चेहरे पर तेज देख रजनीश के कॉलेज में लिया एडमिशन, ऐसे बोलते जैसे कानों में घुल रहा हो शहद, पढ़िए आचार्य से ओशो बनने की कहानी

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Vivek Sharma
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 चेहरे पर तेज देख रजनीश के कॉलेज में लिया एडमिशन, ऐसे बोलते जैसे कानों में घुल रहा हो शहद, पढ़िए आचार्य से ओशो बनने की कहानी

राजीव उपाध्याय, JABALPUR. किसी की फोटो में इतनी जीवंतता हो कि वो किसी छात्र को इतना प्रेरित कर दे कि वह छात्र कॉलेज बदलकर उनके कॉलेज में एडमिशन ले ले। डॉ शिवकुमार तिवारी के साथ कुछ ऐसा ही हुआ। वे जब छात्र थे तो जबलपुर के एक फोटो स्टूडियो में गए वहां आचार्य रजनीश का बड़ा फोटो लगा था। उस फोटो में इतनी जीवंतता थी कि उन्होंने फोटो स्टूडियो से उनके बारे में पता किया तो पता चला कि वे प्रोफेसर रजनीश हैं और महाकौशल कॉलेज (उस जमाने में राबर्टसन कॉलेज) में पढ़ाते हैं। उस छात्र ने  उनके कॉलेज में एडमिशन ले लिया और उनका स्टूडेंट बन गए। ये हैं डॉ शिवकुमार तिवारी। जोकि 81वर्ष के हैं और जबलपुर में रहते हैं।











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आचार्य रजनीश के सहकर्मी डॉ. शिवकुमार तिवारी







 उनका साइन किया रजिस्टर आज भी मौजूद





डॉ शिवकुमार तिवारी बताते हैं कि हम सभी छात्र उनको आचार्य कहते थे। उनकी भाषण शैली मुग्ध करने वाली होती थी। ऐसा कभी नहीं हुआ कि वे क्लास में न आए हों। वे जब बोलते थे तो ऐसा लगता है कि कान में कोई अमृत डाल रहा हो। छात्र मुग्ध हो जाते थे। डॉ तिवारी का कहना है कि पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद उनकी नौकरी उसी कॉलेज में लग गई तो सहकर्मी के रूप में आचार्य रजनीश का उनको साथ मिला।  आचार्य रजनीश कॉलेज कुछ जल्द आते थे और क्लास में जाने के पहले लाइब्रेरी में जाते थे। वहां वे जो किताब इश्यू कराते थे तो रजिस्टर में साइन करते थे। उनका साइन किया हुआ रजिस्टर आज भी कॉलेज में मौजूद है। लाइब्रेरी से वे सीधे क्लास में जाते थे। यदि दो क्लास के बीच कुछ समय बचता था तो वे स्टाफ रूम में जाते थे जहां मेरी उनसे मुलाकात होती थी। उनसे बात करके स्फूर्ति महसूस करता था। वे किसी से कभी खुद बात करना शुरू नहीं करते थे लेकिन जब कोई उनसे सवाल करता था तो तार्किक उत्तर देते थे।जिससे व्यक्ति उनको सुनता ही रहता था।







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जबलपुर के इसी कॉलेज में आचार्य रजनीश प्रोफेसर थे।











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शिष्य नहीं बना





डॉ शिवकुमार तिवारी ने बताया कि आचार्य रजनीश जब यहां से चले गए और ओशो रजनीश बन गए। तब काफी साल बाद लोगों को जब यह पता चला कि मैं उनका छात्र रहा हूं और कॉलेज में साथ में सर्विस भी की है तो देश,विदेश से उनके शिष्य मेरे घर आते थे। यहां कार्यक्रम में मुझे बुलाते थे।उनका कहना था कि मैं ओशो का शिष्य क्यों नहीं बना। इसका मैंने जवाब दिया कि ओशो के शिष्य उनके प्रति बहुत समर्पित रहते हैं। वे दूसरों के द्वारा उनको कही गई अनर्गल बातें का जवाब नहीं देते हैं जबकि मैं उनका शिष्य नहीं छात्र हूं तो इस तरह की बातों का जवाब दे सकता हूं। मैंने उनके बारे में किताब भी लिखी है।





छात्र और सहकर्मी के रूप में यह पाया





मैं उनका शिष्य न होते हुए भी केवल छात्र होने पर वो सभी पाया जो उनके शिष्य को मिलता है। छात्र और बाद में सहकर्मी के रूप में उनके साथ बिताए हर पल ने मेरे व्यक्तित्व को बदला है। ओशो कभी कालातीत नहीं होंगे, हमेशा प्रासंगिक रहेंगे।







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 आचार्य रजनीश के साथ डॉ. शिवकुमार तिवारी







जबलपुर  से जुड़ाव





आचार्य रजनीश का जन्म 11दिसम्बर 1931को मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के कुचवाड़ा में हुआ था। वे अपने दस भाई बहनों में सबसे बड़े थे। वे हाई स्कूल करने के बाद जबलपुर आ गए और यहां से उन्होंने आगे की पढ़ाई की। जबलपुर में कॉलेज में सर्विस करने के बाद वे मुंबई और फिर पूना चले गए। वे प्रवचन देते तो हजारों लोग उनको सुनते। उनकी ख्याति देश विदेश में पहुंच गई।1981में वे अमेरिका के ओरेगन चले गए। वहां उनके काफी शिष्य बने। 1986 में वे भारत लौटे। इस दौरान अस्वस्थ रहने लगे और 19 जनवरी 1990 को उन्होंने देह त्याग दी।





ओशो प्रेमी मनाते हैं जन्मोत्सव





ओशो का जन्मोत्सव 11दिसंबर को ओशो प्रेमी बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। इस वर्ष भेड़ाघाट में ओशो का जन्मोत्सव मनाया जा रहा है जिसमें देश विदेश से ओशो के शिष्य आए हैं।





ओशो रजनीश के 10 अनमोल विचार





ओशो रजनीश के विचारों को दुनियाभर में सराहा जाता है। उनकी कहानियां और उनके विचार बड़े ही गजब के और अलग तरह के होते हैं। उन्होंने कई घंटों के प्रचवन दिए हैं जिसके आधार पर लगभग 650 किताबों का प्रकाशन हो चुका है। उन्होंने हर विषय पर कहा है। आओ जानते हैं उनके ऐसे 10 अनमोल विचार जो आपको प्रेरिक करेंगे।







  •  सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग। जिंदगी में आप जो करना चाहते हैं वो कीजिये। ये मत सोचिए कि लोग क्या कहेंगे। क्योंकि लोग तो तब भी कुछ कहते थे जब आप कुछ नहीं करते थे।... ओशो का यह विचार इतना लोकप्रिय हुआ है कि वह यह विचार सभी का बन गया है।



  •  यहां कोई भी आपका सपना पूरा करने के लिए नहीं है। हर कोई अपनी तकदीर और अपनी हकीकत बनाने में लगा है।


  • . जीवन ही है प्रभु और ना खोजना कहीं।...ईश्‍वर को खोजने से ज्यादा अच्छा है अपने जीवन को सुंदर बनाना।


  •  ना भोग, ना दमन वरना जागरण। अर्थात ना तो ज्यादा भोग में लिप्त रहना है और ना उसका दमन करना है जो भी करना है वह जागृत रहकर करोगे तो व्यर्थ स्वत: ही छूट जाएगा। कोई चुनाव मत करिए, जीवन को ऐसे अपनाइए जैसे वो अपनी समग्रता में है।


  •  स्त्री को अपनी मुक्ति के लिए अपने व्यक्तित्व को खड़ा करने की दिशा में सोचना चाहिए। प्रयोग करने चाहिए। लेकिन ज्यादा से ज्यादा वह क्लब बना लेती है, जहां ताश खेल लेती है, कपड़ों की बात कर लेती है, फिल्मों की बात कर लेती है, चाय-कॉफी पी लेती है, पिकनिक कर लेती है और समझती है कि बहुत है, शिक्षित होना पूरा हो गया। ताश खेल लेती होगी। पुरुषों की नकल में दो पैसे जुए के दांव पर लगा लेती होगी बाकी इससे उसको कुछ व्यक्तित्व नहीं मिलने वाला है। मैं कहता हूं अगर स्त्रियां ठान लें तो किसी भी देश में युद्ध की नौबत ही न आए। स्त्री को भी सृजन के मार्गों पर जाना पड़ेगा। उसे भी निर्माण की दिशाएं खोजनी पड़ेंगी।


  • आत्महत्या करना अस्तित्व का अनादर है। अस्तित्व ने तुम्हें विकसित होने के लिए जीवन का अवसर दिया और तुम इस अवसर को यूं ही व्यर्थ गंवा देते हो। और जब तक कि तुम विकसित नहीं होते और विकसित होकर बुद्ध नहीं बन जाते, तब तक तुम जीवन में बार-बार फेंके जाओगे। लाखों बार पहले भी यह हो चुका है। अब समय है, अब जागो! इस अवसर को चूको मत।


  •  ओशो कहते हैं कि 'सदियों से आदमी को विश्वास, सिद्धांत, मत बेचे गए हैं, जो कि एकदम मिथ्‍या हैं, झूठे हैं, जो केवल तुम्हारी महत्वाकांक्षाओं, तुम्हारे आलस्य का प्रमाण हैं। तुम करना कुछ चाहते नहीं, और पहुंचना स्वर्ग चाहते हो।'


  •  ओशो कहते हैं कि धर्म या विज्ञान के रेडीमेड सत्यों से काम नहीं चलेगा। मैं संशय (दुविधा) की बात नहीं कर रहा हूं। मैं संदेह की बात कर रहा हूं। संदेह करोगे तभी सत्य तक पहुंच सकते हो। श्रद्धा और विश्वास बांधते हैं, संदेह मुक्त करता है।


  • . किसी से किसी भी तरह की प्रतिस्पर्धा की आवश्यकता नहीं है। आप स्वयं में जैसे हैं एकदम सही हैं। खुद को स्वीकारिये। दूसरों जैसा बनने का प्रयास ना करें, खुद के जैसा बनें।


  •  जीवन कोई त्रासदी नहीं है; ये एक हास्य है। जीवित रहने का मतलब है हास्य का बोध होना। अधिक से अधिक भोले, कम ज्ञानी और बच्चों की तरह बनिए। जीवन को मजे के रूप में लीजिये क्योंकि वास्तविकता में यही जीवन है।




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