देव श्रीमाली, GWALIOR. आज ( 26 जनवरी) को गणतंत्र का 74वां दिवस मना रहे हैं। अगणित स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों और लंबे संघर्ष के बाद मिली आजादी को देश के लोगों के लिए कल्याणकारी और न्यायसंगत बनाने और सत्ता का सुचारू संचालन का मार्ग प्रशस्त करने के लिए देश के एक नेताओं,समाज सुधारक ,न्यायवेत्ताओ आदि ने पूरे देश में घूम- घूमकर देश की जरूरतों,मान्यताओं,और परिस्थितियों का सालों अध्ययन किया था। लंबी कवायद के बाद 26 नवंबर 1949 को देश के लिए एक सर्वश्रेष्ठ संविधान तैयार किया यानी जिसे संविधान सभा ने भारतीय गणराज्य के लिए संविधान को मंजूरी दी और फिर 26 जनवरी 1950 को हमारी संसद ने अंगीकार किया, इसलिए वह दिन हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। हालांकि भारतीय संविधान तो हमारी संसद का हिस्सा है, लेकिन ग्वालियर के लिए बड़े गौरव की बात है कि इस संविधान का ग्वालियर से भी एक भावनात्मक रिश्ता है। संविधान की एक मूल प्रति ग्वालियर में न केवल सुरक्षित रखी है बल्कि गणतंत्र दिवस पर आज यह लोगों को देखने के लिए उपलब्ध भी है।
ग्वालियर में सुरक्षित है संविधान की एक मूल प्रति
ग्वालियर में महाराज बाड़ा स्थित केंद्रीय पुस्तकालय में आज भी भारतीय संविधान की एक मूल दुर्लभ प्रति सुरक्षित रखी हुई है। इसे हर साल संविधान दिवस और गणतंत्र दिवस पर आम लोगों को दिखाने की व्यवस्था की जाती है। अब यह पुस्तकालय डिजिटल हो चुका है लिहाजा इसकी डिजिटल कॉपी भी देखने को मिलती है। हर साल बड़ी संख्या में लोग अपने संविधान की इस मूल प्रति को देखने ग्वालियर पहुंचते हैं। 1927 में सिंधिया शासकों द्वारा निर्मित कराए गए इस केंद्रीय पुस्तकालय की स्थापना कराई गई थी। तब ये मोती महल में स्थापित किया गया था और इसका नाम आलीजा बहादुर लाइब्रेरी था। कालांतर में इसे महाराज बाड़ा स्थित एक भव्य स्वतंत्र भवन में स्थानांतरित कर दिया गया। स्वतंत्रता के बाद इसका नाम संभागीय केंद्रीय पुस्तकालय कर दिया गया।
कैसे ग्वालियर पहुंची संविधान की मूल प्रति?
आखिरकार ग्वालियर के इस केंद्रीय पुस्तकालय में रखी संविधान की यह मूल प्रति यहां पहुंची कब और कैसे ? यह सवाल सबके जेहन में आना लाजमी है। अंग्रेजी भाषा में लिखे गए पूरी तरह हस्त लिखित इस महत्वपूर्ण दस्तावेज की कुल 16 प्रतियां तैयार की गईं थी। इसकी एक प्रति संसद भवन में रखने के साथ नुच प्रतियां देश के अलग-अलग हिस्सों में भजना तय हुआ था ताकि लोग अपने संविधाना को देख सकें। इसी योजना के तहत एक प्रति ग्वालियर के केंद्रीय पुस्तकालय में भेजी गई। इसकी सुरक्षा और संरक्षण की खास व्यवस्था भी की गई।
संविधान सभा के सभी सदस्यों के हस्ताक्षर है
इसकी खास बात यह है इसकी सभी ग्यारह पाण्डुलिपियों के अंतिम पन्ने पर संविधान सभा के सभी 286 सदस्यों ने मूल हस्ताक्षर किए थे, जो आज भी इस पर अंकित हैं। इसमें सबसे ऊपर पहला हस्तक्षर राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के हैं। इनके अतिरिक्त संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ भीम राव आंबेडकर और देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल के भी हस्ताक्षर हैं। इतने बड़े नेताओं के ऑरिजनल दस्तखत देखने पर देखने वाले एक रोमांच पैदा हो जाता है।
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पूरा संविधान कैलीग्राफी है
केंद्रीय पुस्तकालय के अधिकारी कहते हैं कि इसके कारण वे भी अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते हैं। उनका कहना है कि यह पूरा संविधान हस्तलिखित है और सुन्दर सुन्दर शब्दांकन करने के लिए कैलीग्राफी करवाई गयी है।
सोने से की गई है रूप सज्जा
संविधान की इस पाण्डुलिपि की रूप सज्जा भी अद्भुत है। इसके पहले पैन को स्वर्ण से सजाया गया है। इसके अलावा हर पृष्ठ की सज्जा और नक्काशी पर भी स्वर्ण पॉलिश से लिपाई की गई है।
पूरे भारतीय इतिहास की झलक भी मिलती है
संविधान की इस पाण्डुलिपि में भारत के गौरवशाली इतिहास की झलक भी मिलती है। इसके अलग- अलग पन्नों पर इतिहास के विभिन्न कालखंडों यानी मोहन- जोदड़ो,महाभारत काल,बौद्ध काल,अशोक काल से लेकर वैदिक काल तक मुद्राएं, सील और चित्र अंकित इस बात को परिलक्षित किया गया है कि हमारी भारतीय संस्कृति,परम्पराएं,राज- व्यवस्था और सामाजिक व्यवस्थाएं अनादिकाल से ही गौरवशाली और व्यवस्थित थी।
31 मार्च 1956 को ग्वालियर पहुंची प्रति
किताब को 31 मार्च 1956 को ग्वालियर लाया गया था। इसमें कुल 231 पेज है और इस किताब में संविधान कमेटी के लगभग सभी सदस्यों के हस्ताक्षर भी मौजूद हैं। यह पुस्तक पूरी तरह से हस्तलिखित है। आपको बता दें कुछ साल पहले तक इस किताब को छूकर और इसके पन्नों को पलट कर देखा जा सकता था। लेकिन किन्हीं गतिविधियों के चलते अब इसे बड़ी स्क्रीन पर डिजिटल रूप में दिखाया जाता है।
साल के 3 दिन ही बाहर आती है किताब
विशेषज्ञों का मानना है कि इस किताब को लिखने के लिए जिस कागज का प्रयोग किया गया है, उसे 1000 वर्ष तक भी सुरक्षित रखा जा सकता है। इस पर लिखें अक्षरों को पढ़ा जा सकता है। किताब के अंदर विभिन्न नियमों व कर्तव्यों को समझाने के लिए कई प्रकार के चित्रों का भी प्रयोग किया गया है। उल्लेखनीय है कि वैसे तो यह किताब साल के महज 3 दिन ही बाहर आती है, लेकिन डिजिटल होने के बाद अब इस किताब को आप साल भर में कभी भी बड़ी स्क्रीन पर देख सकते हैं।
कैसे पहुंच सकते हैं पुस्तकालय
अगर आप इस पुस्तक को देखना चाहते हैं तो आप सड़क या रेल मार्ग से ग्वालियर पहुंचकर स्टेशन या बस स्टैंड से कैब या ऑटो रिक्शा आदि साधन से महाराज बाड़े पहुंचेंगे। यहां से कुछ ही कदमों की दूरी पर यह पुस्तकालय मौजूद है, जहां जाकर आप संविधान की इस पुस्तक को देख सकते हैं।