण लोगों के दिलों में बसी हुई है। आधुनिकता भरे टेलीविजन के दौर में भी रामलीला का मंचन वर्षों से जारी है, लोगों ने दूरदर्शन पर प्रसारित रामानन्द सागर के सीरियल रामायण को खूब सराहा था, जिसने अपने आप में वर्ल्ड रिकॉर्ड स्थापित किया था, फिर भी आज कही रामलीला का मंचन होता है, तो उसे देखने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ आती है,
100 वर्ष पूर्ण कर चुकी है मेहगांव की रामलीलाबाद रामलीला का आयोजन होता आ रहा है, और इस सिलसिले को एक शताब्दी वर्ष पूरा हो चुका है, आइये जानते हैं रामलीला और
मेहगांव रामलीला की कुछ खास बातें..
मनोज चौधरी के घर से होती है सीता की बिदाई। दरभंगा गांव के वार्ड नंबर 14 के रहने वाले मनोज चौधरी के घर राम की बारात पहुंची और वहां पर विधिवत सीता का कन्यादान और उनके घर पर विदाई की रस्म पूरी होती है,
भिंड जिले के मेहगांव में जनक के घर से जब सीता की विदाई हुई तो पूरा नगर राम की बारात में शामिल हुआ।
अद्भुत नजारा राम बारात का
मेहगांव में बीते 100 वर्षों से हो रही रामलीला के आयोजन का था, रामलीला मैदान से राम बारात का शुभारंभ हुआ पूरा नगर भ्रमण करते हुए भगवान राम की बारात जनक के द्वार पहुंचा जहां विधिवत सीता का कन्यादान और विवाह की सभी रस्में संपन्न हुई और विदाई के साथ राम बारात आगे बढ़ चली,शायद ही ऐसा कोई मानुस होगा जिसने मेहगांव में रहते राम बारात में हिस्सा ना लिया हो, इस बार का आयोजन मेहगांव की रामलीला मंचन के 100 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर किया गया। मां सरस्वती सामाजिक एवम धार्मिक रामलीला मण्डल के सदस्य अशोक श्रीवास्तव कहते हैं कि त्रेता युग में जो परम्पराएं थी उन्ही परंपराओं को आज हम विरासत के रूप में निभा हैं, वे ख़ुद 27 वर्षों से रामलीला मंच से जुड़े हुए हैं। वहीं समिति के अध्यक्ष दंदरौआ सरकार महंत महामण्डलेश्वर श्री श्री 1008 रामदास महाराज का कहना है कि राम के काज में सभी भेदभाव मिटाकर सार्थक प्रयास करना चाहिए, प्रत्येक मनुष्य को धार्मिक कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग लेना चाहिए इससे धर्म का प्रचार प्रसार होता है, और आने वाली पीढ़ी को संस्कार मिलते हैं, इस लिए जब रामलीला का मंचन हो तो उसके दर्शन लाभ लेना चाहिए।
त्योहार पर घर आने वाले ही निभाते हैं किरदार
रामलीला का मंचन जब भी होता है तो उसका मंचन देखने वालों की भीड़ भी बहुत होती है, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि भगवान की लीला का अनुकरण करने या मंचन देखने से मनुष्य को पापों से मुक्ति मिलती है, यही वजह है कि रामलीला के दौरान ईश्वर और लीला के अवतारों का अनुकरण करने वाले कलाकारों को भी इसकी पवित्रता बनाए रखने के लिए भक्ति भावना के साथ अभिनय करना पड़ता है। दशहरा के दिन अखंड भारत के साथ ही कई अन्य देशों में भी रामलीला का मंचन विशेष रूप से किया जाता है लेकिन ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में दीपावली बाद भी रामलीला मंचन करने की परंपरा है। दरअसल ज़्यादातर जगह पर रामलीला के किरदार निभाने वाले कलाकारों में सामान्य नौकरी करने वाले लोग भी होते हैं जो दीपावली के त्योहार के समय अपने घर आते हैं, इसी दौरान वे रामलीला में अपनी अदाकारी का प्रदर्शन करते हैं, जिस वजह से रामलीला के मंचन के लिए यह सबसे अनुकूल समय माना जाता है,
इसलिए होता है दीपावली के बाद रामलीला का शुभारंभ
रामलीला के किरदार निभाने वाले कलाकार मानते हैं कि लीला के दौरान किसी पात्र की भूमिका को निभाना भगवान की आराधना से कम नहीं होता है, रामलीला के समय श्रीराम ही नहीं बल्कि असुर राज रावण का किरदार निभाने वाला कलाकार भी ख़ुद को भाग्यशाली मानता है,यही वजह है कि इन आस्थावान किरदारों की वजह से दर्शकों में भी आस्था और निष्ठा का भाव आता है।