संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर में श्री बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर में रामनवमी के दिन हुए बावड़ी हादसे में हुई 36 मौतों को लेकर पीएम रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि यह मौत काफी दर्दनाक थी। मृतक को मरने में पांच से छह मिनट का समय लगा होगा और उसकी एक-एक सांस उखड़ती चली गई। द सूत्र द्वारा इन पीएम रिपोर्ट की जानकारी निकालने और डॉक्टरों से समझने के बाद यह बात सामने आई है।
20 दिन गुजरे, किसी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं
इस हादसे में सबसे कम उम्र का मासूम हितांश खानचंदानी के लिए तो यह और भी ज्यादा तकलीफदेह थी, क्योंकि उसके एक हाथ की हड्डी भी टूट गई थी और उसके पेट में पानी भर गया था। पानी में डूबने के साथ ही उसके हड्डी टूटने का भी दर्द अकल्पनीय है। द सूत्र का सवाल यही है कि इन आसामान्य दर्दनाक 36 मौतों के लिए क्या कोई जिम्मेदार नहीं है? पुलिस ने मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष सेवाराम गलानी और सचिव मुरली सबनानी पर केस जरूर किया, लेकिन गिरफ्तारी किसी की भी नहीं हुई है, जबकि हादसे को 20 दिन गुजर चुके हैं।
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इस तरह हुई है मौत
पीएम रिपोर्ट के अनुसार मृतकों के शरीर पूरी तरह से कीचड़ में सने हुए थे। पलकों, नाक, मुंह सभी जगह कीचड़ था। शरीर के अंदर सांस नली तक में कीचड़ भर गया था। दोनों लंग्स (फेफड़े) पानी के चलते पूरी तरह भरे थे और भारी हो गए थे। सांस नली में पानी भरने के साथ ही मटमैले गंदे द्व्य मौजूद थे। मौत की मुख्य वजह सांस रूकना थी, इससे दम घुट गया और इसके चलते उसकी डूबने से मौत हो गई। डेढ़ साल के मृतक हितांश खानचंदानी की एक हाथ की हड्डी टूटी हुई थी, उसके पेट में भी पानी भरा हुआ था।
मौत का समय पीएम से 24 घंटे पहले
पीएम रिपोर्ट में बताया गया कि मौत 24 घंटे के भीतर हुई है। यह पीएम देर रात किए गए हैं। यानी इन सभी की मौत हादसे के बाद दोपहर दो-तीन बजे तक हो चुकी थी। यानी एनडीआरएफ और आर्मी के पास केवल शव निकालने के अलावा कोई काम नहीं बचा था। अंतिम शव सुनील सोलंकी का हादसे के अगले दिन सुबह साढ़े 11 से 12 बजे के बीच मिला और उनका पीएम दोपहर दो बजे हुआ। इनके पीएम में मौत का समय अधिकतम 36 घंटे बताया गया है, शव की हालत खराब थी और मौत की वजह वही दम घुटना और डूबना थी, शव पूरी तरह से मिट्टी, कीचड़ से सना हुआ था।
डॉक्टरों का कहना- यह सबसे कठिन और दर्दनाक मौत
डॉक्टरों ने द सूत्र को बताया कि डूबना सबसे खतरनाक मौत माना जाता है। बावड़ी हादसे में जिस तरह से मौत हुई है, इसमें व्यक्ति पांच-छह मिनट तक एक-एक सांस के लिए संघर्ष करता रहा होगा, हर पल एक-एक सांस कम हुई है और उसका दम घुटता गया। सांसे बंद हुई तो शरीर के अंदर पानी भर गया और इस कारण डूबने से उसकी मौत हो गई।
मुंह में गंदा पानी भरा गया, सांस नहीं ले पा रहा था- बचने वालों के अनुभव
घटना के बाद बचे हुए एक पीड़ित के परिजन ने कहा कि घटना के बाद से इतने डरे हैं कि अब भी सिहर उठते हैं। घरवालों को भी बस इतना ही कह पाए कि एक झटका सा लगा और सभी नीचे गिर गए। अंदर एकदम अंधेरा था। पानी में गिरने के बाद कुछ समझ नहीं आ रहा था। सांस लेना मुश्किल था। दम घुट रहा था। पीड़ित दिनेश पटेल ने कहा कि मुंह गंदा पानी भर गया और सांस रूकने लगी। गिरने के कारण कई लोगों को चोट आई। बदबूदार पानी में डूबने के बाद कब ऊपर आया, पता नहीं चला। इसी तरह के अनुभव बाकी लोगों के रहे हैं।
इन मौतों के जिम्मेदार क्यों बख्शे जाने चाहिए
इस हादसे को लेकर जिम्मेदारी तय करने के लिए हाईकोर्ट में चार याचिकाएं लग चुकी है और जिला कोर्ट में परिवाद भी दायर हुआ है। हाईकोर्ट ने सभी जिम्मेदारों से चार सप्ताह में जवाब मांगा है। उधर कार्रवाई के नाम पर मंदिर ट्रस्ट अध्यक्ष गलानी औऱ् सचिव सबनानी पर गैर इरादतन हत्या का केस हुआ है और निगम ने दो अधिकारियों को सस्पेंड कर इतिश्री कर ली है। पुलिस ने केस दर्ज होने के 20 दिन बाद भी किसी की गिरफ्तारी नहीं की है।
मजिस्ट्रियल जांच में सिर्फ खानापूर्ति ही साबित होगी
सारे दबाव के बाद शासन ने मजिस्ट्रियल जांच शुरू जरूर कर दी है, लेकिन इसमें अब निकलने के लिए कुछ बचा नहीं है। ले-देकर मंदिर ट्रस्ट के पदाधिकारियों की ही गलती बताई जाना है, रेस्क्यू के लिए कुछ सुझाव शामिल होंगे। बावड़ी को पहले ही तोड़ दिया गया है, इससे निगम की गलती पर और पर्दा डाल दिया गया है। इस पर भी सवाल उठ रहे हैं कि बावड़ी को तोड़कर सबूतों को नष्ट किया गया है, ताकि गलती किसकी यह सामने नहीं आए।
कोडवानी ने भी दिए बयान
समाजसेवी किशोर कोडवानी ने मजिस्ट्रियल जांच के लिए बयान दिया है। इसमें उन्होंन कहा कि मेरे परिचित के पुत्र की भी इस बावड़ी में गिरने से 24 जनवरी 1974 को मौत हुई थी। बावड़ी पर स्लैब 1984-85 में बनाया गया। जब गलानी पार्षद बने तब इस मंदिर का निर्माण हुआ। उन्हें इस बावड़ी की जानकारी रही है, मंदिर ट्रस्ट तीन-चार साल पहले ही बना है और नया मंदिर भी ट्रस्ट द्वारा बनवाया जा रहा था। रेस्क्यू में एक घंटे का समय लगने से अधिक लोगों की जान गई और बावड़ी को नष्ट कर सबूत मिटाने की कार्रवाई की गई है, ऐसा करने वालों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई होना चाहिए।